कोविड-19 लॉकडाउन ने दुनिया भर के लोगों की आजीविका को प्रभावित किया है. ज़्यादातर सेवाओं के बंद होने से कई लोगों की नौकरी चली गई. इनमें भी पहले से ग़रीब और हाशिए पर मौजूद लोगों पर असर ज़्यादा पड़ा है.
आज हम आपको ऐसे ही एक आदमी की कहानी बताना चाहते हैं. तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले के पेरवुरानी कस्बे के एक वकील को लॉकडाउन के दौरान अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए टोकरियां बुनने को मजबूर होना पड़ा.
34 साल के उत्तमकुमारन कुरवर आदिवासी समुदाय से आते हैं. इस समुदाय के लोग टोकरियां बुनने में माहिर हैं, और यही उनकी आजीविका का मुख्य साधन है. लेकिन, उत्तमकुमारन ने कई मुश्किलों को पार कर लॉ डिग्री हासिल की, और एक वकील के तौर पर लगभग दस साल से काम कर रहे थे.

उत्तमकुमारन वकील बनने के बाद भी अपनी पहचान को नहीं भूले, और लगातार अपने और दूसरे आदिवासी समुदायों की मदद करते थे. इसके लिए उन्होंने कुरिंजी एज़ुची कज़गम नाम की संस्था भी स्थापित की थी.
लेकिन जब मार्च 2020 में कोविड-19 ने पूरी दुनिया को ठप कर दिया, तब उत्तमकुमारन की नौकरी भी चली गई, और उन्हें टोकरियां बुनने के अपने पारंपरिक व्यवसाय की तरफ़ वापस जाना पड़ा.
उनका कहना है कि वैसे तो सभी व्यवसायों और समुदायो के लोग कोविड-19 महामारी से प्रभावित हुए, लेकिन आदिवासियों पर इसका असर कुछ ज़्यादा ही बुरा हुआ. पहले से ही आजीविका कमाने की जद्दोजहद में लगे ज़्यादातर आदिवासी कोविड की वजह से और पिछड़ गए.
खुद उत्तमकुमारन कई महानों से काम नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि कोर्ट में ज़्यादातर मामले टल रहे हैं.
आय का एक वैकल्पिक स्रोत खोजने के लिए, उन्होंने ईचम के पेड़ के पत्तों को इकट्ठा करने और उनसे टोकरियाँ बुनने के लिए नदी के किनारे जाना शुरू किया. लेकिन लॉकडाउन में टोकरियों की बिक्री भी ज़्यादा नहीं हो रही.
इसकी एक वजह यह भी है कि पहले से ही इन आदिवासियों के पास टोकरियां बेचने का कोई तरीका नहीं था. उनके पास कोई प्रक्रिया है, जो सुनिश्चित करे कि उनके द्वारा बनाई गई चोकरियां किसी बाज़ार तक पहुंचेंगी.
आमतौर पर जब लोगों को टोकरियों की ज़रूरत होती है तो वो इन आदिवासियों की बस्ती में आकर इन्हें खरीदते हैं. लेकिन यह तरीक़ा लॉकडाउन के समय कारगर नहीं हुआ.
इसके अलावा कुरावर समुदाय के लोग साप्ताहिक बाज़ारों में अपनी टोकरियां बेचते थे, लेकिन लॉकडाउन ने ऐसे सभी बाज़ारों को बंद कर दिया.
उत्तमकुमारन बताते हैं, “हम बस किसी तरह से जी रहे हैं. जीना भी रोज़ मुश्किल होता जा रहा है. सरकार के प्रतिनिधियों और गैर सरकारी संगठनों ने कई स्थानों पर राहत उपायों की घोषणा और कार्यान्वयन किया है. लेकिन हमारे लोगों के लिए कुछ नहीं हो रहा है. हमें अब तक कोई राहत नहीं मिली है. सरकार को हमारे समुदाय की दुर्दशा का संज्ञान लेना चाहिए और हमें राहत देनी चाहिए.”
(यह आर्टिकल कवि प्रिया ने लिखा है, और adivasilivesmatter.com पर छपा था)