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जनजातीय जीवन, इतिहास और संघर्ष की झलक दिखाने वाले संग्रहालय

आदिवासी भारत की इस विविधता को समझने में मदद करने वाले देश में कई बड़े संग्रहालय (Museum) हैं. आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं

भारत में विविधता में एकता सबसे बड़ी ख़ासियत मानी जाती है. इस संदर्भ में भारत की आदिवासी संस्कृति तो विविधता से कहीं अधिक भरी हैं.

यह विविधता आदिवासी जीवनशैली, सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं के साथ साथ उनके गीत-संगीत और त्योहारों में मिली है.

आदिवासी भारत की इस विविधता को समझने में मदद करने वाले देश में कई बड़े संग्रहालय (Museum) हैं.

रांची स्थित बिरसा मुंडा संग्रहालय

झारखंड की राजधानी में बना यह संग्रहालय स्वतंत्रता आंदोलन के महत्वपूर्ण नायक बिरसा मुंडा को समर्पित है. यहाँ उनके सामान, तस्वीरें, दस्तावेज़ और अन्य यादगार वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है.

झारखंड और अन्य राज्यों के आदिवासी लोगों द्वारा उन्हें एक नायक और शहीद के रूप में याद किया जाता है. इस संग्रहालय को उसी ज़मीन पर बनाया गया जहाँ उनकी मृत्यु हुई.

दरअसल, यह उस समय जेल हुआ करती थी. संग्रहालय में बिरसा मुंडा की 25 फुट की मूर्ति के साथ अन्य आदिवासी नायकों की मूर्ती है. यहाँ का लाइट एंड साउंड शो उनकी जीवन कहानी बताता है.

भोपाल का जनजातीय संग्रहालय

मध्यप्रदेश के श्यामला हिल्स स्थित यह आजायबघर आपको राज्य की स्थानीय जनजातियों की संस्कृति की एक गहन यात्रा पर ले जाएगा.

बड़े रंगीन प्रदर्शनों के साथ, संग्रहालय बड़ी संख्या में आदिवासी समूहों की कला, परंपराओं, दैनिक जीवन और रीति-रिवाजों को दर्शाता है.

यहां पर राज्य की 7 मुख्य जनजातियों (गोंड, भील, बैगा, कोल, कोरकू, सहरिया और भारिया) के जीवन, अद्भुत ज्ञान प्रणालियों और सौंदर्य के मनोरम पहलुओं का वर्णन करता है.

संग्रहालय में आदिवासी रीति-रिवाजों, त्योहारों, मिथकों और शिल्पकला को दर्शाती छह गैलरियों के अलावा एक पुस्तकालय, एक सभागार भी है.

जनजातीय अनुसंधान संस्थान संग्रहालय, भुवनेश्वर

जनजातीय अनुसंधान संस्थान संग्रहालय, जिसे जनजातीय कला और शिल्पकला के संग्रहालय के रूप में भी जाना जाता है, ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक संग्रहालय है.

ओडिशा का यह संग्रहालय राज्य के 60 से अधिक आदिवासी समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है. इसमें आदिवासी समुदायों से इकट्ठा किए गए आभूषण, पोशाक, मूर्तियां, हथियार, संगीत वाद्ययंत्र, घरेलू वस्तुएं, कृषि उपकरणों को प्रदर्शित किया गया है.

इसमें जनजातीय आवासों की कृत्रिम प्रतियाँ भी हैं, और समय के साथ इन समुदायों के विकास के विभिन्न चरणों की गहरी जानकारी मिलती है.

ट्राइबल म्यूज़ियम, अराकू घाटी

अराकू जनजातीय संग्रहालय कोई ऐतिहासिक स्थान नहीं है बल्कि वर्तमान में यहां रहने वाली जनजातियों के बारे में जानकारी प्रदान करता है.

इसके निर्माण का उद्देश्य आदिवासी संस्कृति और जीवन शैली के बारे में जागरूकता पैदा करना है. जनजातीय जीवन को चित्रित करने के लिए मिट्टी तथा वास्तविक धातुओं से बनाया गया है.

इसे आदिवासी जीवन शैली को प्रदर्शित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसके प्रवेश द्वार पर आदिवासी के विवाह समारोह को कैद करने वाली 10 तस्वीरों की एक दिलचस्प श्रृंखला है.

जनजातीय संग्रहालय का सबसे प्रभावशाली खंड वह है जो स्थानीय जनजातीय मयूर और ढिम्सा नृत्य को प्रदर्शित करता है.

