HomeInterviewपद्मश्री विद्यानंद सरेक: हिमाचल की लोक गाथाओं को सहेजने वाला नाम है

पद्मश्री विद्यानंद सरेक: हिमाचल की लोक गाथाओं को सहेजने वाला नाम है

हाटी समुदाय के बारे में बात करते हुए विद्यानंद सरेक ने कई रोचक क़िस्से और मिथक हमें बताए. मसलन उन्होंने विस्तार से यहाँ के पौराणिक क़िस्से सुनाते हुए बताया कि हाटी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई. इस सिलसिले में उन्होंने कहा कि इस इलाक़े में यह माना जाता है कि यहाँ पर महाभारत के युद्ध में शामिल पांडव और कौरवों के समर्थक आ कर बस गए थे.

हिमाचल प्रदेश के गिरीपार के इलाक़े में रहने वाले लोगों को हाटी समुदाय माना जाता है. इस समुदाय को पिछले महीने ही केंद्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का फ़ैसला किया है.

हाटी समुदाय के लोगों से मिलने हम लोग हिमाचल प्रदेश के गिरीपार के इलाक़े में पहुँचे. यहाँ के एक गाँव देवठी मजगाँव में विद्यानंद सरेक रहते हैं. उनको इसी साल 2022 में गिरीपार की लोक कथाओं और लोक साहित्य की सेवा के लिए पद्मश्री सम्मान दिया गया है.

हाटी समुदाय के बारे में बात करते हुए उन्होंने कई रोचक क़िस्से और मिथक हमें बताए. मसलन उन्होंने विस्तार से यहाँ के पौराणिक क़िस्से सुनाते हुए बताया कि हाटी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई. इस सिलसिले में उन्होंने कहा कि इस इलाक़े में यह माना जाता है कि यहाँ पर महाभारत के युद्ध में शामिल पांडव और कौरवों के समर्थक आ कर बस गए थे.

ये समर्थक सदियों तक आपस में लड़ते रहे थे. इन लड़ाईयों की लोक गाथाएँ अभी भी यहाँ पर गाई जाती हैं. लेकिन अब धीरे धीरे यहाँ भी इन लोक गाथाओं को जानने वाले लोग कम हो रहे हैं. इसलिए उन्होंने इन लोक गाथाओं को संकलित करने का फ़ैसला किया था.

इस बातचीत में वो कहते हैं कि जो लोग बाहर से आकर बसे उनसे पहले से जो लोग यहाँ रहते थे, उन्हें हाटी कहा जाता है. वो बताते हैं कि यहाँ के मूलवासी भेड़ पालक थे. उनका अपना एक पलायन चक्र था.

ये मूल निवासी अपनी भेड़ों को लेकर सर्दियों में नीचे के इलाक़ों में उतर आते थे और गर्मियों में उपर के इलाक़ों में चले जाते थे. ये मूल वासी अपनी छोटी मोटी ज़रूरत के लिए हाट में जाते थे. वहाँ वो अपने साथ कुछ चीजें बेचने ले जाते थे. बस वहीं से कभी इन लोगों को हाटी नाम दे दिया गया.

विद्यानंद सरेक कहते हैं कि किसी भी जनजाति समाज कि तरह यहाँ भी इतिहास मिथक और लोक कथाओं में श्रुति और स्मृति के अनुसार ही मिलता है. इसी तरह से वो सिरमौरी भाषा के बारे में कहते हैं कि हाटी समुदाय के पास कोई लिखित दस्तावेज़ नई पीढ़ी को देने के लिए नहीं है.

क्योंकि इस भाषा की कोई निश्चित लिपी इस्तेमाल नहीं हो रही है इसलिए इसमें कई तरह की विकृति आ गई हैं.

विद्यानंद सरेक बताते हैं कि यहाँ की लोक कला और लोक कथाएँ मंदिरों के सहारे बची रही हैं. यहाँ के मंदिरों में यहाँ की लोक कथाओं को गाने का रिवाज रहा है.

आप यह पूरी बातचीत उपर लगे वीडियो लिंक में सुन और देख सकते हैं.

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