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हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा, हाथी तो निकल गया कहीं पूँछ ना अटक जाए

हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय के लोग कहते हैं कि उनके और उत्तराखंड में बसे उनके ही समुदाय के लोगों के बीच सिर्फ़ एक नदी है. इन दोनों ही राज्यों के हाटी समुदाय के लोगों में रोटी बेटी का रिश्ता है. लेकिन उत्तराखंड में हाटी समुदाय अनुसूचित जनजाति का हिस्सा है. हिमाचल प्रदेश में अभी तक उसे इस स्टेटस से महरूम रखा गया है. हाटी समुदाय के नेताओं को अमित शाह से मिले आश्वासन के बाद यह उम्मीद बढ़ गई है कि हाटी समुदाय की यह माँग चुनाव से पहले पूरी हो सकती है. लेकिन कोई भी राजनीतिक दल अपने नफ़े नुक़सान के पूरे आकलन से पहले कोई कदम नहीं उठाता है.

“हम लोग गृह मंत्री अमित शाह से मिले थे. गृहमंत्री ने हमें आश्वासन दिया है कि जल्दी ही हमारी माँग मान ली जाएगी. उन्होंने गृह सचिव और भारत के रजिस्ट्रार जनरल को भी हिदायत दी है कि जल्दी से जल्दी हमें उत्तराखंड राज्य की तरह ही अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाए. हमें पूरा विश्वास है कि अब यह सिर्फ़ कुछ समय का मामला है और हिमाचल प्रदेश में भी हाटी समुदाय अनुसूचित जनजाति में शामिल हो जाएगा.” हाटी संघर्ष समिति के संरक्षक डाक्टर अमिचंद कमल कहते हैं.

हाटी समुदाय के प्रतिनिधि मंडल को दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मिले इस आश्वासन पर पूरा भरोसा है. लेकिन उसके बावजूद हाटी समुदायों के लोग अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की माँग के समर्थन में आंदोलन को नहीं छोड़ रहे हैं.

कल यानि सोमवार को सिरमौर में हाटी समुदाय की एक महापंचायत हुई है. इस महापंचायत में फ़ैसला लिया गया था कि अगर उनकी माँग पूरी नहीं होती है तो राज्य के विधानसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा.

MBB से ख़ास बातचीत में हाटी संघर्ष समिति के सदस्य डाक्टर रमेश सिंगता कहते हैं, “ हम लोग पिछले 55 साल से इस माँग के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हमारी माँग है कि जैसे हमारे समुदाय को उत्तराखंड में जनजाति का दर्जा प्राप्त है वैसे ही हमें भी हिमाचल प्रदेश में जनजाति का दर्जा दिया जाना चाहिए. इस महापंचायत में हमारे समुदाय के सभी लोग राजनीतिक और आम लोग शामिल थे. इस पंचायत में यह प्रण दोहराया गया है कि अगर हमारी माँग पूरी नहीं होती है तो फिर हम चुनाव का बहिष्कार करेंगे.”

हाटी महापंचायत

हाटी समुदाय को पिछले महीने गृहमंत्री अमित शाह के आश्वासन की ख़बर से हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की आस जगी है. लेकिन इसके साथ ही इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का विरोध भी शुरू हो गया है. दो दिन पहले कई संगठनों ने सिरमौर के नाहन बाज़ार से सिरमौर के डीसी ऑफिस तक एक मार्च निकाला.

इस मार्च में एससी अधिकार संरक्षण समिति, दलित शोषण मुक्ति मोर्चा, भीम आर्मी, विश्वकर्मा सभा जैसे कई संगठन शामिल थे. इस मार्च के बाद एक सभा का आयोजन भी किया गया.

इस मार्च में शामिल लोगों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में हाटी नाम का समुदाय जनजाति की सूचि में शामिल नहीं किया जा सकता है. अगर राजनीतिक कारणों से ऐसा किया जाता है तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे. 

इस सभा में दावा किया गया कि 2017 में महा रजिस्ट्रार की रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय को आदिवासी समुदाय नहीं माना जा सकता है. इसलिए संविधान की धारा 342 (2) के तहत उसे जनजाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. 

इस सभा में कहा गया है कि गिरि-पार एरिया जहां का हाटी समुदाय एसटी का दर्जा माँग रहा है दलितों पर अत्याचार के मामले वहाँ सबसे अधिक मिलते हैं. इस सिलसिले में दावा किया गया कि 2015 से 2022 के बीच दलित उत्पीड़न के कम से कम  106 मामले दायर हुए हैं. 

इस सभा में शामिल लोगों ने कहा कि अगर हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा मिल जाएगा तो उनका ज़ुल्म दलित जातियों पर बढ़ सकता है. क्योंकि फिर वो अत्याचार निवारण क़ानूनों के दायरे से बाहर हो जाएँगे. 

