घोषणा बड़ी और ऐसी होनी चाहिए कि सुनने वालों के मुँह खुले रह जाएँ. मसलन स्मार्ट सिटी, फ्यूचर सिटी आदि आदि. इसी तर्ज़ पर आदिवासी आबादी के लिए नई घोषणा हुई है.
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने सोमवार को कहा कि केंद्र ग्रामीण विकास, वन अधिकारों के संरक्षण और आदिवासी समुदायों की जातीय प्रथाओं पर जोर देने के साथ 36,000 बस्तियों को “आदिवासी गांवों के मॉडल” में बदलने की योजना बना रहा है.
जनजातीय मामलों के मंत्री ने कहा कि इन गांवों में से 1,700 गांव असम में होंगे. अर्जुन मुंडा ने मीडिया से कहा, “हम इन गांवों को इस तरह विकसित करने की योजना बना रहे हैं कि ग्रामीण विकास, जातीय या स्वायत्त प्रणालियों की सुरक्षा, वन अधिकार और उद्यमिता जैसे विभिन्न कारकों को जोड़ा जा सके.”
उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के तहत चुने गए गांवों में बुनियादी सुविधाओं में भी सुधार किया जाएगा.
उन्होंने कहा, “हमने यहां मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ इस पर चर्चा की है. 50 फीसदी से अधिक आदिवासी आबादी वाले गांवों को प्रस्तावित कार्यक्रम के लिए प्राथमिकता दी जाएगी.”
अर्जुन मुंडा कामकाज की समीक्षा के लिए असम के दो दिवसीय दौरे पर थे. उन्होंने कहा कि मंत्रालय जनजातीय समुदायों के समग्र विकास के उद्देश्य से सभी योजनाएं और कार्यक्रम चला रहा है.
दो दिवसीय दौरे के दौरान अर्जुन मुंडा ने लघु वन उपज के मार्केटिंग सिस्टम और वन धन स्वयं सहायता समूहों सहित आदिवासी विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा की.
उन्होंने कहा, “मुझे राज्य के आदिवासी लाभार्थियों द्वारा विकसित 25 से अधिक उत्पाद दिखाए गए. यह बहुत उत्साहजनक है.”
अर्जुन मुंडा ने राज्य के दो दिवसीय दौरे के दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से भी मुलाकात की. मुख्यमंत्री के साथ इस लंबी बैठक का उद्देश्य राज्य में लघु वन उपज, वन धन स्वयं सहायता समूह और ट्राइफेड परियोजनाओं जैसे जनजातीय विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की स्थिति की समीक्षा करना, और उनके बारे में जानकारी हासिल करना था.
इस बैठक में असम सरकार के कई मंत्री और प्रमुख सचिव और ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक प्रवीर कृष्ण तथा अन्य अधिकारी भी उपस्थित थे.
वहीं असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में राज्य के आदिवासियों के लिए 3 बड़ी घोषणाएं की है. सीएम ने राज्य में 400 वन धन विकास केंद्र, 5 आदिवासी फूड पार्क और 7 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय खोलने का फैसला किया है.
एक तरफ जहां राज्य के मुख्यमंत्री और केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा असम की जनजातियों के हित में खड़े दिखाई देने का दावा कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान अर्जुन मुंडा ने असम के छह समुदायों द्वारा की गई अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के पूरा होने में प्रगति पर कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी.
इस मसले पर अर्जुन मुंडा ने सोमवार को कहा कि केंद्र ने इसे ‘‘सकारात्मक तरीके’’ से लिया है. हालांकि उन्होंने इसे लेकर कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी.
उन्होंने कहा कि मांग पर चर्चा के दौरान कुछ मुद्दे उभरे और उन पर विचार किया जा रहा है.
अर्जुन मुंडा ने मीडिया से कहा, ‘‘केंद्र सरकार मामले पर गौर कर रही है और यह विचाराधीन है. यह (अनुसूचित जनजाति का दर्जा) ऐसा मामला है जिसमें काफी शोध की जरूरत है. यह राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत विभिन्न स्तरों से होकर गुजरने वाली एक लंबी प्रक्रिया है. यह प्रक्रिया में है और मैं अभी इतना ही कह सकता हूं.’’
यह पूछे जाने पर कि मामला अभी किस स्तर पर है, केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘सरकार ने इसे सकारात्मक तरीके से लिया है और इस पर विचार विमर्श के दौरान कुछ मुद्दे सामने आए हैं. इन मुद्दों पर गौर किया जा रहा है.’’
दरअसल असम के छह समुदाय – टी ट्राइब, ताई अहोम, चुटिया, कोच-राजबंशी, मोटॉक और मोरन अपने लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं. जिसे न तो केंद्र या राज्य में कांग्रेस या बीजेपी की सरकारों ने पूरा किया है. राज्य में टी ट्राइब जो दरअसल मुंडा, संथाल या खडिया समुदाय से हैं, आज भी जनजाति के दर्जे के इंतज़ार में है.