छत्तीसगढ़ के सीतानदी उदंती टाइगर रिज़र्व में रहने वाले आदिवासियों की माँग है कि उनके सामुदायिक वन अधिकारों (CFR – Community Forest Rights) को मान्यता दी जाए. राज्य की कांग्रेस सरकार ने इसका वादा किया है, लेकिन रेड टेप की वजह से आदिवासियों को यह अधिकार नहीं मिल पाए हैं. मामला उलझा है वन अधिकार कानून की व्याख्या को लेकर.
16 फरवरी को बहिगांव के निवासियों ने सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट को एक पत्र लिखकर इस मामले को निपटाने के लिए एक विशेष ग्राम सभा की मांग की थी. पत्र में उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य के जनजातीय विभाग से क्लियरेंस मिलने के बावजूद अधिकारी उनके वन अधिकारों पर रोक लगा रहे हैं.
आरोप है कि वन अधिकारियों ने यह कहकर गांववालों के आवेदन खारिज किए कि वो मूल क्षेत्रों (core areas) में रहते हैं, जो वन अधिकार अधिनियम के तहत नहीं आते.
10 से ज़्यादा गांवों के निवासी अपने आसपास के जंगल पर टाइगर रिज़र्व के अधिकारियों, और धमतरी और गरियाबंद के ज़िला अधिकारियों से अपना अधिकार पाने की कोशिश में लगे हैं.

अधिकारियों का तर्क
अधिकारी कहते हैं कि ग्रामीणों के सामुदायिक वन अधिकारों की चर्चा तभी हो सकती है जब वो मूल क्षेत्रों से बाहर निकलें. उनका कहना है कि मूल क्षेत्रों में चराई की भी अनुमति नहीं है. ऐसे में गांववाले संसाधन अधिकार चाहते हैं ताकि उन्हें सड़क और अन्य सुविधाएं मिल सकें, जो कोर एरिया में नहीं बनाई जा सकतीं.
जनजातीय विभाग के सचिव डी डी सिंह ने एक अखबार को बताया कि उन्होंने पिछले साल दिसंबर में पत्र लिखकर अधिकारियों से कहा था कि एफ़आरए के तहत वन अधिकारइन आदिवासियों को दिए जाने चाहिए.
उन्होंने पत्र में इस बात का उल्लेख किया था कि अधिनियम क्या कहता है, लेकिन सिंह ने कहा कि कानून की व्याख्या ज़मीन पर मौजूद अधिकारियों द्वारा ही की जा सकती है.
लेकिन गांववालों का तर्क है कि एफ़आरए कहता है कि किसी भी प्रकार के वन क्षेत्र में आदिवासियों के अधिकारों को मान्यता दी जानी चाहिए. और अधिकारियों को यह नहीं मानना चाहिए कि वो उन आदिवासियों से बेहतर जंगलों का प्रबंधन कर सकते हैं, जिन्होंने जंगल के अंदर पीढ़ियों से रह रहे हैं.

वन अधिकार अधिनियम के प्रावधान
फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट, 2006 की धारा 3 (1) (i) किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनर्जनन या संरक्षण या प्रबंधन करने का अधिकार आदिवासियों को देता है, जो परंपरागत रूप से उसे संरक्षित करते आए हैं.
सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों के लिए, एक आदिवासी गांव की पारंपरिक सीमा को मान्यता दी जाती है, और इसके संरक्षण, पुनर्जनन, संरक्षण और प्रबंधन पर निर्णय लेने के लिए ग्राम सभा को सशक्त भी बनाती है.