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डिलिस्टिंग: इस मुद्दे के सहारे क्या हासिल करने की कोशिश की जा रही है

गुमान सिंह डामोर दावा करते हैं, “आदिवासियों के लिए आरक्षण के प्रावधान का 90 प्रतिशत लाभ धर्मांतरण कर चुके आदिवासी लेते हैं. इससे आम आदिवासी आरक्षण के लाभ से वंचित हो जाता है. क्योंकि धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को पढ़ने लिखने का मौक़ा मिलता है. इसके अलावा वो जब धर्मांतरण कर लेते हैं तो बाहरी लोगों से उनका संपर्क बढ़ जाता है. इससे वो आरक्षण का ज़्यादा लाभ ले पाते हैं. “

पिछले सप्ताह गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल और बीजेपी के अध्यक्ष सीआर पाटिल राज्य के डांग और तापी ज़िले के आदिवासियों से मिले थे. इन दोनों बड़े नेताओं ने इन आदिवासियों को आश्वासन दिया कि जो आदिवासी ईसाई धर्म अपना चुके हैं उन्हें डिलिस्ट (delist) नहीं किया जाएगा. यानि के धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को आरक्षण या फिर सरकार की अन्य योजनाओं के लाभ से वंचित नहीं किया जाएगा. 

गुजरात के डांग ज़िले में एक हिंदूवादी संगठन ने हाल ही में आम सभा में यह कहा था कि जो आदिवासी धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, उन्हें जनजाति की सूचि से निकाल दिया जाएगा. 

इसके साथ ही मुख्यमंत्री से मुलाक़ात करने वाले ईसाई धर्म मानने वाले इन आदिवासियों ने एक ज्ञापन भी दिया है. इस ज्ञापन में कहा गया है कि कुछ धार्मिक संगठन लगातार आदिवासियों में भय फैला रहे हैं. ज्ञापन में यह दावा भी किया गया है कि आदिवासियों में धर्मांतरण को मुद्दा बना कर समाज में विभाजन पैदा किया जा रहा है.

समस्त क्रिस्टी समाज भारत नाम के संगठन के नेतृत्व में मुख्यमंत्री से मिले दल के लोगों ने कहा कि डांग में क़रीब 40 प्रतिशत आदिवासी ईसाई हैं जबकि तापी में यह तादाद क़रीब 30 प्रतिशत है.

आदिवासियों में धर्मांतरण के आधार पर डिलिस्टिंग (delisting) कितना बड़ा मुद्दा है इस घटना से अंदाज़ा लगाया जा सकता है. गुजरात में मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल और बीजेपी के अध्यक्ष सीआर पाटिल यानि सरकार और पार्टी दोनों को ही आदिवासियों को आश्वासन देना पड़ा कि उनको जनजाति की सूचि से नहीं निकाला जाएगा.

इसके साथ ही यह भी साफ़ होता है कि आदिवासी समुदाय में डिलिस्टिंग कैंपेन (Delisting Campaign ) एक भय पैदा करने में कामयाब रहा है. इस कैंपेन के हार में एक और तथ्य साफ़ हो रहा है कि इसका दायरा किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है. 

रतलाम सांसद और बीजेपी नेता गुमान सिंह डामोर

मसलन गुजरात के अलावा मध्यप्रदेश में भी यह मसला बड़ा बन रहा है. इस मामले को लगातार चर्चा में बनाए रखने वाले लोगों का दावा है कि इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ के अलावा देश के अन्य राज्यों में जनजागरण चलाया जाएगा. 

मध्य प्रदेश की रतलाम लोकसभा सीट से सांसद गुमान सिंह डामोर लगातार इस मुद्दे को उछालते रहे हैं. उन्होंने इस मुद्दे पर बड़ी जनसभाएँ भी की हैं.

MBB से बात करते हुए गुमान सिंह डामोर कहते हैं, “मध्य प्रदेश के हमारे आदिवासी इलाक़े में कुछ लोग आदिवासी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक आस्थाओं को नष्ट करने पर तुले हैं. ये लोग कहते हैं कि आदिवासियों का धर्म बेकार है और उन्हें ईसाई धर्म अपना लेना चाहिए. धर्मांतरण के ज़रिए आदिवासी जीवनशैली को नष्ट किया जा रहा है.”

गुमान सिंह डामोर दावा करते हैं, “आदिवासियों के लिए आरक्षण के प्रावधान का 90 प्रतिशत लाभ धर्मांतरण कर चुके आदिवासी लेते हैं. इससे आम आदिवासी आरक्षण के लाभ से वंचित हो जाता है. क्योंकि धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को पढ़ने लिखने का मौक़ा मिलता है. इसके अलावा वो जब धर्मांतरण कर लेते हैं तो बाहरी लोगों से उनका संपर्क बढ़ जाता है. इससे वो आरक्षण का ज़्यादा लाभ ले पाते हैं. “

अपने इस अभियान के बारे में गुमान सिंह डामोर कहते हैं कि हम इस मुद्दे पर लगातार चर्चा कर रहे हैं. हम समाज में जनजागरण अभियान चला रहे हैं. हम यह चाहते हैं कि जिन आदिवासियों ने धर्मांतरण कर लिया है उन्हें संविधान की धारा 342 के तहत तैयार अनुसूचित जनजाति की सूचि से बाहर कर दिया जाना चाहिए. 

