HomeAdivasi Dailyबिहार में ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थपाना के लिए हाईकोर्ट का आदेश

बिहार में ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थपाना के लिए हाईकोर्ट का आदेश

अदालत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की सुस्ती और नकारेपन पर नाराज़गी भी ज़ाहिर की. अदालत ने कहा कि एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसके लिए पूरा पैसा केंद्र सरकार से मिलता है, उस मामले में सरकार पिछले चार साल से सो रही है.

पटना हाईकोर्ट ने बिहार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वो दो सप्ताह के भीतर राज्य में ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट स्थापित करने पर फ़ैसला लें. पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ ने बिहार आदिवासी अधिकार फ़ोरम की याचिका पर यह निर्देश दिया है.

याचिका दायर करने वाले संगठन के अनुसार राज्य में आदिवासी कल्याण के लिए ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की ज़रूरत है.

कोर्ट ने मुख्य सचिव को कहा है कि वो अपने फ़ैसले के सिलसिले में एक हलफ़नामा दायर करें. अदालत में बिहार सरकार की तरफ़ से बताया गया कि राज्य में ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना नहीं की गई है.

अदालत को यह भी बताया गया कि ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना का सारा ख़र्च केंद्र सरकार उठाती है. जबकि उसके स्टाफ़ का ख़र्च राज्य सरकार को उठाना होता है.

याचिकाकर्ता संगठन की तरफ़ से अदालत में दलील दी गई कि आदिवासी मामलों के मंत्रालय की गाइडलाइन कहती हैं कि आदिवासियों की सुरक्षा और कल्याण के लिए ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना ज़रूरी है.

अदालत ने इस मामले में टिपण्णी करते हुए कहा कि इस तरह के संस्थान की स्थापना के कई मक़सद हैं. इसमें संवाद, मसलों की पहचान और उन मसलों का समाधान शामिल है. अदालत ने कहा कि आदिवासियों के सामाजिक आर्थिक मसले गंभीर हैं.

संविधान के भाग 4 और भाग 16 में दिए गए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ज़रूरी है कि आदिवासी मसलों को हल किया जाए.

अदालत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की सुस्ती और नकारेपन पर नाराज़गी भी ज़ाहिर की. अदालत ने कहा कि एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसके लिए पूरा पैसा केंद्र सरकार से मिलता है, उस मामले में सरकार पिछले चार साल से सो रही है.

अदालत ने पूरे मामले को गहराई से समझने का प्रयास किया है. इसके बाद ही अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव को यह निर्देश दिया है कि वो इस बारे में उचित कार्रवाई करें और अदालत को उस की जानकारी भी उपलब्ध कराएँ. 

बिहार में आदिवासी आबादी 20 लाख से ज़्यादा बताई जाती है. लेकिन राज्य सरकार की तरफ़ से आदिवासी जनसंख्या के कोई आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं. यह माना जाता है कि बिहार की कुल आबादी का क़रीब एक प्रतिशत ही आदिवासी है.

इसलिए राज्य सरकार का प्रशासनिक ढाँचा आदिवासी मसलों को नज़रअंदाज़ ही करता है. ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना के मसले में भी यही रवैया नज़र आता है. 

अदालत ने कहा है कि वो इस मामले में 26 अप्रैल को फिर से सुनवाई करेगी.  

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