बीजेपी नेता चित्रा वाघ ने आदिवासी महिला सुमन काले की हिरासत में मौत के मामले को बंद करने में देरी का हवाला देते हुए महाराष्ट्र के गृह मंत्री दिलीप वाल्से-पाटिल को पत्र लिखा है. सुमन काले पारधी समुदाय की एक सामाजिक कार्यकर्ता थी, जिन्होंने कथित तौर पर अवैध हिरासत में यातना के बाद आत्महत्या कर ली थी.
वहीं चित्रा वाघ ने अपने पत्र में कहा, “अब 14 साल हो गए हैं लेकिन अबतक उन्हें न्याय दिलाने की लड़ाई चल रही है. अंत में माननीय हाईकोर्ट ने 14 जनवरी 2021 को मामले को छह महीने में अंजाम तक पहुंचाने और पीड़िता के परिजनों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश पारित किया. लेकिन इसके बावजूद सरकार ने न तो मामले को आगे बढ़ाया और न ही आदेशित मुआवजे का आवंटन किया. यह बेहद गंभीर बात है और सरकार की नीयत पर संदेह की गुंजाइश छोड़ती है.”
सुमन काले कौन थी?
सुमन काले पारधी (शिकारी) जनजाति की थीं और अक्सर डकैती का मामला होने पर पुलिस द्वारा समुदाय के निर्दोष सदस्यों के साथ पूछताछ करने के तरीके से परेशान रहती थी. उन्होंने पुलिस के लिए एक मुखबिर बनने का फैसला किया जब उसके परिवार के एक सदस्य को उठाया गया.
वह काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी और अपने समुदाय के सदस्यों द्वारा अंजाम दिए गए संगठित डकैतियों और संबंधित अपराधों के बारे में पुलिस को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती थी. उन्होंने पारधी जनजाति के 100 अपराधियों के आत्मसमर्पण में भी भूमिका निभाई थी.
सुमन काले की हिरासत में मौत का मामला
अहमदनगर के बुरुदगांव गांव की रहने वाली सुमन काले पुलिस की मुखबिर थी. आरोप है कि अहमदनगर पुलिस ने उन्हें सोने की चोरी के मामले में झूठा फंसाया है. 12 मई, 2007 को उन्हें हिरासत में कथित तौर पर यातना देकर मार डाला गया था.
हालांकि पुलिस ने हिरासत में प्रताड़ना के आरोप से इनकार किया और आत्महत्या को उनकी मौत का कारण बताया. जबकि मामले में एक जांच रिपोर्ट से पता चला कि सुमन काले की मौत पुलिस द्वारा उसके शरीर पर कई घावों के कारण हुई थी.
घटना के दो साल बाद राज्य सीआईडी ने मामले की जांच शुरू की. सीआईडी की जांच से पता चला कि सुमन काले को बुरुदगांव में उनके घर से उठाया गया था और मामले में सोने के कब्जे का स्वीकारोक्ति हासिल करने के लिए अवैध रूप से कैद और गंभीर रूप से प्रताड़ित किया गया था.
जांच में यह भी पता चला कि उन्होंने पुलिस हिरासत में जहर खा लिया क्योंकि वह यातना सहन नहीं कर सकी. आत्महत्या के प्रयास के बारे में संज्ञान में आने के बाद पुलिस ने उन्हें सरकारी अस्पताल नहीं बल्कि एक निजी अस्पताल में भर्ती कराकर मामले को छिपाने की कोशिश की.