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पुरखों की ज़मीन बनाम करोड़ों रूपये का खेल, देउचा पचामी कोयला परियोजना में कौन कहां खड़ा है

“ जो ममता सिंगूर में भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ लड़ कर सत्ता में पहुँची है, आज आदिवासियों की ज़मीन छीन रही हैं. क्योंकि यह करोड़ों अरबों रूपये का मामला है. ममता बनर्जी जानती हैं कि यहाँ पर सिर्फ़ कोयला नहीं बल्कि अच्छी क्वालिटी का पत्थर भी है. कोयला निकालने से पहले यहाँ पर पत्थर भी निकलेगा. जिसकी क़ीमत करोड़ों रूपये में होगी. इस पत्थर की क़ीमत का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक 40 टन का एक ट्रक पत्थर की क़ीमत 80-90 हज़ार रूपया होती है.”

Deucha Panchami Coal Project: “यह जमीन हमारे पुरखों की हैं, हमारा जाहेरथान यहाँ पर है यानि हमारे देवता भी इसी ज़मीन और जंगल में बसते हैं. सरकार हमें लालच दे कर हमारी एकता को तोड़ना चाहती है. अगर ज़मीन चली जाएगी तो हमारा वजूद, हमारी परंपरा और संस्कृति के अलावा जीविका भी बर्बाद हो जाएगी”. पश्चिम बंगाल में देउचा पचामी कोयला परियोजना का विरोध कर रहे आदिवासी संगठनों में शामिल बीरभूम ज़मीन, जीवन, जीविका और प्रकृति बचाओ महासभा के नेता शिबलाल सोरेन ने शनिवार, 23 अप्रैल को MBB से एक लंबी बातचीत में यह कहा.

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला के मोहम्मद बाजार स्थित देउचा पचामी कोयला परियोजना के खिलाफ आदिवासियों का विरोध प्रदर्शन पिछले क़रीब तीन महीने से जारी है. इस सप्ताह ही सोमवार के दिन यह मामला तब और भड़क गया जब प्रशासनिक अधिकारी आदिवासियों से बातचीत के लिए पहुँचे थे. 

बीरभूम के आदिवासियों का विरोध राज्य की सरकार व टीएमसी के खिलाफ है. दरअसल सोमवार के दिन आदिवासियों के विरोध के कारण प्रशासनिक अधिकारियों समेत तृणमूल कांग्रेस के नेता व कार्यकर्ता भी गांव पहुंचकर आदिवासियों को समझाने का प्रयास करने लगे.  लेकिन इस दौरान आदिवासियों के विरोध का उन्हें सामना करना पड़ा.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

आदिवासी नेता और संगठन क्या कहते हैं

शिबलाल सोरेन कहते हैं कि इस इलाक़े में संताल सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है. यहाँ के ज़्यादातर लोग खेती किसानी से ही अपनी जीविका जुटाते हैं. वो कहते हैं कि यहाँ का आदिवासी किसान साल में दो फ़सल उगा लेता है. यहाँ पर कोयला खादान के विरोध के बारे में उनका कहना है कि राज्य का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी झूठ फैला रही हैं.

सरकार चाहती है कि हमारी ज़मीन छीन कर बड़े पूँजीपतियों को दे दी जाए. लेकिन हम किसी भी सूरत में अपनी ज़मीन, जंगल और जल पर अधिकार को नहीं छोड़ेंगे. वो आगे कहते हैं कि हमारी ज़मीन को छीन लेने के लिए सरकार कई तरह के पैंतरेबाज़ी कर रही है.

इसमें हमें पैसे और नौकरी का लालच भी दिया जा रहा है. लेकिन हम जानते हैं कि अगर हमारी ज़मीन चली जाएगी तो हमारी संस्कृति और पहचान मिटने का ख़तरा होगा. सरकार कई तरह से हमारी एकता को तोड़ने का प्रयास कर रही है.

शिबलाल सोरेन कहते हैं, “ जो ममता सिंगूर में भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ लड़ कर सत्ता में पहुँची है, आज आदिवासियों की ज़मीन छीन रही हैं. क्योंकि यह करोड़ों अरबों रूपये का मामला है. ममता बनर्जी जानती हैं कि यहाँ पर सिर्फ़ कोयला नहीं बल्कि अच्छी क्वालिटी का पत्थर भी है. कोयला निकालने से पहले यहाँ पर पत्थर भी निकलेगा. जिसकी क़ीमत करोड़ों रूपये में होगी. इस पत्थर की क़ीमत का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक 40 टन का एक ट्रक पत्थर की क़ीमत 80-90 हज़ार रूपया होती है.”

