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महाराष्ट्र: आदिवासी आदमी की पुलिस हिरासत में मौत, परिवार ने की जांच की मांग

समुदाय की मांग है कि भीम काले की मौत की जांच हो, और इसके लिए ज़िम्मेदार पुलिसकर्मियों पर मामला चलाया जाए. इसके अलावा उनकी मांग है कि काले के परिजनों को मुआवज़े के तौर पर सरकारी नौकरी दी जाए.

महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के विजापुर पुलिस थाना इलाक़े में कथित तौर पर हिरासत में प्रताड़ित किए जाने के बाद फ़ासे पारधी जनजाति के एक 35 साल के आदमी, भीम काले, की मौत हो गई.

काले की मौत 3 अक्टूबर को अस्पताल में हुई, लेकिन उनके परिवार को दो दिनों तक उनका शव स्वीकार नहीं किया. शव को मोर्चरी में रखा गया क्योंकि परिवार और सैकड़ों पारधी आदिवासियों ने सोलापुर  में धरना दिया और जांच की मांग की. 5 अक्टूबर को परिवार ने शव को स्वीकार कर उसका अंतिम संस्कार किया.

काले के परिवार का आरोप है कि शहर में अपराध होने पर उनके समुदाय के सदस्यों को अक्सर पुलिस उठा लेती है.

काले अपनी पत्नी स्वाति और सात बच्चों के साथ रहते थे, और खेत मज़दूरी कर आजीविका कमाते थे. काले को 18 सितंबर को पुलिस ने उनके घर से हिरासत में लिया, लेकिन 23 सितंबर को ही यानि पांच दिन बाद अदालत में पेश किया गया.

आदिवासी पूछते हैं कि पुलिस ने उसे लगभग एक हफ्ते तक अवैध हिरासत में क्यों रखा? उनका दावा है कि अवैध हिरासत के दौरान भीम काले को बुरी तरह पीटा गया.

भीम काले के चचेरे भाई राजेश ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने काले के पैर तोड़ दिए, और चाहते थे कि वह उन अपराधों को कबूल करे जो उसने नहीं किए थे. राजेश का दावा है कि पुलिस हिरासत में पीटे जाने से उसके दोनों पैर टूट गए.

भीमा काले की पुलिस हिरासत में मौत हुई

23 सितंबर को अदालत ने उसे दो दिन के पुलिस रिमांड पर भेज दिया. जब भीम काले की पत्नी पुलिस स्टेशन में उससे मिलने गई, तो देखा कि उसके पैर से खून बह रहा है और वो दर्द से कराह रहा है.

अगले दिन यानि 24 सितंबर को उनकी पत्नी ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने तुरंत हस्तक्षेप का आदेश दिया. काले को 25 सितंबर को फिर से अदालत में पेश किया जाना था, लेकिन उससे पहले उसे एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, और एक कांस्टेबल को अदालत में सुनवाई के लिए भेजा गया.

परिवार का आरोप है कि हालांकि पोस्टमॉर्टम वीडियो टेप किया गया था, परिवार को अभी तक रिपोर्ट नहीं दी गई है. इसलिए वो कुछ गड़बड़ी का आरोप लगा रहे हैं, और जांच की मांग कर रहे हैं.

दादाजी आदिवासी फ़ासे पारधी समाज संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मतीन भोसले ने मिड-डे से बातचीत के दौरान कहा, “हमारे समुदाय को अक्सर पुलिस की बर्बरता और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है. पुलिस जानती है कि हमारी मदद करने वाला कोई नहीं है, इसलिए वो हमें परेशान करते हैं. उन्हें लगता है कि हम अपराधी हैं. एपीआई कोल्हयाल को पुलिस हिरासत में काले पर हमला करने का अधिकार किसने दिया?”

फ़ासे पारधी समुदाय ब्रिटिश राज के समय से चोरों के टैग के साथ जी रहा है. समुदाय के लोग कहते हैं कि उन्हें हिरासत में लेने के लिए पुलिस अक्सर नकली या मनगढ़ंत सबूत पेश करती है.

समुदाय की मांग है कि भीम काले की मौत की जांच हो, और इसके लिए ज़िम्मेदार पुलिसकर्मियों पर मामला चलाया जाए. इसके अलावा उनकी मांग है कि काले के परिजनों को मुआवज़े के तौर पर सरकारी नौकरी दी जाए.

उधर पुलिस का दावा है कि काले की तबीयत ठीक नहीं थी, और उसकी मौत दिल और गुर्दे की बीमारियों समेत दूसरे कई बीमारियों के चलते हुई. मामले को जांच के लिए सीआईडी, सोलापुर  को सौंप दिया गया है.

सोलापुर पुलिस आयुक्त अंकुश शिंदे ने कहा, “काले एक हिस्ट्रीशीटर था और हमने उसे एक घर में चोरी के मामले में गिरफ्तार किया था क्योंकि उसकी मोटरसाइकिल अपराध स्थल के पास देखी गई थी. लेकिन गिरफ्तारी के तुरंत बाद वह बीमार पड़ गया और हमने उसे अस्पताल में भर्ती कराया जहाँ उसकी मौत हो गई. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ बताया गया है.

पुलिस इंस्पेक्टर उदय पाटिल के मुताबिक़ काले का डायलिसिस चल रहा था क्योंकि उसकी किडनी खराब हो गई थी. इसके अलावा काले का मानसिक उपचार भी चल रहा था. पुलिस यह भी दावा कर रही है कि काले की टांगें नहीं टूटी थीं.

लेकिन परिवार का दावा है कि पुलिस खुद को बचाने के लिए तथ्यों में हेरफेर कर रही है, और भीम काले पूरी तरह से फिट और ठीक था.

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