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ओडिशा के आदिवासी किसान रंग-बिरंगे चावल (Pigmented Rice) की किस्मों को वापस ला रहे

1950 में जो 320 भू-प्रजातियाँ हुआ करती थी, उनमें से केवल 25 पर ही अब खेती की जाती है, कोरापुट के आदिवासी लोगों ने इसे वापस लाने के लिए कदम उठाए हैं.

धान की लुप्त होती देशी और पिगमेंटेड प्रजाति के चलते कोरापुट (Koraput) की 10 कोंध महिलाओं ने एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का निर्माण किया है. इन महिलाओं ने बीज संरक्षण केंद्र की स्थापना कर 9 देशी किस्मों के बीजों का संरक्षण किया.

वर्तमान में भू-प्रजातियाँ कुछ ही ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में जीवित हैं, लेकिन वे भी उचित संरक्षण के अभाव में समाप्त हो रही हैं.

इन्हें किस तरह से उगाया जाना चाहिये या बीजों को कैसे बचाया जाए, इस बारे में पारंपरिक ज्ञान भी लुप्त होता जा रहा है.

1950 में जो 320 भू-प्रजातियाँ हुआ करती थी, उनमें से केवल 25 पर ही अब खेती की जाती है, कोरापुट के आदिवासी लोगों ने इसे वापस लाने के लिए कदम उठाए हैं.

जैव विविधता के नुकसान को महसूस करते हुए, ओडिशा के कोरापुट के बारी गांव में 10 कोंध महिला किसानों के एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) केंड्रिगेंडा ने बची हुई देशी धान की किस्मों को संरक्षित करने के लिए एक बीज केंद्र स्थापित किया है.

2023 में स्थापित इस केंद्र ने ‘बोलक’ सहित 9 स्वदेशी किस्मों के बीजों को संरक्षित किया है. बारी में किसानों के हित समूह (Farmer’s Interest Group) के साथ एसएचजी उन्हें इकट्ठा करते हैं और संरक्षित करते हैं.

कोरापुट किसान संगठन (Koraput Farmers Association) के सचिव शरत कुमार पटनायक का कहना है कि एक संकर किस्म की उपज 20 क्विंटल से 25 क्विंटल प्रति एकड़ के बीच होती है.

जबकि अधिक उपज देने वाली किस्म की उपज 15 से 20 क्विंटल के बीच होती है. दूसरी ओर पिगमेंटेड धान की पैदावार अधिकतम 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.

पिगमेंटेड धान की प्रति एकड़ के हिसाब से उपज बेशक कम है किंतु इसे उगाना घाटे का सौदा नहीं है क्योंकि इसके पोषण मूल्य के कारण बाज़ार में इसकी कीमत 300 से 500 रुपये प्रति किलो है.

जब पिगमेंटेड धान की भूमि की प्रजातियाँ विलुप्त होने की तरफ अग्रसर हैं, तो राज्य सरकार ने इसे बचाने के लिए बहुत कम प्रयास किए हैं.

कुंद्रा ब्लॉक के कृषि अधिकारी तापस चंद्र रॉय का कथन है कि “सरकार जल्द ही पिगमेंटेड भू-प्रजाति की खेती को बढ़ावा देने के लिए उपाय कर सकती है. फिलहाल, सुगंधित भू-प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.”

जब सरकार पिगमेंटेड धान या भू-प्रजातियों के बचाव के लिए सांतवना देती है तब कुछ गैर सरकारी संगठन जैसे आरआरटीटीएस (Regional Research And Technology Transfer Station), सीयूओ के डीबीसीएनआर, एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) पिगमेंटेड लैंडरेस सहित स्वदेशी किस्मों का संरक्षण करने का दावा करती हैं.

आरआरटीटीसी जताता है कि उसके 554 देशी किस्मों के संग्रह में 35 रंजित भूमिप्रजातियां हैं, दूसरी ओर एमएसएसआरएफ की 361 देशी किस्मों में से 28 रंजित होने का दावा करता है.

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