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हिमंत बिस्वा सरमा की घोषणा पर भड़के बोडो संगठन, छठी अनुसूचि का बताया उल्लंघन

बासुमतारी ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों और प्रखंडों में प्रवासी नेपाली या गोरखा लोगों को संरक्षित वर्ग के रूप में शामिल करने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है. यह असंवैधानिक था और इस निर्णय को 1969 में ही वापस लिया जा चुका है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की आदिवासी बेल्ट से संबंधित एक घोषणा से कई बोडो संगठन नाराज़ हैं. सरमा ने हाल ही में असम के सभी असमिया लोगों को समान भूमि अधिकार सुनिश्चित करने के लिए एक घोषणा की है. उन्होंने यह घोषणा आदिवासी बेल्ट और ब्लॉकों को आरक्षित करने के लिए एक सार्वजनिक बैठक में की थी.

इस घोषणा के खिलाफ बोडोलैंड जनता सुरक्षा मंच (BJSM) नाम के एक संगठन ने गुरुवार को कहा कि ये जनजातीय विरोधी गतिविधि है. इस संगठन ने आरोप लगाया है कि यह मूल निवासियों के ख़िलाफ़ नीति है और इस नीति को रोका जाना चाहिए. 

साथ ही सभी आदिवासी समुदायों से हिमंत बिस्वा सरमा की नीति का बहुत सावधानी से पालन करने का आह्वान किया. मंच ने आदिवासी समूहों से मूल जनजातीय लोगों के खिलाफ किसी भी विनाशकारी योजनाओं और एजेंडे के खिलाफ दृढ़ रहने का भी आह्वान किया.

मीडिया से बात करते हुए बीजेएसएम के अध्यक्ष जनकलाल बसुमतारी ने कहा कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भारत के संविधान का उल्लंघन कर आदिवासी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. 

उन्होंने कहा, “भारत के साथ-साथ असम के आदिवासी लोगों के लिए भूमि आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद 244 (1) (2) के तहत प्रदान किया गया है. असम में पहाड़ी जिलों को 1946 की संविधान सभा के संवैधानिक मसौदे में छठी अनुसूची का दर्जा दिया गया था. असम के मैदानी इलाकों के आदिवासियों को संविधान सभा में सक्षम प्रतिनिधित्व के अभाव में इस लाभ से बाहर रखा गया था.”

उन्होंने यह भी कहा है कि हालाँकि राज्य सरकार ने 1947 में असम भूमि और भूमि राजस्व विनियमन 1886 में संशोधन करके और उक्त असम भूमि विनियमन में अध्याय- 10 के प्रावधान को शामिल करके प्रमुख आदिवासी क्षेत्र में आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक बनाकर आरक्षित आदिवासी भूमि प्रदान की. 

उन्होंने बताया कि इन आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक का एक हिस्सा अब भारत के संविधान की 6वीं अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्र प्रशासन के अधीन है.

बासुमतारी ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों और प्रखंडों में प्रवासी नेपाली या गोरखा लोगों को संरक्षित वर्ग के रूप में शामिल करने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है. यह असंवैधानिक था और इस निर्णय को 1969 में ही वापस लिया जा चुका है. 

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची के तहत आदिवासी आरक्षित भूमि में गोरखाओं और ज्यादातर सामान्य जाति और विदेशी मूल के गोरखाओं को शामिल करने की कोई शक्ति नहीं है. 

इसलिए राज्य सरकार को सदिया आदिवासी क्षेत्र में गोरखा लोगों के संरक्षित वर्ग की अधिसूचना और बीटीसी छठी अनुसूची क्षेत्र में गोरखाओं के संरक्षित वर्ग के लिए कैबिनेट के फैसले को वापस लेना चाहिए. क्योंकि बीटीसी छठी अनुसूची क्षेत्र में कोई संरक्षित वर्ग नहीं है .बीटीसी अधिनियम, 2003 के तहत बीटीसी क्षेत्र की सभी भूमि यहां की जनजातियों के लिए आरक्षित है. 

आदिवासी नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री का घोषित निर्णय कि सभी गैर-आदिवासी मूल निवासियों को छठी अनुसूची क्षेत्र और आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक क्षेत्र सहित असम में भूमि अधिकार और संरक्षण मिलेगा भी असंवैधानिक है. 

उन्होंने कहा कि संवैधानिक रूप से  इस क्षेत्र में गैर-आदिवासी लोगों को भूमि अधिकार संरक्षण और आरक्षण नहीं मिल सका क्योंकि उन्हें इस तरह के संरक्षण और आरक्षण की आवश्यकता नहीं समझी गई थी. 

बासुमतारी ने कहा कि अखिल असम जनजातीय अधिकार संरक्षण समिति (AATRPC), मुख्यालय गुवाहाटी और बोडोलैंड जनता सुरक्षा मंच (बीजेएसएम), मुख्यालय कोकराझार जनजातीय लोगों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग को राष्ट्रपति के समक्ष उठाएंगे.

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