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अभिषेक बनर्जी की रैली से आदिवासी रहे दूर, वजह तलाशने में जुटी टीएमसी

दरअसल पार्टी के नागरकाटा के विधायक और आदिवासी नेता सुकरा मुंडा हाल ही में तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. इसलिए पार्टी के लिए यहाँ पर इस घटना के असर को कम करने की योजना थी. पार्टी यहाँ पर अपनी शक्ति प्रदर्शन करना चाहती थी.

शनिवार, 20 फ़रवरी को जलपाइगुड़ी के नागरकाटा में तृणमूल कांग्रेस के नेता और सांसद अभिषेक बनर्जी ने एक जनसभा को संबोधित किया. लेकिन अभिषेक बनर्जी और पार्टी ज़िला कमेटी के नेता इस सभा से बहुत खुश नहीं थे. 

इस रैली में लोगों की कमी नहीं थी. इस रैली में अभिषेक बनर्जी को सुनने के लिए कम से कम 25 हज़ार लोगों की भीड़ जमा थी. इसके बावजूद अभिषेक बनर्जी और पार्टी नेताओं के लिए यह सभा चिंता की बात थी. इसकी वजह थी कि इस 25000 की भीड़ में आदिवासी लोगों की संख्या ना के बराबर थी. 

तृणमूल के लिए इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पहुँचने के बावजूद चिंता इसलिए है क्योंकि इस इलाक़े में नागरकाटा, मालबाज़ार और आस-पास के इलाक़ों में आदिवासी आबादी काफ़ी है. पार्टी ने अभिषेक बनर्जी को ख़ासतौर से आदिवासी लोगों को संबोधित करने बुलाया था. 

अभिषेक बनर्जी आदिवासी मसलों पर बोलने की तैयारी के साथ आए भी थे. लेकिन इस सभा में आदिवासी ही ग़ायब थे. 

पार्टी ने इलाक़े के नेताओं को यह पता लगाने की ज़िम्मेदारी दी है कि आख़िर क्यों आदिवासी सभा से दूर ही रहे. 

जलपाइगुड़ी की दो विधान सभा सीटें नागरकाटा और मालबाज़ार अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. तृणमूल कांग्रेस ने एक ख़ास मक़सद से नागरकाटा में रैली करने का फ़ैसला किया था. 

दरअसल पार्टी के नागरकाटा के विधायक और आदिवासी नेता सुकरा मुंडा हाल ही में तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. इसलिए पार्टी के लिए यहाँ पर इस घटना के असर को कम करने की योजना थी. पार्टी यहाँ पर अपनी शक्ति प्रदर्शन करना चाहती थी.

तृणमूल कांग्रेस के कई नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.

इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस सरकार ने हाल ही में दो बड़े कदम आदिवासी आबादी को नज़र में रखते हुए उठाए थे. इनमें पहला कदम था आदिवासियों के लिए फ़्री में घर देने की योजना. इसके अलावा राज्य सरकार ने चाय बाग़ानों में काम करने वाले आदिवासियों के न्यूनतम वेतन में भी इज़ाफ़ा किया था. 

तृणमूल यह भी अंदाज़ा लगाना चाहती थी कि सरकार के इन फ़ैसलों से आदिवासी आबादी किस हद तक तृणमूल सरकार की वापसी में साथ दे सकती है. 

एक तृणमूल नेता ने अनौपचारिक तौर पर मीडिया को बताया कि पार्टी ने यह उम्मीद नहीं की थी कि रैली में आदिवासी लोग नहीं पहुँचेंगे. बल्कि पार्टी को उम्मीद थी की इस आम सभा में कम से कम 80 प्रतिशत संख्या आदिवासियों की ही होगी. यह पार्टी के लिए हैरानी और परेशानी दोनों की वजह है. 

अब तृणमूल कांग्रेस ने यह तय किया है कि उसके कार्यकर्ता और नेता आदिवासियों के घर घर जाएँगे. आदिवासियों से मुलाक़ात के दौरान पार्टी के नेता और कार्यकर्ता आदिवासी घरों में सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी देंगे. 

तृणमूल कांग्रेस के पास अभी भी कई प्रभावशाली आदिवासी नेता हैं. इनमें राजेश लकड़ा भी शामिल हैं जो इलाक़े के जाने माने आदिवासी नेता हैं. लेकिन इसके बावजूद पार्टी के लिए यहाँ ख़तरे की घंटी बज गई है.

तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि वो हालात से वाक़िफ़ है और उसे क़ाबू करने में कामयाब होगी.

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