मध्य प्रदेश सरकार ने खरगोन जिले में 35 वर्षीय आदिवासी युवक की हिरासत में मौत के मामले में कथित लापरवाही के लिए एक और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को निलंबित कर दिया है.
आदिवासी व्यक्ति के परिवार के सदस्यों और कुछ संगठनों ने आरोप लगाया था कि पुलिस हिरासत में क्रूरता के कारण उसकी मौत हुई है. सोमवार देर रात जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है, “राज्य सरकार ने भीकनगांव (खरगोन जिले) के पुलिस उप-मंडल अधिकारी प्रवीण कुमार उइके को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है.”
बयान में आगे कहा गया है कि उइके को 6 और 7 सितंबर की दरम्यानी रात को गिरफ्तार व्यक्ति की मौत से संबंधित मामले में खराब निगरानी और लापरवाही के लिए निलंबित किया गया है.
दरअसल मध्य प्रदेश में आदिवासियों से जुड़े अपराध के मामले को लेकर सियासत जारी है. रविवार को ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खरगोन की घटना को लेकर बड़ा फैसला लेते हुए एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान को हटा दिया था.
इससे पहले आदिवासी युवक की मौत के मामले में एएसआई समेत चार पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हो चुकी है. सरकार ने पहले ही घटना के लिए जिम्मेदार दो एसआई को लाइन अटैच और चार पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने की कार्रवाई की थी.
खरगोन उप-जेल में आदिवासी युवक की मौत के बाद 100 से अधिक गुस्साए ग्रामीणों के एक समूह ने 7 सितंबर की सुबह बिस्तान पुलिस स्टेशन पर हमला किया, जिसमें तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए थे.
अधिकारियों ने पहले कहा था कि मरने से तीन दिन पहले राज्य की राजधानी भोपाल से 300 किलोमीटर से अधिक दूर स्थित खैरकुंडी गांव में डकैती की घटना में 11 अन्य लोगों के साथ उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था.
जिसके बाद राज्य सरकार ने जिला जेल अधीक्षक, एक पुलिस उप-निरीक्षक, एक हेड कांस्टेबल और दो कांस्टेबल को यह कहते हुए निलंबित कर दिया था कि मामले की निष्पक्ष न्यायिक जांच की जाएगी.
वहीं रविवार को शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि पूरे मामले की न्यायिक जांच हो रही है. जांच रिपोर्ट आने के बाद संबंधित दोषियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि हम ऐसी सभी घटनाओं को बहुत गंभीरता से लेते हैं. इसलिए जांच में लापरवाही को लेकर हमारी सरकार ने खरगोन एसपी को भी हटाने का फैसला किया.
जबकि विपक्षी कांग्रेस ने न्यायिक हिरासत में व्यक्ति की मौत की सीबीआई जांच की मांग की थी और उसके परिवार के लिए एक करोड़ रुपये का मुआवजा भी मांगा था.
यह मामला शिवराज सिंह सरकार को परेशान कर रहा है. लेकिन सरकार इसमें फ़ौरी तौर पर आदिवासी समुदाय के ग़ुस्से को शांत करने में लगी है. सरकार के लिए राजनीतिक नफ़ा नुक़सान प्राथमिकता है.
लेकिन अभी तक सरकार ने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है जिसमे आदिवासी समुदाय पर अत्याचार रोकने की दूरदर्शिता नज़र आती है.