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केरल: आदिवासी औरतों के लिए ऑनलाइन मार्केट बना वरदान

एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म Fibrent.in के माध्यम से बांस की यह कलाकृतियां बेचने के लिए एक कंपनी "फाइब्रेंट" की स्थापना की गई है। उत्पाद बेचने के लिए ऑनलाइन प्रणाली का इस्तेमाल करने से महामारी के बावजूद बिज़नेस चल रहा है.

केरल के इडुक्की, पतनमतिट्टा और आलप्पुझा ज़िलो की आदिवासी और दलित महिलाओं को आजीविका कमाने का एक नया साधन मिल गया है. हाशिए पर खड़े लोगों के साथ काम करने वाला एक ग़ैर सरकारी संगठन उनकी इस काम में मदद कर रहा है.

राइट्स नाम का यह एनजीओ हाशिए के खड़े समुदायों की महिलाओं को बांस की कलाकृतियां बनाने वाली खुद की इकाइयाँ खोलने में मदद कर रहा है. इसके अलावा इन महिलाओं को इन चीज़ों को ऑनलाइन बेचने के लिए ट्रेनिंग भी दी जा रही है.

एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म Fibrent.in के माध्यम से बांस की यह कलाकृतियां बेचने के लिए एक कंपनी “फाइब्रेंट” की स्थापना की गई है। उत्पाद बेचने के लिए ऑनलाइन प्रणाली का इस्तेमाल करने से महामारी के बावजूद बिज़नेस चल रहा है.

अधिकारियों के अनुसार 2018 में केरल में आई बाढ़ से इन इलाक़ों के लोग बुरी तरह प्रभावित हुए थे. उस मुश्किल दौर में इन महिलाओं को आय प्रदान करने के इरादे से ही यह पहल शुरू की गई थी. पहले 2019 में इन्हें बांस शिल्प बनाने में ट्रेनिंग दी गई और फिर 2020 में प्रोडक्शन शुरु हुआ.

यह इकाइयां कोविड-19 महामारी के आने से पहले शुरु हुई थीं, और लॉकडाउन ने इन उत्पादों की बिक्री को काफ़ी कम कर दिया. इन हालात से पार पाने के लिए ही ऑनलाइन स्टोर खोला गया है.

फ़िलहाल 58 महिलाएं तीन इकाइयों में काम कर रही हैं, और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को मैनेज भी यही लोग करते हैं. ऑनलाइन बिक्री से मिलने वाले पैसे का 80 प्रतिशत इन महिलाओं को ही मिलता है.

आपको याद होगा कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी इसी तरह की पहल शुरु की गई थी. वहां की आदिवासी औरतों ने बांस की राखियां बनाई थीं, जो त्यौहार के समय काफ़ी पॉपुलर हुई थीं. इन राखियों को बेचकर इन आदिवासियों ने काफ़ी मुनाफ़ा कमाया था.

इस पहल से दंतेवाड़ा की कम से कम 30 आदिवासी महिलाओं को लाभ हुआ था. इन इको-फ्रेंडली राखियों को बनाकर हर महिला 6,000 से 10,000 रुपये तक कमाने में कामयाब रही. हर एक महिला को एक दिन में कम से कम 20 राखी बनाने का लक्ष्य दिया गया था.

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