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सुप्रीम कोर्ट: डिजिटल डिवाइड छीन रहा बच्चों से शिक्षा का मौलिक अधिकार, आदिवासी इलाकों की स्थिति और भी ख़राब

छोटे बच्चे जिनके माता-पिता इतने गरीब हैं कि महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं के लिए घर पर लैपटॉप, टैबलेट या इंटरनेट पैकेज नहीं खरीद सकते हैं, उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा. ऊपर से इनमें से बाल मज़दूरी या उससे भी बदतर, ट्रैफ़िकिंग का शिकार हुए.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चेतावनी दी कि ऑनलाइन कक्षाओं से होने वाला डिजिटल डिवाइड हर ग़रीब बच्चे के मुख्यधारा के स्कूलों में पढ़ने के मौलिक अधिकार को खत्म कर देगा.

अदालत ने इस बात पर अफ़सोस भी जताया कि छोटे बच्चों की शिक्षा का अधिकार अब इस बात पर निर्भर करता है कि ऑनलाइन कक्षाओं के लिए कौन “गैजेट्स” खरीद सकता है और कौन नहीं.

छोटे बच्चे जिनके माता-पिता इतने गरीब हैं कि महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं के लिए घर पर लैपटॉप, टैबलेट या इंटरनेट पैकेज नहीं खरीद सकते हैं, उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा. ऊपर से इनमें से बाल मज़दूरी या उससे भी बदतर, ट्रैफ़िकिंग का शिकार हुए.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, विक्रम नाथ और बी.वी. नागरत्ना की बेंच ने कहा “महामारी के दौरान जैसे-जैसे स्कूलों ने तेजी से ऑनलाइन शिक्षा की ओर रुख किया, डिजिटल डिवाइड ने गंभीर नतीजे पैदा किए. आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) और वंचित समूहों के बच्चों ने अपनी शिक्षा के मौक़ों को खो दिया.”

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ऑनलाइन कक्षाओं से उजागर हुई असमानता दिल दहला देने वाली है.

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने देश के ग्रामीण और दूरदराज़ के इलाकों के बच्चों की मुश्किलों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, जहां बच्चे गैजेट्स तक पहुंच की कमी के चलते बड़ी संख्या में स्कूल छोड़ रहे हैं.

अदालत ने यह भी कहा कि भले ही स्कूल अब धीरे-धीरे ऑफ़लाइन मोड में वापस जा रहे हैं, लेकिन बच्चों के लिए पर्याप्त डिजिटल उनकरणों की ज़रूरत अभी भी है.

कोर्ट ने कहा कि भविष्य में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले बच्चों की ज़रूरतों को इस तरह से नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. राज्य और केंद्र सरकारों को एक समाधान निकालना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो कि हर सामाजिक स्तर के बच्चों को पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हों, और संसाधनों की कमी वाले बच्चों को शिक्षा तक पहुंच से वंचित न किया जा सके. अगर ऐसा नहीं हुआ तो शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पूरा उद्देश्य  विफल हो जाएगा.

कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21ए (छह से 14 साल के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) एक वास्तविकता होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट सितंबर 2020 के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली निजी स्कूलों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें स्कूलों को अपने 25% कोटा EWS/DG छात्रों को मुफ्त में ऑनलाइन सुविधाएं प्रदान करने का निर्देश दिया गया था. हाई कोर्ट ने स्कूलों से कहा था कि वह सरकार से इसका ख़र्चा (reimbursement) पा सकते हैं.

दिल्ली सरकार ने पहले उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करते हुए कहा था कि उसके पास ऑनलाइन गैजेट्स के लिए स्कूलों को reimbursement देने के लिए संसाधन नहीं हैं.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2021 में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी, लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि केंद्र और दिल्ली जैसे राज्य दोनों ही छोटे बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकते.

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