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आदिम जनजातियों (PVTG) को मोदी सरकार का घर देने का वादा भी अधूरा ही रहा

सरकार ने यह घोषणा तो ज़रूर कर दी कि 15 फ़रवरी तक ढाई लाख पीवीटीजी परिवारों (PVTG families) को घर दे दिए जाएंगे. लेकिन सरकार को यह ही नहीं पता है कि देश में कुल कितने परिवार रहते हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 फ़रवरी तक विशेष रुप से पिछड़ी जनजातियों (आदिम जनजातियां) को पीएम-जनमन (PM-JANMAN) के तहत ढाई लाख घर देने का वादा किया था. इस तारीख को बीते 15 दिन हो चुके हैं और सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने से बहुत दूर खड़ी है. 

सरकार ने इस दौरान अपने ही लक्ष्य के हिसाब से 1 लाख घर कम दिये हैं. प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान की घोषणा 15 नबंवर को झारखंड में बिरसा मुंडा की जन्मस्थल से किया गया था. यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बजट भाषण में इस कार्यक्रम के बारे में की थी.

इस योजना को लागू करने में सरकार इतना पिछड़ गई है क्योंकि योजना की घोषणा करने से पहले सरकार ने ज़रुरी होमवर्क नहीं किया था. 

सरकार ने यह घोषणा तो ज़रूर कर दी कि 15 फ़रवरी तक ढाई लाख पीवीटीजी परिवारों (PVTG families) को घर दे दिए जाएंगे. लेकिन सरकार को यह ही नहीं पता है कि देश में कुल कितने परिवार रहते हैं. 

भारत में कुल 75 आदिवासी समुदायों को विशेष रुप से पिछड़ी जनजाति की सूचि में रखा गया है. सरकार ने यह बताया था कि देश के अलग अलग राज्यों के 22000 गांवों में ये आदिवासी रहते हैं.

नवंबर 2023 में सरकार ने यह बताया था कि देश में पीवीटीजी आदिवासियों की कुल आबादी लगभग 28 लाख है. इसके बाद जनवरी 2024 में सरकार ने अनुमान लगाया कि इन आदिवासियों की जनसंख्या 36.5 लाख हो सकती है. 

इसके बाद जनवरी ख़त्म होते होते सरकार ने इन आंकड़ों में फिर से बदलाव किया और बताया कि पीवीटीजी परिवारों की संख्या 44 लाख से ज़्यादा है.

देश में आम चुनवा की घोषणा कभी भी हो सकती है और सत्ताधारी पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य बड़े नेता चुनाव प्रचार में उतर चुके हैं. इस चुनाव मे बीजेपी ने अन्य मुद्दों के अलावा आदिवासी विकास और सम्मान को भी मुद्दा बनाया है.

अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा की कुल 47 सीटें आरक्षित हैं. 

इस योजना को लागू करने की जो जल्दबाज़ी दिखाई जा रही है उसका कारण चुनाव ही है. अलग अलग राज्यों में आदिवासी जनसंख्या से जुड़े आंकड़े मांगे जा रहे हैं. 

पीएम-जनमन को लागू करने के लिए केंद्र सरकार के दबाव में राज्य सरकारें आधे-अधूरे सर्वे के आधार पर आंकड़े भेज रहे हैं. 

लोकतंत्र में चुनाव वह अवसर होता है जिसमें लोग अपने मुद्दों को राजनीतिक दलों के घोषणापत्र और चुनाव प्रचार में शामिल करने के लिए दबाव बनाते हैं. वंही सरकार भी चुनाव के मौसम में लोगों की भलाई के कुछ काम करते हुए दिखाई देना चाहती है.

पीएम-जनमन योजना की घोषणा एक ऐसा ही प्रयास है. अफ़सोस की बात ये है कि देश के सबसे वंचित समुदायों के भले का जो काम सरकार करना चाहती है उसके लिए ज़रूरी आंकड़े तक जुटाए नहीं गए.

अगर सरकार ने थोड़ा समय रहते इस मामले में सोच-विचार किया होता तो उसके अपने ही झोले में एक रिपोर्ट से उसे आदिवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता चल सकता था.

साल 2013-14 की खाखा कमेटी रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि देश में पीवीटीजी की स्थिति काफी ख़राब है. लेकिन सरकार ने चुनावों की घोषणा से तुरंत पहले बिजली की गति से आदिवासियों के विकास का दावा किा है.

सरकार के अपने आंकड़े बता रहे हैं कि यह दावा सच नहीं है. 

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