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18 फ़रवरी तक आदिवासियों की ज़मीन का फ़ैसला नहीं तो अधिकारियों पर चलेगा मुक़दमा, 33 साल से लटका है मामला

आदिवासी कहते हैं कि 1997 से कई बार दावे पेश किए जा चुके हैं, लेकिन इनपर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है.

गोवा के एससी/एसटी आयोग ने संबंधित अधिकारियों को कुमेरी भूमि (जहां जूम खेती होती है) का मुद्दा जल्द से जल्द सुलझाने के लिए कहा है. आयोग ने कहा है कि ऐसा नहीं करने पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत इन अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी. 

पिछले रविवार को कैनाकोना में आयोजित एक दिवसीय अदालत शिविर में 245 से ज़्यादा प्रभावित आदिवासियों ने भाग लिया, और आयोग के सामने अपनी शिकायतें रखीं. उन्होंने आयोग को बताया कि संबंधित अधिकारियों ने बिना किसी वजह से मामले को लटकाए रखा है. अधिकारियों से अब 18 फरवरी तक आयोग के सामने नई कार्य योजना प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है. ऐसा नहीं किया जाने पर संबंधित अधिकारियों को ज़िम्मेदार माना जाएगा और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू की जाएगी. 

आदिवासियों ने वन विभाग पर क्षेत्रों का सीमांकन करने और अपने कुमेरी भूखंडों में पोल लगाने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि इस भूमि पर वह सदियों से खेती कर रहे हैं, लेकिन वन अधिकारी उन्हें धमकाकर परेशान कर रहे हैं. यहां के निवासी यह भी कहते हैं कि यह भूमि इनके नाम पर है, लेकिन अब वन विभाग आदिवासियों की पुश्तैनी भूमि को छीनने के लिए वन अधिनियम का सहारा ले रहा है.

हालाँकि वन विभाग ने आश्वासन दिया है कि आदिवासी अभी भी अपने दावे पेश कर सकते हैं, और इनपर विचार किया जाएगा. दूसरी तरफ़ आदिवासी कहते हैं कि 1997 से कई बार दावे पेश किए जा चुके हैं, लेकिन इनपर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है. कैनाकोना के रेंज फ़ॉरेस्ट ऑफ़िसर अनंत वेलिप ने यह कहते हुए वन विभाग की कार्रवाई का बचाव किया है कि 1989 में राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी की थी और ज़मीन पर किए जाने वाले दावों पर फ़ैसला लेने के लिए एक अधिकारी को अलग से नियुक्त किया था.

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