HomeAdivasi Dailyवन्यजीव अभयारण्य के लिए आदिवासी अधिकारों की बलि

वन्यजीव अभयारण्य के लिए आदिवासी अधिकारों की बलि

महाराष्ट्र के ठाणे जिले के शाहपुर तालुका के दूरदराज के आदिवासी गांवों के लोगों ने इलाके को इको-सेंसिटिव (eco-sensitive) जोन करार दिए जाने का विरोध किया है. ग्रामीणों का दावा है कि तानसा वन्यजीव अभयारण्य के लिए eco-sensitive जोन इन आदिवासी गांवों में प्रगति और विकास को रोक देगा.

अगस्त 2017 में केंद्र सरकार ने तानसा वन्यजीव अभयारण्य के लिए शाहपुर, भिवंडी, वाडा और मोखदा के बड़े हिस्से को eco-sensitive जोन घोषित कर दिया था.

इसके विरोध में दो दिन पहले गांव वालों ने 20 से 25 किलोमीटर लंबी मौटरसाइकिल रैली निकाली थी. इसमें 200 मोटरसाइकिलों ने हिस्सा लिया, और गांवों में घूम-घूमकर मामले के बारे में जागरुकता पैदा की.

महाराष्ट्र श्रमजीवी संगठन के महासचिव बालाराम भोइर कहते हैं, “हमने गांवों में 12 बैठकें की. हमारा मुख्य सवाल यह है कि सरकार ने आदिवासी हिस्सों को ही क्यों चुना? आमतौर पर, किसी भी परियोजना को पूरा करने के लिए ग्राम सभा से अनुमति ली जाती है. लेकिन इस मामले में, कोई अनुमति नहीं ली गई. यह कैसे हो सकता है? शाहपुर के करीब 60 गांव, भिवंडी के 27 गांव, मोखड़े के 58 गांव और वाडा के 47 गांव इको सेंसिटिव जोन में आते हैं.”

भोइर का कहना है कि आदेश तो 2017 में जारी किया गया था, लेकिन इसे इको-सेंसिटिव जोन के रूप में लागू करने का काम अब शुरू हुआ है. सरकार अब कोई अतिक्रमण नहीं होने दे रही है, और लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है.

अगर कोई आदिवासी कोई बिज़नेस या खेती शुरू करना चाहता है तो उसे उसके लिए अनुमति नहीं मिलेगी. आदिवासियों को अब हर काम के लिए मंजूरी लेनी होगी. मसलन अगर किसी के घर में शादी हो और वो संगीत बजाना चाहें तो इसके लिए अनुमति मिलना मुश्किल है.

अब इन गांवों के लोग 28 दिसंबर को भिवंडी कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे.

हाल ही में सरकार ने इको सेंसिटिव जोन में 10 किलोमीटर और जोड़ा और 66 प्रमुख गांव अब इसके तहत आते हैं. इसका खामियाजा आदिवासी किसान को भुगतना पड़ रहा है.

आदिवासी कहते हैं कि होने के नाते वो जंगल पर निर्भर हैं और अब इलाके में घुसना भी प्रतिबंधित हो जायेगा.

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