तमिलनाडु के आदिवासी कल्याण समूह सहित कई सामाजिक संगठन विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.
तमिलनाडु विधानसभा में आदिवासियों के लिए महज़ 1 सीट आरक्षित है.
इन आदिवासी समूहों और सामाजिक संगठन का यह आरोप है की राज्य के आदिवासियों को नज़रअंदाज किया जा रहा है.
इन सामाजिक संगठनों का यह भी कहना है कि राज्य में 30 ऐसे आदिवासी समुदाय है, जो सालों से अनुसूचित जनजाति के दर्जे के लिए लड़ रहे हैं. जिनमें अदियान, अरनादान, कादर जैसे कई आदिवासी समुदाय शामिल हैं.
आदिवासियों के लिए राजनीतिक आरक्षण बढ़ाने की मांग करने वाले लोग कहते हैं कि इस एक सीट को भी सालों से मलयाली आदिवासी जीतते आए है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मलयाली पढ़े-लिखे है.
आदिवासी संगठन के अधिकारी आर. माहेश्वरी ने कहा की इस एक विधानसभा सीट को अन्य आदिवासी समुदाय इसलिए नहीं जीत पाते क्योंकि आदिवासी हमेशा से शिक्षा से वंचित रहे हैं.
उन्होंने कहा, “ हमारी मांग सुने वाला कोई नहीं है. इसलिए हमें हमारे समाज से एक ऐसे आदिवासी की जरूरत जो हमारी मांगों को सुने और उसे पूरा करे.”
आर. माहेश्वरी ने बताया कि सरकार ने आदिवासी निर्वाचन क्षेत्र को 3 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया है क्योंकि उनका मानना है कि राज्य के आदिवासियों की जनसंख्या में कमी देखने को मिली है.
लेकिन आदिवासी और सामाजिक संगठनों का कहना है की राज्य में 10 लाख से भी ज्यादा आदिवासी रहते है. इसलिए इस मुद्दे में स्पष्टीकरण के लिए जनगणना जरूरी है.
इसके अलावा कन्याकुमारी के समाजिक कार्यकर्ता टी. शिभु ने बताया की सरकार हमेशा से आदिवासियों को घर और नौकरी उपलब्ध करवाने में ध्यान देती आई है. लेकिन आदिवासियों के कई और समस्याएं भी है. जिसे सरकार समझने में असमर्थ रही हैं.
उन्होंने यह भी कहा की प्रत्येक आदिवासी समुदाय की जरूरतों को समझने के लिए, हर एक समुदाय से प्रतिनिधित्व का होना जरूरी है.
आदिवासी समूह सहित सामाजिक संगठनों की इस मांग को अब पार्टियां अपने घोषणा पत्र में शामिल नहीं कर सकती. क्योंकि चुनाव की घोषणा के बाद अब पार्टियां चुनाव प्रचार में उतर चुकी हैं.
लेकिन कम से कम इस मुद्दे पर चुनाव के दौरान कुछ चर्चा तो हो ही सकती है.