आंध्र प्रदेश में सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की लास्ट-माइल (Last-mile) डिलीवरी के लिए गांव और वॉर्ड वॉलंटियर स्कीम शुरू हुए दो साल हो चुके हैं. हर वॉलंटियर लगभग 50 परिवारों के लिए ज़िम्मेदार है. औऱ उनपर कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान करना और पेंशन, राशन आदि जैसी सेवाएं सुनिश्चित करना.
यह आसान काम नहीं है. एक वॉलंटियर के लिए 50 परिवार को सर्विस डिलीवरी शायद आपको आसान लगे, लेकिन इसके लिए आदिवासी इलाक़ों में सामने आने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखना ज़रूरी है.
मसलन, विशाखापत्तनम ज़िले के आदिवासी इलाक़े के एक वॉलंटियर 50 से कम घरों के लिए ज़िम्मेदार हैं. लेकिन यह घर तीन गांवों में बंटे हुए हैं. जहां दो गाँव लगभग 10 किमी दूर हैं, तीसरा गाँव सड़क से नहीं जुड़ा है, और वहां पहुंचने के लिए इस वॉलंटियर को लगभग 3 किलोमीटर तक पहाड़ियों में ट्रेक करना पड़ता है.
इतनी परेशानी झेलकर काम करने के लिए एक सामान्य वॉलंटियर को बस 5,000 रुपये महीने दिए जाते हैं.
हालात को देखते हुए, राज्य के उत्तरी तटीय जिलों में सामाजिक न्याय के मुद्दों पर काम करने वाले संगठन, ह्यूमन राइट्स फोरम (HRF) और समलोचना के कार्यकर्ताओं ने आंध्र प्रदेश सरकार से राज्य के एजेंसी इलाक़ों में ग्राम स्वयंसेवी प्रणाली (Village Volunteer System) को rationalise करने की अपील की है.
उनका कहना है कि इन इलाक़ों में सामने आने वाली चुनौतियों को देखते हुए, हर वॉलंटियर को सर्विसिंग के लिए 30 से ज़्यादा घर नहीं दिए जाने चाहिएं.
कल्याणकारी योजनाओं और सेवाओं के वितरण में सुधार के लिए एक स्कीम को एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में शुरु किया गया था. 22 जून, 2019 को पंचायत राज और ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जारी गवर्नमेंट ऑर्डर लगभग 50 घरों के लिए एक वॉलंटियर तैनात करता है.
राज्य भर के बाकी मंडलों में यह काम ज़्यादा मुश्किल नहीं है, लेकिन दूरदराज़ के आदिवासी इलाक़ों में एक वॉलंटियर के लिए 50 परिवारों की सेवा करना बेहद मुश्किल है. इसका नतीजा यह होता है कि कई आदिवासियों की सरकारी योजनाओं तक पूरी तरह से और ठीक से पहुंच नहीं है.
समालोचना के संयोजक बी. चक्रधर ने द हिंदू को बताया, “हमने आंध्र प्रदेश के चार जिलों में 29 आदिवासी मंडलों से उपलब्ध आंकड़ों को स्टडी किया, ताकि एक गांव के वॉलंटियर के लिए मैप किए गए घरों की औसत संख्या निर्धारित की जा सके. हमने पाया कि औसतन हर वॉलंटियर 60 से ज़्यादा घरों को कवर करता है. इन 29 मंडलों में हर वॉलंटियर द्वारा मदद किए जाने वाले परिवारों की संख्या औसतन 47.5 घरों से लेकर 78 घरों तक है.”
मुश्किलों के अलावा आदिवासी इलाक़ों के वॉलंटियर को अपने काम के अनुरूप पैसे नहीं मिलते हैं. साथ ही, ट्राइबल सब-प्लान राज्यों को मैदानी इलाक़ों के समान परिणाम प्राप्त करने के लिए आदिवासी इलाक़ों में ज़्यादा एफ़र्ट का निर्देश देती है.
इसके मद्देनज़र यह ज़रूरी है कि आदिवासी इलाक़ों में मांग और काम के हिसाब से पर्याप्त कर्मचारी होने चाहिएं. इसके अलावा आदिवासी वॉलंटियर को उसके काम का अतिरिक्त लाभ दिया जाना चाहिए, क्योंकि वो मैदानी इलाकों में अपने समकक्षों की तुलना में ज़्यादा बड़े इलाक़े को कवर करते हैं.