“उन्हें लगता है कि आदिवासी तो सीधे सादे लोग होते हैं. वो जो चाहेंगी वो कर सकती हैं. लेकिन हम लोग उनकी चाल को समझ रहे हैं. हम इस जाल में नहीं फँसने वाले हैं.” वो आगे कहते हैं कि सरकार ने आज तक इस इलाक़े में बेसिक सुविधाएँ भी नहीं दी हैं. 

इस इलाक़े में कोई एक अच्छा अस्पताल या फिर स्कूल तक नहीं है. ममता बनर्जी लालच में अंधी हो चुकी हैं.

ममता बनर्जी की चाल को आप इसी बात से समझ सकते हैं कि इस इलाक़े में मीडिया को भी आने नहीं दिया जा रहा है. क्योंकि अगर मीडिया यहाँ तक पहुँच जाता है तो असलियत बाहर आ सकती है. ममता बनर्जी फ़र्ज़ी तथ्यों के आधार पर मीडिया में यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि ज़्यादातर आदिवासी ज़मीन देने के लिए तैयार हैं.

हमारा आंदोलन उस समय तक चलता रहेगा जब तक कि ममता बनर्जी की सरकार विधानसभा में बिल को वापस नहीं लेती है. हम जानते हैं कि इस विरोध की वजह से हमारे उपर फ़र्ज़ी केस लादे जा सकते हैं. इसके अलावा आदिवासी नेताओं की जान को ख़तरा भी हो सकता है.

लेकिन हम अपने पुरखों की ज़मीन को आसानी से नहीं छोड़ेंगे. हम अगर मारे गए तो हमारी अगली पीढ़ी लड़ेगी.

ममता बनर्जी कहती हैं कि यहाँ पर आदिवासियों को रोज़गार दिया जाएगा. मुख्यमंत्री ये बताएँ कि पश्चिम बंगाल में कितने पढ़े लिखे बेरोज़गार घूम रहे हैं, उन्हें रोज़गार क्यों नहीं दिया गया. दरअसल ममता बनर्जी आदिवासियों को बहका रही हैं.

हम जानते हैं की नौकरी और रोज़गार के वादे झूठे हैं और वो आदिवासियों को बहकाना चाहती हैं. जब वो पढ़े लिखे नौजवानों को नौकरी नहीं दे पार रही हैं तो आदिवासी जो ज़्यादा पढ़े लिखे भी नहीं हैं, उन्हें क्या नौकरी देंगी.

बीरभूम के बड़े नेता और पूर्व सांसद रामचंद्र डोम क्या कहते हैं

सीपीएस के पोलित ब्यूरो सदस्य और बीरभूम के पूर्व सांसद रामचंद्र डोम से भी इस सिलसिले में MBB की लंबी बातचीत हुई. उन्होंने सबसे पहले इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि यह इलाक़ा Integrated Tribal Development Area में आता है. अगर यहां पर खनन किया जाता है तो 20-21 हज़ार लोग विस्थापित होंगे. इसके साथ ही पर्यावरण भी बर्बाद हो जाएगा. 

वो कहते हैं कि यहाँ पर खनन करना आसान नहीं होगा. क्योंकि यहाँ पर कोयला 800 मीटर की गहराई पर पाया जाएगा. उसके उपर कई परत पत्थर की हैं. इस वजह से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया ने यहाँ खनन में रुचि नहीं ली थी. क्योंकि यह एक बेहद महँगा काम है.

ज़ाहिर है कि अडानी ग्रुप अगर यहाँ खनन को तैयार होता है तो राज्य सरकार ने अवश्य ही उन्हें कुछ और वादे भी किये होंगे, जिससे वो पैसा कमा सकेंगे. 

रामचंद्र डोम कहते हैं कि यह पूरा प्रस्ताव आशंका पैदा करता है क्योंकि इस प्रोजेक्ट की कोई विस्तृत रिपोर्ट या स्टडी लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है. इस प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण की आवश्यक मंज़ूरी या फिर इसके सामाजिक प्रभवाों का अध्ययन की कोई जानकारी नहीं है.

सीपीएम नेता डॉक्टर रामचंद्र डोम

भूमि अधिग्रहण क़ानून में व्यवस्था है कि किसी भी ज़मीन के अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा से मंज़ूरी लेनी होगी. लेकिन इस मामले में इस प्रावधान का ध्यान नहीं रखा गया है. क़ानून के हिसाब से सरकार को आदिवासियों की ज़मीन के बदले में ना सिर्फ़ बराबर की ज़मीन देनी चाहिए, बल्कि उस ज़मीन की गुणवत्ता भी वैसी ही होनी चाहिए.

