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बुनियादी सुविधाएं मिलें तो हम भी आगे बढ़ सकते हैं – अट्टपाड़ी के आदिवासी छात्र

मुकाली और गलासी के बीच की दूरी 19 किलोमीटर है. 2016 में 10 किलोमीटर की अनावयी आदिवासी बस्ती तक एक सड़क बन गई. लेकिन नौ किलोमीटर का शेष हिस्सा अभी भी नहीं बना है. संबंधित अधिकारियों की उदासीनता के कारण उनका सपना पूरा नहीं हो पाया है. जिसका खामियाजा गलासी, मेलेथोडुक्की, केजेथोडुक्की, कडुकुमन्ना में आदिवासियों को भुगतना पड़ रहा है.

कंधे पर 39 किलो अनाज के साथ, गलासी आदिवासी बस्ती के मूल निवासी मुरुकन (42) एक राशन की दुकान से सामान खरीदने के बाद घर पहुंचने के लिए पहाड़ियों पर चढ़ते हैं, नदियों, झरनों और यहां तक ​​कि चट्टानी सतहों को पार करते हैं. जो उनके घर से 19 किलोमीटर दूर है.

हांफते हुए मुरुकन इस रास्ते को पार करते हैं लेकिन बीच में नहीं रुकते क्योंकि उनकी पत्नी और दो बच्चे घर पर उनका इंतजार कर रहे हैं जो कि भूखे हैं. हालांकि बीच में उन्हें रुकना पड़ सकता है क्योंकि जोंक खून चूसने के लिए उनके पैरों को रोकती है. बोरी को नीचे रखते हुए मुरुकन दर्द में एक-एक करके जोंक निकालते हैं. लेकिन यह मुरुकन के लिए सामान्य है और वो इसे हल्के में लेते हैं और यात्रा जारी रखते हैं.

घर पहुंचने पर उनके बच्चे सामान नीचे रखने में अपने पिता की मदद करने के लिए उसके पास दौड़ पड़ते हैं. कुछ देर बाद मुरुकन की पत्नी चावल और टमाटर की सब्जी लेकर आती हैं और उन सभी ने मिलकर खाया.

मुरुकन एक राशन की दुकान से 30 किलो चावल, 4 किलो गेहूं, 4 लीटर मिट्टी का तेल और एक किलो चीनी लेकर घर पहुंचने के लिए घने जंगल के अंदर नौ किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचे.

यात्रा और भी कठिन हो जाएगी जब बारिश होगी क्योंकि रास्ता अधिक फिसलन भरा हो जाएगा. साथ ही मुरुकन को यात्रा के दौरान जंगली हाथियों और अन्य जानवरों से भी सावधान रहना पड़ता है.

हालांकि यह सिर्फ मुरुकन की कहानी नहीं है. साइलेंट वैली के जंगलों के अंदर की बस्तियों में सौ से अधिक परिवार हैं, जिनमें लगभग 500 सदस्य हैं.

मुकाली और गलासी के बीच की दूरी 19 किलोमीटर है. 2016 में 10 किलोमीटर की अनावयी आदिवासी बस्ती तक एक सड़क बन गई. लेकिन नौ किलोमीटर का शेष हिस्सा अभी भी नहीं बना है. संबंधित अधिकारियों की उदासीनता के कारण उनका सपना पूरा नहीं हो पाया है. जिसका खामियाजा गलासी, मेलेथोडुक्की, केजेथोडुक्की, कडुकुमन्ना में आदिवासियों को भुगतना पड़ रहा है.

मुरुकन ने कहा, “राशन की दुकान मुकाली में स्थित है. हमें अनवयी से जीप सेवाएं मिलती हैं. लेकिन अनावयी तक पहुँचने के लिए हमें नौ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. हमें सब कुछ अपने कंधों पर उठा कर लाना पड़ता है. हम अपने लोगों को चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान भी ले जाते हैं. अनवयी से कीज़ेथोडुक्की 5.5 किलोमीटर है और कीज़ेथोडुक्की से हमें मेलेथोडुक्की के रास्ते गलासी पहुँचने के लिए 4 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.”

उन्होंने यह भी कहा कि अनवयी से मुक्कली तक जीप सेवा महंगी है. ऐसे में मुफ्त राशन खरीदने के लिए, हमें जीप सेवाओं के लिए 500 रुपये खर्च करने होंगे.

