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केरल सरकार को हाई कोर्ट की फटकार, कहा चेंगारा समझौते का सम्मान कर आदिवासियों को जल्द मिले ज़मीन

सरकार ने ऐसे 1,495 परिवारों की एक सूची बनाई थी, जो ज़मीन पाने के योग्य थे. हालांकि, इनमें से कई परिवारों को अभी तक ज़मीन नहीं मिली है.

केरल हाई कोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार से पतनमतिट्टा ज़िले के चेंगारा में भूमिहीन आदिवासी और दलित परिवारों को ज़मीन देने के लिए 2010 में किए गए एक समझौते का सम्मान करने को कहा है.

जस्टिस देवन रामचंद्रन सरकार के साथ भूमि आवंटन समझौते से संबंधित आदिवासी दलित मुन्नेटा समिति द्वारा 2013 में दायर की गई एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे.

कोर्ट ने कहा कि आदिवासियों और दलित परिवारों के दावे या तो अनसुलझे रह गए हैं, क्योंकि या तो उन्हें वादे के मुताबिक़ ज़मीन नहीं दी गई, या फिर जो दी गई वो रहने लायक नहीं है.

कोर्ट ने सरकार से कहा है कि अगर समझौते के तहत 1,495 परिवारों को ज़मीन पहले ही बांटी जा चुकी है, तो वह सूची भी उपलब्ध कराई जाए.

जस्टिस रामचंद्रन ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार समझौते में किए गए वादों को सम्मान करने के लिए बाध्य है, और सामाजिक न्याय की संवैधानिक अनिवार्यताओं के लिए यह ज़ूरीरी भी है.”

आदिवासी दलित मुन्नेटा समिति ने मांग की है कि कोर्ट समझौते को लागू करने का निर्देश राज्य सरकार को दे.

सरकार ने ऐसे 1,495 परिवारों की एक सूची बनाई थी, जो ज़मीन पाने के योग्य थे. हालांकि, इनमें से कई परिवारों को अभी तक ज़मीन नहीं मिली है.

क्या है चेंगारा पैकेज’?

2001 में, केरल के आदिवासियों ने आदिवासी नेता सी के जानू के नेतृत्व में 45,000 भूमिहीन आदिवासी परिवारों को पांच-पांच एकड़ कृषि योग्य भूमि प्रदान करने की मांग की.

27 सितंबर, 2006 को केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन ने प्रदर्शनकारियों को लिखित आश्वासन दिया कि सरकार 31 दिसंबर, 2006 तक बड़ी संख्या में भूमिहीन परिवारों को भूमि आवंटित करेगी. लेकिन, यह वादा अधूरा ही रहा.

जनवरी 2007 में वादि पूरा न होने की वजह से ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के लिए संघर्ष शुरु हुआ. इसके लिए प्रदर्शनकारियों ने हैरिसन मलयालम लिमिटेड की एक संपत्ति को चुना. हालांकि सरकार के आश्वासन के बाद यह संघर्ष रद्द कर दिया गया.

इसके बाद केरल सरकार ने 2009 में प्रदर्शनकारियों को चेंगारा पैकेज का वादा किया. पैकेज के तहत, कुल 1,738 परिवारों में से 1,432 परिवारों को घर बनाने के लिए ज़मीन और वित्तीय सहायता मिलनी थी. हालांकि, उनमें से अधिकांश ने दी गई ज़मीन स्वीकार करने से यह कहकर मना कर दिया कि दी गई ज़मीन रहने के लिए और केती करने के लिए उपयुक्त नहीं है.

सिर्फ़ 78 परिवारों को रहने योग्य ज़मीन मिली, और बाकि के 1417 परिवार अधर में रह गए. 2011 में चेंगारा संघर्ष का दूसरा चरण शुरू हुआ, जो आज तक जारी है. प्रदर्शनकारियों ने आज तक चेंगारा एस्टेट में ज़मीन पर कब्जा कर रखा है. हालांकि, यह लोग एस्टेट के अंदर बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.

जनवरी 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 573 भूमिहीन परिवारों के कम से कम 3,500 लोग चेंगारा एस्टेट पर फ़िलहाल क़ब्जा बनाए रखे हुए हैं.

राज्य मानवाधिकार आयोग, केरल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य एससी/एसटी आयोग द्वारा राज्य सरकार से बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, लोगों के पास अभी भी राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और घर का नंबर नहीं है.

उम्मीद है कि हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इन आदिवासी परिवारों की मुश्किलों का कुछ समाधान निकलेगा.

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