हीरालाल अलावा, जयस नेता और विधायक

इस सिलसिले में मध्य प्रदेश के एक और बड़े आदिवासी नेता और मनावर से विधायक हीरालाल अलावा कहते हैं कि यह पूरा मुद्दा फ़र्ज़ी है. आदिवासियों के एक बड़े संगठन जयस के संस्थापक हीरालाल अलावा कहते हैं कि यह मुद्दा सिर्फ़ चुनाव के लिए उछाला जा रहा है.

वो कहते हैं, “डिलिस्टिंग के मुद्दे के ज़रिए आरएसएस आदिवासियों के आरक्षण को समाप्त करने की साज़िश कर रही है. अगर वो इस मुद्दे पर गंभीर है तो फिर उन्हें यह मुद्दा नॉर्थ ईस्ट से शुरू करना चाहिए था. वहाँ के ट्राइबल ग्रुप में 90 प्रतिशत ईसाई धर्म मानते हैं.”

MBB से बात करते हुए उन्होंने कहा, “आदिवासियों का अपना धर्म है, लेकिन बहुत सारे आदिवासी समुदाय हैं जो हिंदू रीति रिवाजों को मानने लगे हैं. क्या ऐसे आदिवासी समुदायों या परिवारों को भी आरक्षण के लाभ से वंचित किया जाएगा.”

हीरालाल अलावा कहते हैं कि क्या बीजेपी यह कल को यह भी कहेगी कि जम्मू कश्मीर में मुसलमानों को डिलिस्ट कर दो. डॉक्टर अलावा कहते हैं कि यह बीजेपी का एक राजनीतिक पैंतरा है. इस पैंतरे से वो आदिवासी मतदाताओं को बाँटना चाहती है. 

जयस नेता अलावा कहते हैं, “ भारत के संविधान में आरक्षण का आधार धर्म नहीं है. बल्कि इसका आधार भौगोलिक परिस्थितियाँ, पिछड़ापन और परिवेश है. 

डॉक्टर अलावा का कहना है कि इस मसले को गुजरात और मध्य प्रदेश के विधान सभा चुनावों की वजह से ही चर्चा में लाया गया है. अगर बीजेपी नीतिगत बदलाव चाहती है तो उसके केंद्रीय नेतृत्व को इस मुद्दे पर अपनी राय स्पष्ट करनी चाहिए. 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को इस मामले में बयान जारी करना चाहिए. वो दोनों नेता बताएँ कि वो डिलिस्टिंग के मामले पर क्या सोचते हैं. एक बार बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व यह बताए तो फिर उसे समझ में आएगा कि इस यह मुद्दा उन्हें कैसे झटका देता है.

उधर बीजेपी नेता और रतलाम के सांसद गुमान सिंह डामोर कहते हैं, “ आदिवासी अगर हिंदू या बौद्ध बन जाता है तो उसमें कोई बुराई नहीं है. क्योंकि ये धर्म भारत के ही धर्म हैं. लेकिन ईसाई और इस्लाम धर्म तो विदेश से आया हुआ धर्म है.”

रतलाम सांसद गुमान सिंह डामोर कहते हैं कि इस पूरे मसले पर बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व ने अभी कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है. क्योंकि यह राजनीतिक अभियान नहीं है. बल्कि यह तो एक सामाजिक अभियान है और इसका मक़सद आदिवासी संस्कृति को बचाना है.

हीरालाल अलावा उनकी इस बात का काउंटर पेश करते हुए कहते हैं कि जिस दिन बीजेपी डिलिस्टिंग पर बोलेगी, नॉर्थ ईस्ट से उनका सफ़ाया हो जाएगा. वो कहते हैं कि दरअसल इस मुद्दे को बार बार उठा कर आदिवासी इलाक़ों में RSS बीजेपी के लिए ग्राउंड तैयार कर रही है. 

गुजरात में इसी साल चुनाव है इसके अलावा अगले साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी चुनाव होंगे. इन राज्यों के चुनावों में आदिवासी मतदाता अहम माना जाता है. बीजेपी आदिवासी मतदाताओं पर फ़ोकस कर रही है.

बेशक गुमान सिंह डामोर कह रहे हैं कि डिलिस्टिंग मुद्दे का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन यह स्पष्ट है कि यह मुद्दा राजनीतिक है. बीजेपी इस मुद्दे के सहारे सिर्फ़ अगले विधान सभा चुनाव में आदिवासी वोट पाने की जुगत में नहीं है. बल्कि उसकी कोशिश है कि इस मुद्दे के सहारे वो आदिवासी इलाक़ों में एक टिकाऊ पहुँच बना ले. 

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