HomeAdivasi Dailyआदिवासी भाषा, संस्कृति और सभ्यता के संरक्षण की ज़रूरत: भूपेश बघेल

आदिवासी भाषा, संस्कृति और सभ्यता के संरक्षण की ज़रूरत: भूपेश बघेल

छत्तीसगढ़ में पहली बार इस आदिवासी साहित्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. उम्मीद है कि यह आयोजन आदिवासी और दूसरे समुदायों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए एक मज़बूत लिंक का काम करेगा.

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव मंगलवार को राज्य की राजधानी रायपुर में शुरु हो गया. महोत्सव में आदिवासी साहित्य से जुड़े प्रमुख आवाज़ें शिरकत कर रही हैं.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने संबोधन में आदिवासी भाषा, संस्कृति और सभ्यता को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.

छत्तीसगढ़ में पहली बार इस आदिवासी साहित्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. उम्मीद है कि यह आयोजन आदिवासी और दूसरे समुदायों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए एक मज़बूत लिंक का काम करेगा.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कवि पद्म लोकनायक हलधर नाग, पद्मश्री साकी नेती रामचन्द्रा (कोया जनजाति) और अर्जुन सिंह धुर्वे को शॉल और नारियल भेंट कर सम्मानित किया. बघेल ने इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए देश भर से आए साहित्यकारों, रचनाकारों, यूनिवर्सिटी के स्कॉलर, शोधकर्ताओं, विषय-विशेषज्ञों, नर्तकियों और चित्रकारों का स्वागत किया

सीएम ने कहा कि सरगुजा से लेकर बस्तर तक छत्तीसगढ़ कई आदिवासी समुदायों का घर है. इन सभी समुदायों की अपनी अनूठी भाषाएं और संस्कृतियां हैं, जिसकी वजह से राज्य अब देश और विदेश में अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है.

बघेल ने कहा कि आदिवासी संस्कृति और सभ्यता छत्तीसगढ़ की पहचान का एक अभिन्न और बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए उनकी सरकार इसे संरक्षित करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है.

पिछले साल आयोजित किया गया आदिवासी नृत्य महोत्सव सरकार की इन्हीं कोशिशों का हिस्सा था.

छत्तीसगढ़ सरकारी द्वारा उठाए गए दूसरे कदमों में आदिवासी संस्कृति और भाषाओं को संरक्षित करने के लिए 16 अलग-अलग बोलियों में एक किताब तैयार की गई है. इस किताब से पहली और दूसरी कक्षा के छात्रों को अपनी स्थानीय भाषा में पढ़ाई करने में मदद मिलेगी.

इसके अलावा आदिवासी भाषाओं, बोलियों, कला और परंपरा के संरक्षण और संवर्धन के लिए बस्तर में बस्तर अकादमी ऑफ डांस, आर्ट एंड लैंग्वेज (बादल) अकादमी की स्थापना की गई है. इसी तरह की अकादमियां राज्य के दूसरे आदिवासी बहुल जिलों में भी स्थापित की जा रही हैं.

राज्य के अनुसूचित जाति और जनजाति विकास मंत्री डॉ प्रेमसाई सिंह टेकम ने महोत्सव में कहा कि राज्य सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को क्वालिटी शिक्षा देने के लिए 171 अंग्रेजी माध्यम स्कूल शुरू किए हैं. इस योजना से आदिवासी समुदायों के बच्चों को भी फ़ायदा हो रहा है.

तीन दिनो तक चलने वाले इस कार्यक्रम के तहत राज्य स्तरीय कला एवं चित्रकला प्रतियोगिता और नृत्य महोत्सव का भी आयोजन किया जाएगा. साथ ही आदिवासी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए पुस्तक मेला भी है.

राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य सम्मेलन परिचर्चा में झारखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मेघालय, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, कर्नाटक से विद्वान एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार भाग लेंगे. 

20 अप्रैल को महोत्सव से दूसरे दिन जनजातीय साहित्य में लिंग संबंधित मुद्दे, जनजातीय कला साहित्य, जनजातीय साहित्य में सामाजिक-सांस्कृतिक संघर्ष जनजातीय साहित्य मुद्दे, चुनौतियां एवं संभावना विषय पर 12 शोधपत्र प्रस्तुत किए जाएंगे. जनजातीय विकास मुद्दे एवं चुनौतियों पर चतुर्थ सत्र में 15 शोधपत्र प्रस्तुत किए जाएंगे.

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