लिविंग एंड लर्निंग डिज़ाइन सेंटर (एलएलडीसी)

कच्छ की शिल्प विरासत को संरक्षित और पुनर्जीवित करने के लिए श्रुजन ट्रस्ट द्वारा 2016 में लिविंग एंड लर्निंग डिज़ाइन सेंटर (एलएलडीसी) की स्थापना की गई थी.

संग्रहालय के अलावा, परिसर में एक गैलरी, एक पुस्तकालय, तीन शिल्प स्टूडियो और एक कैफे भी है जो स्थानीय भोजन परोसता है. यहां 12 से अधिक समुदायों की आदिवासी महिलाएं 50 प्रकार की कढाई करती हैं और प्रदर्शित करती हैं.

आदिवासी अजायबघर, केलांग

यह संग्रहालय हिमालय की दो सुंदर घाटियों लाहौल और स्पीति के आदिवासियों की संस्कृति और इतिहास को प्रदर्शित करता है.

संग्रहालय आदिवासी लोगों की वेशभूषा, आभूषण, हथियार, संगीत वाद्ययंत्र, पेंटिंग और मूर्तियां प्रदर्शित करता है, जो बौद्ध और हिंदू धर्मों से संबंधित हैं. संग्रहालय में इतिहास और धर्म से जुड़े दुर्लभ सिक्के, टिकटें और तस्वीरें भी मौजूद हैं, जो आदिवासी जीवन के ऐतिहासिक और धार्मिक पहलुओं को दर्शाते हैं.

ट्राइबल म्यूजियम, पूणे

राज्य की जनजातीय कला और संस्कृति को प्रदर्शित करता है. यह संग्रहालय वारली, ठाकर, भील, गोंड और कोली जैसे विभिन्न समुदायों से जुड़ी वेशभूषा, आभूषण, हथियार, संगीत, पेंटिंग और मूर्तियां की सुंदर झांकी प्रस्तुत करता है.

संग्रहालय में एक पुस्तकालय भी है, जिसमें आदिवासी अध्ययन से संबंधित किताबें और पत्रिकाएँ हैं. यहाँ एक गैलरी भी है जिसमें आदिवासी कला से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन होता है.

डॉन बॉस्को सेंटर फॉर इंडिजिनस कल्चर्स, शिलांग

यह संग्रहालय जनजातीय कलाकृतियों का एक आकर्षक भंडार है. इसकी इमारत सात मंजिल ऊंची है, जिसकी प्रत्येक मंज़िल पूर्वोत्तर के सात राज्यों में से एक का प्रतिनिधित्व करती है.

इमारत की वास्तुकला एक छत्ते के आकार की है जो प्रकाश और ताजी हवा को आसानी से गुजरने देती है. संग्रहालय में एक पुस्तकालय, एक सम्मेलन कक्ष, एक कैफेटेरिया और एक स्काईवॉक भी है, जो शहर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है.

जनजातीय संग्रहालय, मैसूर

मैसूर का यह संग्रहालय राज्य की आदिवासी संस्कृति और इतिहास को प्रदर्शित करता है. संग्रहालय में विभिन्न समुदायों से संबंधित कलाकृतियाँ, वेशभूषा, आभूषण, हथियार, संगीत वाद्ययंत्र, चित्र और मूर्तियां सुसज्जित हैं.

इस आजायबघर में आदिवासी लोक-साहित्य और परिस्थिक विज्ञान के लिए अलग खंड है.

जनजातीय संग्रहालय, पोर्ट ब्लेयर

अंडमान और निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में जनजातीय संग्रहालय उनकी संस्कृति और इतिहास को प्रदर्शित करता है.

संग्रहालय में आदिवासियों की कलाकृतियाँ, वेशभूषा, आभूषण, हथियार, संगीत वाद्ययंत्र, पेंटिंग और मूर्तियां प्रदर्शित हैं, जो जारवा, ओन्गे, सेंटिनलीज़ और शोम्पेन जैसे विभिन्न समुदायों से संबंधित हैं.

संग्रहालय में आदिवासी मानवविज्ञान पर एक खंड भी है, जिसमें आदिवासियों की भौतिक, सामाजिक और भाषाई विशेषताओं के बारे में जानकारी है, और आदिवासी पुरातत्व पर एक खंड है, जिसमें द्वीपों के प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक स्थलों के बारे में जानकारी है.

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