सरकार कहती है कि पुनर्वास के लिए 600 वर्ग फुट का एक फ़्लैट हर परिवार को मिलेगा. लेकिन सरकार यह नहीं समझती है कि फ़्लैट में मुर्ग़े या बकरे नहीं पाले जा सकते हैं. आदिवासियों की जीविका में इसका बड़ा हिस्सा होता है.

यह सरकार के सामने बिलकुल स्पष्ट है कि यहाँ के आदिवासी अपनी ज़मीन नहीं देना चाहते हैं. इसलिए पिछले लगभग तीन महीने से आदिवासियों का आंदोलन चल रहा है. सरकार आदिवासी आंदोलन से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को झूठे मुक़दमों में फँसा रही है. 

बीजेपी विधायक श्रीरूपा मित्रा चौधरी क्या क़हती हैं

बीजेपी बीरभूम में चल रहे आदिवासी आंदोलन का समर्थन कर रही है. हाल ही में बीजेपी विधायक दल के नेता और विधान सभा में नेता विपक्ष सुवेन्दु अधिकारी के नेतृत्व में पार्टी के विधायक आदिवासी आंदोलन के नेताओं से मिले थे. 

इन विधायकों ने इस इलाक़े के उन लोगों से भी मुलाक़ात की है जो इस परियोजना से प्रभावित होंगे. बीजेपी का कहना है कि वो पूरी तरह से इस आंदोलन का समर्थन करती है.

MBB से बात करते हुए बीजेपी की विधायक श्रीरूपा मित्रा चौधरी ने कहा, “ राज्य की ममता बनर्जी सरकार इस परियोजना के सहारे यह दिखाना चाहती है कि पश्चिम बंगाल में उद्योगपति और निवेशक आना चाहते हैं, लेकिन यह सच नहीं है.”

उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की सरकार कोयला खादान ऐसे पेश कर रही है जैसे यह सोने की खान है और इससे राज्य के सब दुख दूर हो जाएँगे. दरअसल पश्चिम बंगाल में विपक्ष सरकार से रोज़गार और निवेश पर सवाल पूछ रहा है. 

बीजेपी नेता श्रीरूपा मित्रा चौधरी

सरकार इस तरह से इस कोयला खादान का प्रचार कर रही है जैसे इसके सहारे राज्य की बेरोज़गारी ख़त्म की जा सकती है. श्रीरूपा कहती हैं कि जब भूमिपूत्र यानि आदिवासी विस्थापित ही हो जाएँगे तो भला रोज़गार उन्हें कैसे मिलेगा. 

उनके लिए भूमि न्याय सबसे अहम है. क़ानून तो यह कहता है कि आप आदिवासियों को ज़बरदस्ती उनकी भूमि से हटा नहीं सकते हैं. किसी वित्तीय मुआवज़े से उनके कष्ट कम नहीं किये जा सकेंगे.

उन्होंने कहा, “हमने पहले भी देखा है कि अगर आदिवासी ज़मीन चली जाए, फिर आदिवासी भूमिहीन मज़दूर बन जाता है. उसका कुछ नहीं हो पाता है.”

वो कहती हैं कि बीजेपी राज्य में विकास या औद्योगीकरण के ख़िलाफ़ नहीं है. लेकिन आदिवासी हक़ों की क़ीमत पर विकास नहीं होना चाहिए. आदिवासियों के हक़ों की रक्षा बेहद ज़रूरी है. 

TMC पर ज़मीन ख़ाली करवाने के आरोप

भाजपा विधायक अग्निमित्रा पॉल का कहना है कि टीएमसी द्वारा जबरन आदिवासियों को जमीन लेने की कोशिश की जा रही है जो वहां के मूल निवासी है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिंगूर और नंदीग्राम में जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन कर रही थीं. आज वो अपने ही बयान से पलट रही हैं. वहीं ममता बनर्जी द्वारा इनके पेंशन को भी रोक दिया गया है. 

कांग्रेस ने भी दिया समर्थन

पश्चिम बंगाल से टीएमसी के सांसद अधीर रंजन चौधरी देउचा पचामी पहुंचे जहां उन्हें आदिवासियों के विरोध का सामना करना पड़ा. ये आदिवासी देउचा पचामी कोयला परियोजना के खिलाफ राज्य सरकार व टीएमसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. 

शुभेन्दु अधिकार का बयान

बुधवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ कथित जबरन भूमि अधिग्रहण को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों का समर्थन किया है. यह प्रदर्शनकारी तीन महीने से भी अधिक समय से बीरभूम जिले में देउचा पंचमी कोयला परियोजना के लिए हो रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. 

पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी के नेतृत्व में बुधवार को भाजपा के प्रतिनिधिमंडल ने इन प्रदर्शनकारी आदिवासियों से मुलाकात की और उन्हें समर्थन दिया.

शुभेंदु अधिकारी ने मीडिया से कहा, ‘यहां 10,000 से अधिक घर हैं, जिनमें से अधिकांश निवासी आदिवासी हैं. ममता सरकार ने इन्हें बेदखली के नोटिस भेजे हैं और हम बेदखली के खिलाफ हैं.

विकास या विनाश, आप कहां खड़े हैं इससे तय होता है

राज्य में आज तृणमूल कांग्रेस की सरकार है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने ज़मीन अधिग्रहण के मुद्दे पर वामपंथी सरकार को जड़ से उखाड़ फेंका था. सत्ता में आने के 11 साल बाद ममता बनर्जी आज उद्योग और रोज़गार के नाम पर प्राइवेट सेक्टर को कोयला खदान देना चाहती है.

बीजेपी राज्य में विपक्ष में है. केन्द्र में बीजेपी की सरकार है. एक समय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार भूमि अधिग्रहण एक्ट में संशोधन करना चाहती थी. मक़सद था ज़मीन अधिग्रहण को आसान बनाया जा सके. लेकिन पश्चिम बंगाल में बीजेपी मुख्य विपक्षी दल है. पार्टी की महत्वाकांक्षा है कि वो बंगाल में सत्ता हासिल करे.

आज बीजेपी आदिवासियों के आंदोलन का समर्थन कर रही है. लेकिन उसी बीजेपी पर गुजरात में आदिवासियों को विस्थापित करने का आरोप है.

कांग्रेस पार्टी की हालत भी बेहतर नहीं है. कांग्रेस पार्टी भी आदिवासी आंदोलन का समर्थन करती है. लेकिन छत्तीसगढ़ में बिलकुल ऐसा ही आंदोलन चल रहा है. वहाँ कांग्रेस पार्टी सरकार में है.

देउचा पंचमी हरिनसिंह दीवानगंज कोयला ब्लॉक बहुत बड़ा है

केंद्र सरकार ने 2018 में पश्चिम बंगाल को भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला ब्लॉक देउचा पंचमी हरिनसिंह दीवानगंज कोयला ब्लॉक आवंटित किया था.

यह दुनिया की सबसे बड़ी खानों में से एक है, और इसमें 2,102 मिलियन टन कोयले का अनुमानित भंडार है. 12 वर्ग किलोमीटर ये ज़्यादा पर फैला यह कोयला ब्लॉक बीरभूम ज़िले में है, और इसे दिसंबर 2019 में पश्चिम बंगाल सरकार को आवंटित किया गया था.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दावा है कि इस खदान से कम-से-कम एक लाख से ज़्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा. लेकिन इलाक़े के संथाल आदिवासी और क्षेत्र के छोटे किसानों का कहना है कि इससे उनकी आजीविका पर संकट गिरेगा.

आदिवासियों की इस सोच के पीछे की वजह साफ़ है. अनुमान है कि इस परियोजना से क़रीब 70 हज़ार लोग विस्थापित होंगे. इसके अलावा लोगों को डर है कि परियजना के लागू होने से वह अपनी पारंपरिक भूमि खो देंगे.

हालांकि खदान से फ़िलहाल कोयला खनन शुरू नहीं हुआ है, लेकिन खदान के ऊपर जो पत्थर की खानें हैं, उनकी वजह से प्रदूषण का स्तर काफ़ी बढ़ गया है. इससे इलाक़े के छोटे किसानों की फ़सल को नुकसान पहुंच रहा है.

2019 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि प्रस्तावित देचा पचमी कोयला ब्लॉक पर काम तभी शुरू होगा जब वहां रह रहे 4,000 आदिवासियों का पुनर्वास हो जाएगा. हालांकि, 4000 लोग मतलब इलाक़े की सिर्फ़ 40 प्रतिशत आबादी.

इलाक़े के आदिवासी, और सामाजिक कार्यकर्ता राज्य की टीएमसी सरकार के दावा पर भी सवाल उठा रहे हैं कि अकेले देवचा-पचमी कोयला ब्लॉक में कम से कम एक लाख लोगों के लिए रोज़गार तैयार होगा.

टीएमसी ने इससे पहले भले ही भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों की लहर पर सवारी की हो, लेकिन अब यह देखना होगा कि सरकार में रहते हुए पार्टी का इन आंदोलनों के बारे में क्या रवैया रहता है.

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