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राज्यसभा ने जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी समुदाय को एसटी सूची में जोड़ने के विधेयक को दी मंजूरी

जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल ने कहा कि कुछ लोग राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं. वह लोगों को भड़का रहे हैं. दरअसल उन्होंने कभी जनजातीय समुदाय का भला नहीं किया. अब राजनीतिक रूप से सशक्त बनाए जाने के बाद वे निहित स्वार्थ के चलते बरगलाकर अपना हित साधना चाहते हैं.

जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में अनुसूचित जनजाति गुज्जर-बकरवाल समुदाय (Gujjar-Bakarwal community) द्वारा चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच 9 फरवरी को राज्यसभा ने पहाड़ी जातीय समूह को केंद्र शासित प्रदेश की अनुसूचित जनजाति सूची (Scheduled Tribes list) में शामिल करने का रास्ता साफ कर दिया है.

इसके साथ ही उच्च सदन ने उन विधेयकों को पारित कर दिया, जिनमें पद्दारी जनजाति (Paddari Tribe), गड्डा ब्राह्मण (Gadda Brahmin) और कोली समुदायों (Koli communities) को एसटी सूची (ST list) में और वाल्मिकी समुदाय (समानार्थी शब्द सहित) को जम्मू और कश्मीर की अनुसूचित जाति सूची में जोड़ा गया है.

काफी चर्चा के बाद राज्यसभा ने उन तीनों विधेयकों को भारी बहुमत से पारित कर दिया, जिन्हें पहले लोकसभा ने पारित किया था.

विधेयकों पर चर्चा के अपने जवाब के दौरान जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) ने जम्मू-कश्मीर में मौजूदा अनुसूचित जनजाति समुदायों जैसे गुज्जर-बकरवाल और गद्दी समुदायों की चिंता को संबोधित किया.

उन्होंने कहा, “यह विधेयक यह सुनिश्चित करेगा कि इन नए समुदायों को अतिरिक्त आरक्षण देते समय इन मौजूदा जनजातियों के लिए पहले से उपलब्ध आरक्षण बरकरार रखा जाएगा. सभी को न्याय मिले और किसी भी समुदाय का आरक्षण प्रभावित न हो, यह सुनिश्चित करने का काम इस विधेयक के माध्यम से किया जा रहा है.”

वहीं गुज्जरों और बकरवालों के बढ़ते विरोध को देखते हुए बीजेपी ने इस संदेश को जमीन पर भी पहुंचाना शुरू कर दिया है. जम्मू-कश्मीर बीजेपी अध्यक्ष रविंदर रैना ने कहा, “गुर्जर और बरकरवाल का एसटी कोटा अप्रभावित रहेगा और इसमें कोई कमी नहीं होगी.”

प्रदर्शनकारी गुर्जर समुदाय के नेताओं ने पहले ही केंद्र के कदम के खिलाफ अपना आंदोलन तेज़ करने की धमकी दी है.

गुर्जर नेता जाहिद परवाज़ चौधरी ने कहा, “जब भाजपा लोगों का विकास करने में विफल रही तो उसने आरक्षण को दान के रूप में बांटना शुरू कर दिया है. उपवर्गीकरण सिर्फ चुनाव के लिए किया जा रहा है. यह आरक्षण राजनीतिक लाभ के लिए है.”

पहाड़ी समुदाय के लिए ऐतिहासिक क्षण

वहीं पहाड़ी समुदाय के नेताओं ने संसद में अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंधित विधेयक पारित होने की सराहना की है.

उन्होंने संसद में संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024 के पारित होने को एक ऐतिहासिक क्षण बताया है.

नेताओं ने इसे पूरी जनजाति के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बताते हुए कहा कि वे बहुत खुश हैं क्योंकि भारत सरकार ने इस लंबी मांग को पूरा कर दिया है.

पहाड़ी एसटी जनजाति फोरम के वरिष्ठ नेता एहसान मिर्जा ने कहा कि पहाड़ों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग तीन दशक से भी ज्यादा पुरानी है और इस मांग को पूरा कराने के लिए लोगों ने काफी संघर्ष किया है.

