आंध्र प्रदेश के अनाकापल्ली ज़िले के रविकमथम मंडल में अर्जापुरम और कोटनाबेली पंचायत के आदिवासियों ने केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित आधार-आधारित भुगतान सिस्टम (Aadhaar-based payment system – ABPS) के खिलाफ धरना दिया है.
उनकी शिकायत है कि उनके गांवों में चेहरा पहचानने वाला ऐप काम नहीं कर रहे है. उन्होंने कहा कि यह बहाना बनाकर अधिकारियों ने उनके द्वारा किए गए मनरेगा कार्यों के अंतर्गत उन्हें भुगतान करना बंद कर दिया गया है.
अर्जापुरम और कोटनाबेली की दो पंचायतों के अंतर्गत पांच आदिवासी गांव हैं. मनरेगा के तहत काम करने वाले इन गांवों के आदिवासियों ने मांग की है कि उनकी जगह उनकी उपस्थिति लेने के लिए दो ग्राम संसाधन व्यक्तियों को नियुक्त किया जाए, ताकि उन्हें भुगतान किया जा सके.
हालांकि अधिकारी इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि नियमों के अनुसार, भुगतान उनके बैंक खातों में तभी जमा किया जाएगा जब उनका आधार कार्ड, बैंक कार्ड और जॉब कार्ड सभी एक ही नाम पर हो.
आदिवासियों का कहना है कि इससे उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन चेहरे की पहचान का भुगतान काम नहीं कर रहा है क्योंकि उनके गांव सेल फोन टावरों से दूर हैं.
मनरेगा
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 या एनआरईजीए 42, बाद में इसे “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, एमजीएनआरईजीए के नाम से बदल दिया गया. यह एक भारतीय श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा उपाय है जिसका उद्देश्य कार्य करने का अधिकार है.
मनरेगा का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों की रोज़गार प्रदान करने के लिए हर परिवार के लिए है, जिनके वयस्क सदस्य अकुशल मैनुअल काम करते हैं.
मनरेगा का एक और उद्देश्य है टिकाऊ संपत्तियां (जैसे सड़कों, नहरों, तालाबों, कुओं) का निर्माण करें आवेदक के निवास के 5 किमी के भीतर रोजगार उपलब्ध कराया जाना है और न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करना है. यदि आवेदन करने के 15 दिनों के भीतर काम नहीं किया गया है, तो आवेदक बेरोजगारी भत्ता के हकदार हैं. इस प्रकार, मनरेगा के अंतर्गत रोजगार एक कानूनी हकदार है.