HomeGround Reportमानसून देख देश का आदिवासी झूमता है, तेलंगाना का डरता क्यों है?

मानसून देख देश का आदिवासी झूमता है, तेलंगाना का डरता क्यों है?

“हरिता हरम योजना के तहत जंगल में हमारी जोती हुई ज़मीन पर सरकार पेड़ लगाना चाहती है. पेड़ लगाने का मक़सद जंगल कवर बढ़ाना बताया जा रहा है. लेकिन सरकार इस योजना के तहत आदिवासी की ज़मीन पर पहले सरकारी दावा मजबूत करना चाहती है. एक बार जब यह तय हो जाएगा कि यह ज़मीन आदिवासी की नहीं है, तो फिर इस ज़मीन को कॉरपोरेट को देना आसान हो जाएगा. तेलंगाना सरकार की यही योजना है कि आदिवासी की ज़मीन छीन के कॉरपोरेट को दे दी जाए.” तेलंगाना गिरिजन संघम के ज्वाइंट सेक्रेट्री बंडारू रवि ने MBB से बातचीत में कहा.

मानसून से पहले देश के बाकी किसानों की तरह ही आदिवासी इलाकों में भी भूमि को नई फ़सल के लिए तैयार किया जाता है. आदिवासी इलाकों में यह समय बेहद ख़ास होता है. क्योंकि ज़्यादातर आदिवासी इलाकों में खेती आज भी बारिश के भरोसे ही होती है. यह वो समय होता है जब मजदूरी की तलाश में निकले आदिवासी भी अपने घर लौट आते हैं. 

ये आदिवासी घर लौट कर अपनी ज़मीन को फ़सल के लिए तैयार करते हैं. हमने पाया है कि देश के लगभग सभी आदिवासी समुदायों में मानसून और खेतों को तैयार करने से जुड़ी विशेष पूजा होती है. खेतों को तैयार करने के बाद उसमें बीज डालने से पहले आदिवासी अपने पुरखों को याद करते हैं. 

कुदतर खूब पानी बरसाए और खेतों में फ़सल भी अच्छी हो इसके लिए पुरखों और अपने देवताओं को मुर्गे या दूसरे जानवरों की बलि चढ़ाने का भी रिवाज़ है. लेकिन तेलंगाना में यह समय आदिवासी किसानों के बीच तनाव पैदा कर देता है. वो अपने खेतों को तैयार करने के साथ साथ, पुलिस से टकराने की भी तैयारी करते हैं. 

यहां की पोडू भूमि पर आदिवासियों और सरकार के दावे की वजह से यह तनाव पैदा होता है. पोडू भूमि, यानि जंगल की वो ज़मीन जिस पर आदिवासी परंपरागत तरीके से खेती करते रहे हैं. लेकिन अब तेलंगाना सरकार हरिता हरम नाम से एक चल रही एक योजना के तहत इस भूमि पर वृक्षारोपण करना चाहती है. 

आदिवासियों का दावा और संघर्ष

“हरिता हरम योजना के तहत जंगल में हमारी जोती हुई ज़मीन पर सरकार पेड़ लगाना चाहती है. पेड़ लगाने का मक़सद जंगल कवर बढ़ाना बताया जा रहा है. लेकिन सरकार इस योजना के तहत आदिवासी की ज़मीन पर पहले सरकारी दावा मजबूत करना चाहती है. एक बार जब यह तय हो जाएगा कि यह ज़मीन आदिवासी की नहीं है, तो फिर इस ज़मीन को कॉरपोरेट को देना आसान हो जाएगा. तेलंगाना सरकार की यही योजना है कि आदिवासी की ज़मीन छीन के कॉरपोरेट को दे दी जाए,” तेलंगाना गिरिजन संघम के ज्वाइंट सेक्रेट्री बंडारू रवि ने MBB से बातचीत में कहा.

वो आगे कहते हैं, “2021 के नवंबर महीने में सरकार ने आदिवासियों से पोडू भूमि के पट्टे के लिए आवेदन मांगे थे. आठ महीने से ज़्यादा हो चुके हैं इस मसले पर कोई काम नहीं हुआ है. अब जब किसान अपने खेत बुवाई के लिए तैयार कर रहे हैं, तो पुलिस उन पर हमला कर रही है.”

