HomeAdivasi Dailyपालघर: आदिवासी गाँव तक सड़क नहीं है, जुड़वां बच्चों की मौत

पालघर: आदिवासी गाँव तक सड़क नहीं है, जुड़वां बच्चों की मौत

डॉक्टर पुष्पा माथुरे ने कहा कि बाद में महिला को मेन रोड से एंबुलेंस से खोडाला पीएचसी लाया गया. महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया लेकिन जन्म के समय उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने कहा कि अगर उचित सड़क होती तो महिला को जल्द ही चिकित्सा सहायता मिल सकती थी और बच्चों को बचाया जा सकता था.

एक तरफ जहां देश का 75वां स्वतंत्रता दिवस हर जगह धूमधाम से मनाया गया, वहीं दूसरी तरफ एक तस्वीर यह भी है कि आज भी आदिवासी इलाकों और दूरदराज के गांवों में बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं.

इन बुनियादी सुविधाओं के अभाव के चलते एक गर्भवती आदिवासी महिला को समय पर स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिलने के कारण उसके जुड़वां बच्चों की मौत हो गई. यह दिल दहला देने वाली घटना महाराष्ट्र के पालघर ज़िले के मोखदा तालुक के मरकटवाड़ी गांव में हुई.

गांव में उचित सड़क की कमी के कारण 26 वर्षीय गर्भवती आदिवासी महिला को एक अस्थायी स्ट्रेचर में ले जाया गया और चिकित्सा केंद्र तक पहुंचने में देरी के परिणामस्वरूप उसने अपने जुड़वां बच्चों को जन्म के समय खो दिया.

एक डॉक्टर ने कहा कि यह घटना सोमवार को हुई, जब सात महीने की गर्भवती महिला को समय से पहले प्रसव पीड़ा हुई और उसे भारी बारिश के बीच मोखदा तालुका के मरकटवाड़ी गांव से तीन किलोमीटर तक अस्थायी स्ट्रेचर पर मुख्य सड़क पर ले जाया गया.

डॉक्टर पुष्पा माथुरे ने कहा कि बाद में महिला को मेन रोड से एंबुलेंस से खोडाला पीएचसी लाया गया. महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया लेकिन जन्म के समय उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने कहा कि अगर उचित सड़क होती तो महिला को जल्द ही चिकित्सा सहायता मिल सकती थी और बच्चों को बचाया जा सकता था. महिला की हालत स्थिर है.

आजादी के 75 साल बाद भी, पालघर ज़िले के सुदूर मोखदा तालुक में आदिवासियों को सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिली हैं. आज भी यहां के आदिवासियों को सड़क न होने के कारण अस्पताल तक पैदल ही जाना पड़ता है और समय पर इलाज नहीं मिलने से लोगों की जान जा रही है. इस गांव में यह इस तरह की दूसरी घटना है.

हालांकि इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए ज़िले के कई आदिवासी क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं को अपने रिश्तेदारों के साथ तालुका स्थान पर आना और रहना पड़ता है, जब प्रसव का समय और तारीख नजदीक आती है.

आदिवासी बस्तियों में सड़कों के अभाव में मरीजों, गर्भवती महिलाओं को साड़ी या कपड़े से बने अस्थायी स्ट्रेचर में ले जाने के उदाहरण आए दिन देखने को मिलते हैं.

(Image Credit: ABP Marathi)

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