24 नवंबर को महाराष्ट्र (Maharashtra) के कर्जत (karjat) के निजी अस्पताल में प्रसव के दौरान एक आदिवासी महिला की मौत (pregnant tribal women death) हो गई और उसका बच्चा भी मृत पैदा हुआ था. इस घटना के बाद से लोगों में गुस्सा भरा हुआ है.
पीड़ित महिला फनासवाड़ी की रहने वाली थी. दरअसल सर्जरी के दौरान बहुत ज्यादा खून बहने के कारण उसकी मृत्यु हो गई. उसे हृदय से संबंधित बीमारियां भी थी.
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “आदिवासी महिला की मौत से ये अंदाजा लगाया जा सकता है की यहां मौजूदा स्वास्थ्य सुविधा कितनी खराब (poor health facilities) होगी. जबकि ये मुंबई जैसे बड़े शहर से महज 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.”
कार्यकर्ताओं ने ये भी आरोप लगाया कि मृतक महिला का सी-सेक्शन करने से पहले उसे एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा से दूसरे में भेजा गया था और जहां उसका सी-सेक्शन करवाया गया, उस अस्पताल के पास लाइसेंस तक नहीं था.
इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक गुरूवार की सुबह महिला का पति अकुंश जब उसे पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ले गया था, तब उसका बल्ड प्रेशर काफी हाई था.
जब जांच में ये पाया गया की मृतक गर्भवती महिला की स्थिति अत्यंत खराब है तो उसे कर्जत के उप जिला अस्पताल में जाने की सलाह दी गई. जहां वे दोपहर 3 बजे पहुंचे लेकिन कुछ घंटे बाद उन्हें जिला केंद्रीय अस्पताल, उल्हासनगर नंबर 3 में जाने के लिए कहा गया.
केंद्रीय अस्पताल जाने की जगह मृतक महिला के परिवार वालों ने उसे एक निजी अस्पताल में ले जाने का निर्णय लिया, जो कर्जत उप-जिला अस्पताल से मुश्किल से 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. जहां उसका रात करीब 11.30 बजे सी-सेक्शन किया गया और मृत बच्चे का जन्म हुआ.
लेकिन इसके बाद से ही महिला के शरीर से खून बहना बंद नहीं हुआ. जिसके बाद सुबह 3 बजे उसे अस्पताल के मुड्रे यूनिट भेजा गया, लेकिन वह बच नहीं सकी और सुबह 6 बजे उसकी मृत्यु हो गई.
महिला की मौत पर उसके परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है. पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है. वहीं दो समितियाँ गठित की गईं थी. जिसमें से एक पोस्टमार्टम करने के लिए और दूसरी मातृ मृत्यु (maternal death ) समीक्षा के लिए बनाया गया था.
मातृ मृत्यु समीक्षा टीम ने पाया कि एक आयुर्वेदिक डॉक्टर ने सी-सेक्शन करने वाली टीम का नेतृत्व किया था और नर्सिंग होम का लाइसेंस समाप्त हो गया था. वहीं समीक्षा समिति ने कहा है की इसमें कोई भी सर्जन तक मौजूद नहीं था.
जब इसके बारे में अस्पताल प्रशासन से बात की गई तो उन्होंने बताया की राज्य सरकार द्वारा स्थापित नियम बीएएमएस डॉक्टरों को सी-सेक्शन करने की अनुमति देते हैं और हमारे अस्पताल के लाइसेंस का नवीनीकरण चल रहा है.
आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया की पूरे इलाके के स्वास्थ्य केंद्र प्रभावित हैं क्योंकि सरकारी डॉक्टर पीएचसी में नहीं रहते हैं और मरीजों के जीवन को असहाय नर्सों के हाथों में सौंप देते हैं, जो बदले में उन्हें बड़े अस्पतालों में रेफर करते हैं. उन्होंने कहा कि उस क्षेत्र में सरकार द्वारा संचालित 108 एम्बुलेंस भी उपलब्ध नहीं हैं.