मानसून से पहले वनविभाग और आदिवासी आमने सामने आ जाते हैं

बंडारू रवि कहते है कि जब भी मानसून आता है वनविभाग पुलिस ले कर किसानों के खेतों पर पहुंच जाता है. वो कहते हैं कि आदिवासी जंगल लगाए जाने के खिलाफ़ नहीं हो सकता है. इसलिए यह कहना ग़लत है कि आदिवासी हरिता हरम का विरोध कर रहा है. लेकिन अगर सरकार इस योजना के नाम पर उसकी पुश्तैनी ज़मीन पर ही पेड़ लगाना चाहती है तो यह तो ठीक नहीं है. 

आदिलाबाद में आदिवासी नेता लंका राघवेल्लू कहते हैं, “संसद से पास हुए वन अधिकार क़ानून को अभी तक यहां पर लागू नहीं किया गया है. हम लोग इस ज़मीन पर कम से कम 60-70 साल से खेती कर रहे हैं. वन अधिकार क़ानून के तहत हमने पट्टा हासिल करने के लिए दावा पत्र भी दाखिल किया है. लेकिन अभी तक किसी को पट्टा नहीं दिया गया है.”

लंका राघवेल्लू कहते हैं कि तेलंगाना के कई ज़िलों में अजीबग़रीब स्थिति बनी हुई है. एक तरफ आदिवासी और वन विभाग के दावे हैं तो दूसरी तरफ वन विभाग और रेवेन्यू विभाग के बीच भी टकराव है. 

बंडारू रवि कहते हैं कि हरिता हरम योजना के नाम पर आदिलाबाद, खम्मम, वारंगल, महबूब नगर और निज़ामाबाद एरिया में आदिवासियों को वन विभाग और पुलिस परेशान करती है. रवि कहते हैं कि पेसा कानून के तहत अनुसूचि 5 क्षेत्र में बिना ग्राम सभा की अनुमति के ज़मीन से जुड़े मसलों पर फैसला नहीं लिया जा सकता है.

लेकिन यहां पर ग्राम सभाओं के प्रस्तावों पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है. 

लंका राघवेल्लू कहते हैं कि तेलंगाना की कुल आबादी का क़रीब 10 प्रतिशत आदिवासी है. इसके अलावा यहां क़रीब 10 लाख एकड़ ज़मीन आदिवासी की है. इस ज़मीन पर आदिवासी कई पुश्तों से खेती करता आया है. वो आगे कहते हैं कि जब हम अपने खेत तैयार करते हैं तो पुलिस हमें पीटती है, हमारी औरतों को ग़िरफ़्तार कर लेती है. 

हरिता हरम योजना क्या है

असल में हरिता हरम राज्य में वृक्षों की संख्या को बढ़ाने के लिए तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू किया गया एक वृक्षारोपण कार्यक्रम है. तेलंगाना सरकार का कहना है कि फ़िलहाल राज्य का 24% हिस्सा जंगल से घिरा है. इस फोरेस्ट कवर को बढ़ा कर  33% पर लाने का लक्ष्य रखा गया है. 

इस योजना का कुल बजट 5500 करोड रुपए है.  

आदिवासी जीविका और संस्कृति

इस पूरे मसले पर आदिवासी कहते हैं कि पोडू भूमि के मालिकाना हक का मामला उनकी जीविका और संस्कृति दोनों से ही जुड़ा हुआ है. यहां के आदिवासी नेता कहते हैं कि ज़्यादातर आदिवासी परिवारों के पास जंगल में  3-4 एकड़ जमीन है. इस ज़मीन पर ये परिवार कई पीढियों से खेती कर रहे हैं.

अगर यह ज़मीन इनके हाथ से निकल जाएगी तो उनके लिए जीना मुश्किल हो जाएगा. इसके अलावा आदिवासी की पूरी संस्कृति जंगल और जमीन से ही तो जुड़ी हुई है. अगर आप उससे उसकी ज़मीन छीन लेगें तो उसके पास बचेगा ही क्या?

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