इस सभा में यह दावा भी किया गया कि अगर हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाता है तो पंचायती राज संस्थाओं में भी दूसरे समुदायों का प्रतिनिधित्व प्रभावित होगा. 

इस बारे में जब MBB ने हाटी संघर्ष समिति की प्रतिक्रिया माँगी तो डा रमेश सिंगता का कहना था, “जो लोग हमारे समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का विरोध कर रहे हैं, उन्हें इस काम के लिए फंडिंग मिल रही है. वो राजनीति से प्रेरित हैं. वे संगठन नहीं चाहते हैं कि हमें भी रिज़र्वेशन का फ़ायदा मिल सके.”

वो कहते हैं कि हमारा समुदाय ग़रीबी में जी रहा है. अगर हमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो हमें भी संविधान के तहत सुरक्षा हासिल हो सकेगी. इसके साथ ही हमारे समुदाय के बच्चों को भी स्कॉलरशिप की सुविधा मिल सकेगी.

हमारे समुदाय को अगर अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाता है तो ऑल इंडिया सर्विस में हमारे लोग भी जा सकेंगे. 

हाटी समुदाय की माँग और उसकी पृष्ठभूमि

“हमारी यह माँग बहुत पुरानी है. राज्य सरकार ने साल 1978 में हमारी इस माँग का समर्थन करते हुए प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था. केन्द्र सरकार ने इस प्रस्ताव को SC\ST Commission को भेज दिया था. एक साल बाद कमीशन ने सिफ़ारिश कर दी कि हाटी समुदाय को ST का दर्जा दिया जाना चाहिए.” डा अमिचंद कमल कहते हैं.

वो कहते हैं कि उसके बाद पता नहीं क्या हुआ कि इस सबके बावजूद कमीशन की रिपोर्ट में की गई सिफ़ारिश लागू ही नहीं हुई. यह प्रस्ताव शायद राजनीतिक जागरूकता की कमी की वजह से लागू नहीं हुए थे. 

हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की माँग को बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में भी शामिल किया था. पार्टी ने 2009 और 2014 में इस माँग को अपने घोषणा पत्र में जगह दी थी.

परंपरागत वेशभूषा में हाटी समुदाय के कुछ लोग

हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय के लोग कहते हैं कि उनके और उत्तराखंड में बसे उनके ही समुदाय के लोगों के बीच सिर्फ़ एक नदी है. इन दोनों ही राज्यों के हाटी समुदाय के लोगों में रोटी बेटी का रिश्ता है. लेकिन उत्तराखंड में हाटी समुदाय अनुसूचित जनजाति का हिस्सा है. हिमाचल प्रदेश में अभी तक उसे इस स्टेटस से महरूम रखा गया है.

इस बारे में डॉ अमिचंद कमल कहते हैं, “दरअसल उत्तराखंड उस समय यूपी का हिस्सा था और राजनीतिक तौर पर काफ़ी महत्वपूर्ण था. जबकि हिमाचल प्रदेश की राजनीतिक तौर पर ज़्यादा पूछ नहीं थी. हमारे यहाँ के लोगों में यह जागरूकता नहीं थी की एसटी का दर्जा मिलने से क्या क्या फ़ायदा हो सकता है. “

वो आगे कहते हैं कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय की संस्कृति, जीवनशैली और परंपरा एक हैं तो फिर दोनों के संविधानिक दर्जे में फ़र्क़ क्यों होना चाहिए. 

हाटी समुदाय के नेताओं का कहना है कि उत्तराखंड के हाटी समुदाय के लोग हमारी माँग के ख़िलाफ़ नहीं है.  लेकिन हिमाचल प्रदेश में ही कुछ संगठन हमारी माँग का विरोध कर रहे हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. 

बीजेपी पर हाटी समुदाय की माँग पूरा करने का दबाव

केन्द्र के साथ साथ हिमाचल प्रदेश में भी फ़िलहाल बीजेपी की सरकार है. इसलिए पार्टी पर यह दबाव है कि वो हाटी समुदाय से किया हुआ वादा पूरा करे. पार्टी के स्थानीय नेताओं का दबाव भी पार्टी पर बन रहा है. 

हाटी समुदाय के नेताओं को अमित शाह से मिले आश्वासन के बाद यह उम्मीद बढ़ गई है कि हाटी समुदाय की यह माँग चुनाव से पहले पूरी हो सकती है. लेकिन कोई भी राजनीतिक दल अपने नफ़े नुक़सान के पूरे आकलन से पहले कोई कदम नहीं उठाता है.

हिमाचल प्रदेश में जिस तरह से हाटी समुदाय को जनजाति की सूची में शामिल करने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू हुए हैं, उसका ज़मीन असर भी सरकार भाँप कर ही कोई कदम उठाएगी. 

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