तमिलनाडु के तिरुवल्लूर ज़िले के तिरुत्ताणी के 20 इरुला आदिवासी परिवारों को पांच साल के संघर्ष के बाद घर बनाने के लिए ज़मीन और उसके पट्टे दिए गए हैं. इन पट्टों की बदौलत अब उन्हें बिजली और पानी की आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाएं मिल सकेंगी.
यह सभी इरुला परिवार टी पुडूर गांव में एक झील के किनारे फूस के घरों में रह रहे थे. अब उन्हें पट्टाबीरामपुरम गांव में शिफ़्ट कर दिया गया है. स्टेट ट्राइबल एसोसिएशन के तिरुवल्लूर ज़िला सचिव एम तमिलारासन के मुताबिक़ यह आदिवासी पशुपालन, दिहाड़ी मज़दूरी और घर के काम करते थे.
चक्रवात वरदा से इन आदिवासियों का काफ़ी नुकसान हुआ. इनके बच्चे शिक्षा के मौलिक अधिकार से भी वंचित थे.
पिछले साल के अंत में नए आरडीओ सत्या ने पदभार संभाला और इन आदिवासियों के लिए उपयुक्त ज़मीन की पहचान कर, उन्हें जल्द से जल्द पट्टा दिया.
सत्या समुदाय के सदस्यों से मिले, और उनकी समस्याओं के बारे में इन आदिवासियों से बात की. पहले बैच में 20 परिवारों को ज़मीन के पट्टे दिए गए हैं. इन परिवारों के अलावा भी कुछ और परिवार सूची में हैं.
पट्टाबीरामपुरम में जिस ज़मीन का आवंटन किया गया है, वह इन आदिवासियों के पुराने आवास के बेहद क़रीब है. इसलिए यह लोग अपनी पुरानी नौकरी भी रख सकते हैं.
इसके अलावा इरुला बच्चों को स्कूलों में भर्ती कराने और उनकी बढ़ोत्तरी के उपायों को लागू करने पर भी विचार हो रहा है.
इरुला कौन हैं
इरुला एक आदिम जनजाति या पीवीटीजी है, जो तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में रहते हैं. तिरुवल्लूर के अलावा तमिलनाडु में इरुला धर्मपुरी, कुड्डलोर, कोयम्बत्तूर, और नीलगिरी ज़िलों में रहते हैं.
परंपरागत रूप से इरुला आदिवासियों का मुख्य व्यवसाय सांप और चूहे पकड़ना, और जंगल से शहद इकट्ठा करना रहा है. लेकिन अब वो खेत मज़दूरी भी करते हैं.