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आंध्र प्रदेश: आदिवासियों के लिए अस्पताल और उपकरण हैं, लेकिन उन्हें चलाने वाले डॉक्टर और तकनीशियन नहीं

कई अस्पतालों में ज़रूरत के हिसाब से बेड और उपकरण हैं, लेकिन इन उपकरणों को चलाने के लिए जिन विशेषज्ञ डॉक्टरों और तकनीशियनों की ज़रूरत है, वो नहीं हैं. यही वजह है कि आदिवासी इलाज के लिए दूर-दराज़ के अस्पतालों पर जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं.

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम ज़िले के आदिवासी (एजेंसी) इलाक़ों में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है. एक गैर सरकारी संगठन द्वारा की गई फ़ील्ड स्टडी में पता चला है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और तकनीशियनों की भारी कमी है.

हालांकि कई अस्पतालों में ज़रूरत के हिसाब से बेड और उपकरण हैं, लेकिन इन उपकरणों को चलाने के लिए जिन विशेषज्ञ डॉक्टरों और तकनीशियनों की ज़रूरत है, वो नहीं हैं. यही वजह है कि आदिवासी इलाज के लिए दूर-दराज़ के अस्पतालों पर जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं.

एनजीओ प्रजा आरोग्य वेदिका (पीएवी) की एक टीम ने हाल ही में आदिवासी लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं को जानने के लिए एजेंसी इलाक़ों में एक फील्ड स्टडी की.

स्टडी में पाया गया कि सरकार ने भले ही बिस्तरों की संख्या बढ़ा दी है, लेकिन अस्पतालों के बजट में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. न ही अस्पतालों के लिए डॉक्टरों की संख्या में कोई बढ़ोत्तरी की गई है. यहां तक की मेडिकल ऑफ़िसर्स के लिए सैंक्शन किए गए पद भी खाली पड़े हैं.

अरकू गाटी में 150 बिस्तरों वाले एरिया अस्पताल में सिर्फ़ दो डॉक्टर हैं, और पडेरू के जिला अस्पताल में 34 डॉक्टरों की ज़रूरत के मुक़ाबले बस चार डॉक्टर हैं.

अरकू के एरिया अस्पताल में एक स्कैनिंग मशीन है, लेकिन उसको चलाने के लिए स्कैनिंग तकनीशियन नहीं है. इस वजह से इलाक़े की गर्भवती महिलाओं को स्कैनिंग के लिए या तो एस कोटा या पडेरू जाना पड़ता है.

इसी तरह अरकू अस्पताल में आंखों की सर्जरी करने के लिए सभी सुविधाएं हैं, लेकिन इन सर्जरी को करने के लिए ज़रूरी नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं हैं, तो सारे उपकरण पड़े हैं.

डॉक्टरों और तकनीशियनों से बात की गई तो पता चला कि इलाक़ों में उन्हें ठहरने के लिए उचित सुविधाएं नहीं मिलती हैं, तो वो ज़्यादा समय इस पोस्टिंग में रहना नहीं पसंद करते.

दरअसल, सरकार अस्पताल और उनमें चिकित्सा उपकरण की ज़रूरत पूरा कर रही है, लेकिन डॉक्टरों और तकनीशियनों की भर्ती की तरफ़ उसका ध्यान नहीं है. इसका नतीजा यह है कि महंगे चिकित्सा उपकरण पड़े-पड़े बेकार हो रहे हैं.

जहांडॉक्टर हैं, तो वहां दूसरे तकनीशियन नहीं हैं. इलाक़े में अगर किसी गर्भवती महिला को सर्जिकल उपचार की ज़रूरत होती है, तो उसे शहर के किंग जॉर्ज अस्पताल (केजीएच) में रेफ़र किया जाता है. चिकित्सा सहायता मिलने में देरी की वजह से कई बार मां और बच्चे के जीवन ख़तरे में पड़ जाता है.

अरकू का कोविड-केयर सेंटर

कोविड वैक्सिनेशन

जहां तक कोविड से बचाव की बात है, एजेंसी के 11 मंडलों की 11 लाख आदिवासी आबादी में से अब तक सिर्फ़ 1.26 लाख लोगों का ही वैक्सिनेशन हुआ है. मंडल मुख्यालयों के पास बसे गांवों में रहने वाले लोग वैक्सीन लगवा रहे हैं, लेकिन दूरदराज़ के इलाक़ों की बस्तियों के लोगों की कई आशंकाएं हैं, जिन्हें दूर नहीं किया गया है.

एनजीओ का सुझाव है कि जिन आदिवासियों को वैक्सीन लग चुका है, उन्हें वॉलंटियर के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए, ताकि वो वैक्सीन के बारे में हिचकिचाहट दूर कर सकें.

इसके अलावा पीएचसी, सीएचसी, क्षेत्र और ज़िला अस्पतालों में स्थायी आधार पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति और डॉक्टरों को आवास का प्रावधान तुरंत किया जाना चाहिए. इससे डॉक्टरों को एजेंसी इलाक़ों की तरफ़ आकर्षित करने में मदद मिलेगी.

डॉक्टरों को इन इलाक़ों में रहकर प्रैक्टिस करने के लिए विशेष भत्ता और दूसरे फ़ायदे भी देने होंगे.

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