भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) के रांची कार्यालय ने पाँच आदिवासी भाषाओं में बुकलेट जारी की हैं. इसका मक़सद आम आदिवासियों को उनकी भाषा में बैंकिंग के बारे में जानकारी देना है.
रिजर्व बैंक का कहना है कि झारखंड की 26 प्रतिशत आबादी आदिवासी है. इन आदिवासियों की बड़ी आबादी है जो अपनी भाषा या बोली ही समझते हैं. इसीलिए यहां इन आदिवासियों की भाषाओं में वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा दिया जा रहा है.
झारखंड में कुल 30 आदिवासी समुदाय रहते है, लेकिन फ़िलहाल पांच स्थानीय भाषाओं – संथाली, उरांव, कुडुख, मुंडारी और हो में पुस्तिकाएं जारी की गई हैं.
इसके अलावा राज्य के सभी बैंकों की ग्रामीण शाखाओं और एटीएम में वित्तीय साक्षरता से जुड़ी जानकारी प्रदर्शित की जा रही है.
स्कूली बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों, व्यापारियों, किसानों और सेल्फ़-हेल्प ग्रुप्स के लिए अलग से पुस्तिकाएं जारी की गई हैं. इन बुकलेट्स में किसानों से जुड़ी योजनोओं का उल्लेख है, और वरिष्ठ नागरिकों के लिए निवेश योजनाओं का ज़िक्र है.
सोमवार को शुरू हुए वित्तीय साक्षरता सप्ताह के संदर्भ में इन पुस्तिकाओं को लॉन्च किया गया है. रिज़र्व बैंक 2016 से ही वित्तीय साक्षरता सप्ताह मना रहा है, ताकि लोगों के बीच वित्तीय प्रणाली के बारे में जागरुकता पैदा हो.
भारत के आदिवासी इलाक़ों में रहने वाली आबादी की अभी भी बैंकों तक पहुंच नहीं है. जिन इलाक़ों में बैंकों की शाखाएं हैं भी वहां भी आदिवासी उनके लिए बनी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं.
इसकी बड़ी वजह है कि आदिवासी बैंकों में ज़रूरी काग़जी ख़ानापूर्ती नहीं कर पाते हैं. इसके अलावा बैंकों में काम करने वाले कर्मचारी भी आदिवासियों को बैंकों की अलग अलग स्कीम नहीं समझा पाते हैं.
इसकी एक वजह तो शायद भाषा ना समझ पाना है. लेकिन सबसे बड़ी वजह आदिवासियों के प्रति बैंक कर्मचारियों की धारणा भी काम करती है.
ज़्यादातर बैंक कर्मचारी ग़ैर आदिवासी समुदाय से होते हैं और वो ना तो आदिवासियों को समझते हैं और ना ही उनका आदर करते हैं.
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अगर आदिवासियों को उनकी भाषा में जानकारी दी जा रही है तो यह एक सही कदम है. लेकिन ज़रूरत इससे आगे जाने की है.
पहली ज़रूरत की बैंक आदिवासी इलाक़ों तक जाएं. दूसरी और सबसे बड़ी ज़रूरत आदिवासी की संस्कृति को समझे और उनकी ज़रूरत के हिसाब से योजनाओं का निर्माण करें.