उन्होंने कहा कि एक के बाद एक सरकारों ने पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने के लिए कदम उठाए लेकिन कोई अंतिम कदम नहीं उठाया गया और चीजें समितियों, आयोग और उसकी रिपोर्टों तक ही सीमित रहीं.

पूर्व एमएलसी और भाजपा के महासचिव विबोध गुप्ता, जो एक पहाड़ी नेता भी हैं, उन्होंने कहा, “आज पहाड़ी जनजाति के लिए एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि हमें अंततः अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी गई है. दशकों का संघर्ष भाजपा सरकार द्वारा दिए गए न्याय के इस क्षण में परिणत हुआ है.”

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में गुज्जर, बकरवाल और पहाड़ी भाई एकजुट, सशक्त और सुरक्षित हैं.

पहाड़ी समुदाय को अलग से मिलेगा 10% आरक्षण

जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी समुदाय को दस फीसदी अनुसूचित जनजाति संवर्ग में आरक्षण मिलेगा. उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने बताया कि पहाड़ी समुदाय की 12 लाख की आबादी को नौकरी, शिक्षा के साथ ही अब राजनीतिक आरक्षण भी मिलने लगेगा.

इन इलाकों का भी विकास ट्राइबल प्लान के तहत होगा. लेकिन इससे पहले से अनुसूचित जनजाति में शामिल गुज्जर-बकरवाल समुदाय के आरक्षण पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्हें पहले की तरह 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा. उनके हक का एक प्रतिशत हिस्सा भी नहीं कटेगा.

राजभवन में पत्रकारों से बात करते हुए मनोज सिन्हा ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह ने राजोरी और बारामुला की रैली में पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का भरोसा दिलाया था. साथ ही गुज्जर-बकरवालों को आश्वस्त किया था कि उनके आरक्षण में किसी प्रकार की कटौती नहीं होगी.

संसद से पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने का बिल पास होने के बाद भी यही स्थिति है.

पहाड़ी समुदाय के लिए अलग से दस फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा. नौकरी और शिक्षा में जो भी पद गुज्जर-बकरवालों के लिए आरक्षित होंगे उन पर किसी अन्य समुदाय या जाति के लोगों को सुविधा नहीं मिलेगी.

गुज्जरों को पहली बार मिला वन अधिकार

उप राज्यपाल ने गुज्जर-बकरवालों के लिए पिछले चार साल में किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद ही वास्तविक रूप से गुज्जरों-बकरवालों को आरक्षण तथा अन्य लाभ मिलना शुरू हुआ है.

पहली बार वन अधिकार अधिनियम प्रदेश में लागू किया गया और जनजातीय समुदाय के लोगों को वनाधिकार सौंपे गए.

उप राज्यपाल ने कहा कि कुछ लोग राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं. वह लोगों को भड़का रहे हैं. दरअसल उन्होंने कभी जनजातीय समुदाय का भला नहीं किया. अब राजनीतिक रूप से सशक्त बनाए जाने के बाद वे निहित स्वार्थ के चलते बरगलाकर अपना हित साधना चाहते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि ऐसे लोगों ने न तो कभी गुज्जरों और न ही कभी पहाड़ियों का भला किया है. ऐसे लोगों से सावधान रहने और उन्हें बेनकाब करने की जरूरत है. उनके किसी भी बहकावे में आने की जरूरत नहीं है. किसी का भी हक नहीं नहीं कटेगा.

गुज्जर-बकरवाल कर रहे विरोध

अब तक गुज्जर-बकरवाल समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था और इस समुदाय के सदस्यों के लिए सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण था.

गुज्जर-बकरवाल समुदाय का कहना है कि पहाड़ी लोग समाज के संपन्न वर्ग से आते हैं. उनका कहना है कि वे सामाजिक रूप से उच्च वर्ग के आर्थिक रूप से संपन्न लोग हैं जिनकी साक्षरता दर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में औसत से ऊपर है.

राज्य की आबादी में 40 फीसदी हिस्सेदारी पहाड़ी समुदाय की है. पहाड़ी भाषाई अल्पसंख्यक हैं. जम्मू के राजौरी और पुंछ के पहाड़ों और कश्मीर के कुपवाड़ा व बारामूला जिलों में इनकी आबादी रहती है.

(Photo credit:

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