केजेथोडुक्की की रहने वाली उषा (25) को गर्भावस्था के दौरान बहुत बड़ा नुकसान हुआ था. उषा ने कहा, “इस साल 13 जून को मैं स्कैन के लिए कोत्ताथारा के अस्पताल गई थी. डॉक्टरों ने मुझे बताया कि बच्चे के साथ सब कुछ ठीक है. लेकिन घर पहुँचने के तुरंत बाद, मेरा गर्भपात हो गया. मुझे घर पहुँचने के लिए चट्टानों, नालों और टेढ़े-मेढ़े रास्तों को पार करना पड़ा. शायद इसीलिए मैंने अपना बच्चा खोया.”

आदिवासी बस्तियों में बिजली भी नहीं

2017 में बिजली आपूर्ति प्रदान करने के लिए बस्तियों के सभी घरों में सौर इकाइयां स्थापित की गईं. हालांकि आदिवासियों ने कहा कि यह उनकी बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

मेलेथोडुक्की के निवासी सिनू ने कहा, “हमें दिन में सिर्फ दो या तीन घंटे ही बिजली मिलती है. मानसून के दौरान यह और भी कम होगा.”

उचित सड़क संपर्क की कमी को कारण बताया गया कि संबंधित अधिकारी इन बस्तियों का विद्युतीकरण करने में असमर्थ हैं. अनवयी तक एक उचित सड़क है और वहां तक ​​की बस्तियों का विद्युतीकरण किया गया है.

कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं

इन बस्तियों में आदिवासियों, विशेषकर छात्रों के लिए मोबाइल नेटवर्क की कमी भी चिंता का कारण है. गलसी के निवासी सेलवन ने कहा, “हम सभी के पास मोबाइल फोन हैं. लेकिन हम इनके जरिए किसी से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं. मोबाइल सिग्नल प्राप्त करने के लिए हमें कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.”

इन बस्तियों के छात्रों को पढ़ाई-लिखाई के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने में कठिनाई होती है. शिक्षित युवाओं ने यह भी शिकायत की कि खराब नेटवर्क कनेक्टिविटी के कारण नौकरी तलाशना बहुत मुश्किल है.

मेलेथोडुक्की निवासी सेल्वी (20) ने कहा, “यहां के शिक्षित युवाओं ने पीएससी और अन्य निजी पोर्टलों के माध्यम से विभिन्न नौकरियों के लिए आवेदन किया है. लेकिन हमें कोई अपडेट नहीं मिलता क्योंकि कोई नेटवर्क नहीं है.” सेल्वी एक सिविल सेवा उम्मीदवार हैं. उसने सभी बाधाओं से लड़ते हुए प्लस टू परीक्षा में 70 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त किए थे.

सड़क निर्माण की अनुमति जारी

जब अट्टपाड़ी में आदिवासी बस्तियों के दौरे के दौरान पलक्कड़ के जिला कलेक्टर मृण्मई जोशी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि अनवयी से केझेथोडुक्की तक सड़क का निर्माण विचाराधीन है. हालांकि वन विभाग ने अभी तक सहमति नहीं दी है.

उधर डिप्टी रेंज वन अधिकारी रविकुमार ने मातृभूमि डॉट कॉम को बताया कि अनवयी से मनालुमपडी तक सड़क निर्माण की अनुमति पहले ही जारी की जा चुकी है. रविकुमार ने कहा, “यह तीन किलोमीटर का खिंचाव है. अभी भी कीज़ेथोडुक्की तक पहुँचने के लिए दो और किलोमीटर की दूरी तय करनी है. हमें आगे निर्माण के लिए कोई अनुरोध नहीं मिला है.”

थोडुक्की की रहने वाली प्रिया वी ने प्लस टू की परीक्षा में 851 अंक हासिल किए, उन्होंने कहा, “हमें सड़क, बिजली और अन्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान करें. ताकि हम अपनी काबिलियत दिखा सकते हैं. बुनियादी सुविधाओं के बिना हमारे छात्रों ने परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए. अगर हमारे पास इंटरनेट कनेक्टिविटी और अन्य सुविधाएं हो तो हम और आगे बढ़ेंगे.”

(Image Credit: Mathrubhumi English)

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