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Adivasi Mela 2024: आदिवासी उत्पाद, कला और संस्कृति ने विदेशियों को किया आकर्षित

भुवनेश्वर में शुरु हुए आदिवासी मेले से कारोबारियों को ज्यादा कमाई की उम्मीद है. मेले में आदिवासी समुदायों की पेंटिंग, शॉल, खानपान, संस्कृति, कला शहरी लोगों के साथ ही विदेशियों को बेहद पसंद आ रही है.

ओडिशा के भुवनेश्वर (Bhubaneswar) में 26 जनवरी से शुरु हुआ लोकप्रिय आदिवासी मेला 5 फरवरी तक चलेगा. इसमें राज्य के विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (PVTGs) के कई स्वयं सहायता समूह (SHGs) और सूक्ष्म परियोजना एजेंसियां (MPAs) ने हिस्सा लिया है, जिसमें भारी भीड़ उमड़ रही है.

क्या है मेले में खास ?

इस आदिवासी मेले में आदिवासियों के जैविक उत्पाद (Organic products) बेचने के लिए ट्राइबल हाट (Tribal Haat) के अंतर्गत लगभग 66 स्टॉल लगे हैं. इसके अलावा ट्राइबल आर्ट एंड क्राफ्ट (Tribal Art and Craft) के 15 स्टॉल लगाए गए हैं.

इस मेले में आदिवासी खाद्य उत्पाद (tribal food products), घरेलू सामान (household items) के अलावा छत्तीसगढ़ के रायगड़ा ज़िले (Rayagada district) की लांजिया सौरा की आइडिटल पेंटिंग (Idital Painting of Lanjia Saura) के भी स्टोर है, जिसे चेन्नई की भौगोलिक संकेत रजिस्ट्रार (Registrar of Geographical Indications) से प्रतिष्ठित जीआई टैग (GI tag) प्राप्त है.

एससी/एसटी विकास अल्पसंख्यकों और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के सचिव रूपा रोशन साहू (Roopa Roshan Sahoo) ने कहा की हम जनजातीय उत्पादों को वैश्विक स्तर पर लाऐंगे. इसलिए इस बार मेले में कपडागंडा डोंगरिया (Kapadaganda Dongaria) कोंध कढ़ाई वाले शॉल (Kondh Embroidered Shawl) और लांजिया सौरा की आइडिटल पेंटिंग (Idital Painting of Lanjia Saura) को रखा गया है.

उन्होंने कहा कि हम भविष्य में इस सूची में और कई अद्वितीय जनजातीय उत्पाद रखेंगे.

इसके साथ ही मेले में आदिवासी शिल्प में गुनुपुर से लांजिया सौरा पेंटिंग, बालीगुडा से डोकरा कला, थुआमुल रामपुर से लकड़ी का काम, कप्तिपाड़ा से संथाल हैंडलूम उत्पाद, नबरंगपुर से धान कला, नबरंगपुर से मिट्टी के बर्तन, जेपोर से मिरगन हथकरघा, क्योंझर से गोंड कला, सुंदरगढ़ से बांस और बेंत हस्तशिल्प और सबाई शिल्प मयूरभंज ज़िले के बारीपदा के पास सुरेदिही से शामिल किया गया है.

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आदिवासी मेला पर लोगों के विचार

मेले में आए एक शख्स, सत्यजीत दास ने बताया कि जनजातीय उत्पादों के अलावा लोगों को आदिवासी झोपड़ियों के माध्यम से जनजातीय और पीवीटीजी की जीवन शैली भी देखने को मिल रही है और शहरी लोग इसको सबसे ज्यादा पंसद कर रहे हैं.

स्पेन की कार्लोटा मासो, जो अभी शहर में स्थित एक एनजीओ में काम कर रही है उन्होंने कहा की वह एक विदेशी भूमि से है. लेकिन भारत में इस मेले में आने के बाद उन्हें आदिवासी समुदायों की संस्कृति, परंपरा और प्रथाओं के बारे में जानने को मिला.

उन्होंने कहा कि यह उनका और उनके साथियों के लिए एक अद्भुत अनुभव है.

इसके अलावा रायगड़ा के मां ठकुरानी एसएचजी के कस्तूरी कद्ररा ने बताया कि उनका संगठन आदिवासी मेले में साल 2018 से भाग ले रहा है. इस मेले के दौरान उनको 3 लाख का कारोबार होता है और इस साल वह और अधिक कारोबार की उम्मीद कर रहे हैं.

मेले में गजबहिनी एसएचजी का बाजरा मिश्रण अपनी मसालेदार सामग्री के साथ खरीदारों को आकर्षित कर रहा है. इसके साथ ही सुंदरगढ़ ज़िले के तंगरपल्ली ब्लॉक का संगठन इस बार अच्छे व्यवसाय की उम्मीद कर रहा है.

एक आईटी प्रोफेशनल आदित्य महापात्र ने कहा कि रविवार को आदिवासी मेले का दौरा करते समय उन्हें प्रकृति की गोद में प्रवेश करने जैसा महसूस हुआ. उन्होंने कंधमाल (Kandhamal) के आदिवासी एसएचजी द्वारा प्रबंधित स्टालों से पारंपरिक मसालों से भरा एक बैग भी खरीदा है.

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