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मेदारम जातरा जाने के लिए आप कर सकते हैं अब हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल

तंबी एविएशन प्राइवेट लिमिटेड, एशिया के इस सबसे बड़े आदिवासी उत्सव, सम्मक्का सरक्का जातरा के लिए मुलुगु जिले के मेदारम में हेलिकॉप्टर सेवा का संचालन कर रहा है.

आज से शुरू हो रहे तीन दिवसीय मेदारम जातरा में पहुंचने के लिए आप हेलीकॉप्टर का सहारा ले सकते हैं.

तेलंगाना राज्य पर्यटन विभाग ने एक निजी एविएशन कंपनी के साथ मिलकर मेदारम जातरा जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए हनमकोंडा से मेदारम तक हेलीकॉप्टर सेवा शुरू की है.

तंबी एविएशन प्राइवेट लिमिटेड, एशिया के इस सबसे बड़े आदिवासी उत्सव, सम्मक्का सरक्का जातरा के लिए मुलुगु जिले के मेदारम में हेलिकॉप्टर सेवा का संचालन कर रहा है.

अधिकारियों के अनुसार जो लोग Covid​​​​-19 से बचना चाहते हैं और समय भी बचाना चाहते हैं, वो मेदारम तक के लिए उड़ान भर सकते हैं.

हेलिकॉप्टर हनमकोंडा में आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज के मैदान से उड़ान भरेगा और मेदारम गांव में उतरेगा. लेकिन यह राइड सस्ती नहीं होगी, इसके लिए ऑपरेटर द्वारा प्रति व्यक्ति 19,999 रुपये चार्ज किए जा रहे हैं.

इसके अलावा मेदारम के हवाई दृश्य के लिए भी आप हेलिकॉप्टर राइड ले सकते हैं, जिसके लिए आपको 3,700 रुपये खर्च करने होंगे.

जिला पर्यटन अधिकारी एम शिवाजी ने बताया कि जो लोग उड़ान भरने का खर्च उठा सकते हैं और जो महामारी को देखते हुए वहां रुकना पसंद नहीं करते हैं, वे हेलीकॉप्टर सेवा का फायदा उठा सकते हैं.

अधिकारियों को इस उत्सव में 1.25 करोड़ भक्तों के आने की उम्मीद है. दो साल में एक बार होने वाला यह उत्सव इस बार 16 फरवरी को मेदारम में शुरू हो रहा है.

तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और दूसरे कई राज्यों के अलग अलग हिस्सों से आदिवासी और गैर-आदिवासी इस उत्सव के लिए जुटेंगे.

Covid ​​​-19 के मद्देनजर, कई श्रद्धालु पहले ही मेदारम में पूजा करने के लिए आ चुके हैं. जतारा से पहले पिछले कुछ दिनों के दौरान अनुमानित चार लाख श्रद्धालु मेदाराम के दर्शन कर चुके हैं.

गोदावरी नदी के किनारे कई राज्यों में वन सीमांत बस्तियों में रहने वाले आदिवासी दो साल में एक बार महान योद्धा सम्मक्का और सरक्का की वीरता का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं.

कोया आदिवासी समुदाय की यह मां-बेटी की जोड़ी करीब आठ शताब्दी पहले काकतीय साम्राज्य के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गई थीं.

आदिवासी उन्हें देवी के रूप में पूजते हैं और अपनी रक्षा करने में उनकी बहादुरी की तारीफ करते हैं.

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