पहली लहर में ज़्यादातर शहरों तक सीमित रही कोविड-19 बीमारी ने अब गांवों का रुख कर लिया है. ओडिशा के स्वास्थ्य विभाग के विश्लेषण के अनुसार राज्य में इस महीने के कोविड पॉज़िटिव मामलों में से 57 प्रतिशत गांवों से हैं.
मई में अब तक सामने आए 1.78 लाख नए मामलों में से एक लाख से ज़्यादा गांवों से हैं. ग्रामीण इलाक़ों से अप्रैल में लगभग 51% मामले आए थे, यानि कुल 1.01 लाख नए मामलों में से 50,000 से ज़्यादा.
मार्च तक ग्रामीण इलाक़ों में कोविड संक्रमण न के बराबर था. अब गांवों में बढ़ते मामलों से चिंता भी बढ़ रही है, क्योंकि ओडिशा की 4.5 करोड़ आबादी का 80% से ज़्यादा गांवों में रहता है.
गावों में संक्रमण के मामले आधिकारिक आंकड़ों से ज़्यादा हो सकते हैं, क्योंकि लक्षणों वाले कई लोग कोविड टेस्ट से बच रहे हैं. टेस्ट न कराने की सबसे बड़ी वजह है टेस्ट सेंटरों तक की दूरी. कोविड से ग्रस्त किसी व्यक्ति को दो बार जाना होगा. पहले सैंपल देने के लिए, फिर रिपोर्ट लेने के लिए.
बारगढ़, संबलपुर, सुंदरगढ़, कालाहांडी और नुआपाड़ा ज़िलों के कई गांवों में बुखार के मामलों में तेज़ी दर्ज की गई है. लेकिन टेस्टिंग की दर काफ़ी धीमी है.
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और एएनएम (Auxiliary Nursing Midwifery) को संभावित संक्रमण पर नज़र रखने और उन्हें तुरंत रिपोर्ट करने की ट्रेनिंग भी दी गई है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार को ग्रामीण और आदिवासी भारत के लिए कुछ ख़ास गाइडलाइन जारी की थीं.
इनमें ख़ास हैं आशा वर्कर के माध्यम से समय-समय पर प्रत्येक गांव में इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी/गंभीर साँस की तकलीफ़ (आईएलआई/एसएआरआई) की सक्रिय निगरानी, आदिवासी और ग्रामीण इलाक़ों में टेली-कंसलटेशन के ज़रिए डॉक्टर की सलाह की उपलब्धता, और COVID रोगियों के ऑक्सीजन स्तर की निगरानी पर ज़ोर.
इस बीच, मलकानगिरी ज़िले में कोविड टीकाकरण अभियान का विस्तार करते हुए, बोंडा समुदाय के 716 लोगों को सोमवार को वैक्सीन लगाई गई.
बोंडा ओडिशा की 13 आदिम जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) में से एक है. यह समुदाय खैरपुट ब्लॉक में आने वाले बोंडा पहाड़ी की चोटी पर रहता है.
अंद्रहल और मुदुलीपाड़ा पंचायतों में 45-60 साल की उम्र के 710 लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ मिली, जबकि दूसरी जोड़ सिर्फ़ छह लोगों को दी गई है.
स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि उनके पास वैक्सीन की कमी नहीं है, लेकिन प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद बोंडा आदिवासी टीकाकरण अभियान के लिए आगे नहीं आ रहे हैं.
सीएचसी आयुष के डॉक्टर देबब्रता बारिक ने एक अखबार को बताया कि स्वास्थ्य दल, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर टीकाकरण के लिए बोंडा समुदाय के बीच जागरुकता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उसका कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं हो रहा है.