HomeIdentity & Lifeपोक्सो (POCSO) से अनजान आदिवासी जेल काटते हैं

पोक्सो (POCSO) से अनजान आदिवासी जेल काटते हैं

आदिवासी इलाक़ों में परंपरागत नियम चलते हैं. पोक्सो (Pocso) जैसे क़ानूनों के बारे में यहाँ पर जानकारी कम मिलती है. इसलिए कई बार जवान लड़के लड़कियाँ जो प्रेम में होते हैं और सहमति से सेक्स करते हैं, उनमें से लड़के जेल में लंबी सज़ा काटते हैं.

22 दिसंबर 2022 यानि गुरूवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने पोक्सो (POCSO) की धाराओं में जेल में बंद 20 साल के बिजेन्द्र महतो को ज़मानत दे दी. बिजेन्द्र महतो के वकील ने अदालत में दलील देते हुए कहा कि यह ‘किशोरावस्था प्रेम’ (Juvenile Romance) का मामला है. 

बिजेन्द्र ने अपनी प्रेमिका के साथ संभोग (Sex) किया था जब उसकी उम्र 17 साल और 8 महीने थी. इस वजह से बिजेन्द्र महतो को बच्चों को लैंगिक अपराध से बचाने के लिए बनाए गए क़ानून पोक्सो एक्ट के तहत पिछले साल मार्च महीने में गिरफ्तार कर लिया गया था. 

इस मामले में बिजेन्द्र महतो की प्रेमिका गर्भवती हो गई थी. बिजेन्द्र महतो जब जेल में था उसी दौरान उनकी प्रेमिका ने बच्चे को जन्म भी दिया. फ़िलहाल उनकी प्रेमिका अपने बच्चे को लेकर बिजेन्द्र महतो के परिवार के साथ ही रहती है.

वह अदालत को भी बता चुकी है कि उनके लिए बिजेन्द्र का परिवार उनकी ससुराल है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी साल अक्टूबर महीने में भी कहा था कि पोक्सो अधिनियम बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया था न कि सहमति से बनाए गए रोमांटिक संबंधों को दंडित करने के लिए. 

इस बात की भी चिंता है कि विवाह के लिए महिलाओं की कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने से और लोग कानून के साथ संघर्ष में आएंगे.

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने संसद से POCSO अधिनियम के तहत रोमांटिक संबंधों के लिए किशोरों को दंडित करने के बारे में बढ़ती चिंता को दूर करने का आग्रह किया.

CJI ने कहा, “POCSO अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए सभी यौन गतिविधियों को आपराधिक बनाता है, भले ही किसी विशेष मामले में दो नाबालिगों के बीच सहमति मौजूद हो या नहीं.

मुख्य न्यायधीश की टिप्पणी और दिल्ली हाईकोर्ट का फ़ैसला शहरी मामलों के संदर्भ में है. लेकिन Pocso के मामलों में गिरफ़्तारी आदिवासी इलाक़ों में एक बड़ा मसला है. 

दिसंबर 2022 के पहले सप्ताह में तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक सी सिलेंद्र बाबू ने एक सर्कुलर जारी कर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के जांच अधिकारियों (IO) को सलाह दी कि अगर रोमांटिक संबंधों की शिकायतें आती हैं तो जल्दबाजी में गिरफ्तारी न करें.

सर्कुलर आदिवासी समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों को ध्यान में रखते हुए जारी किया गया था. जो अपने समाज के परंपरागत नियमों का पालन करते हैं. आदिवासी समुदायों में अक्सर कम उम्र में शादी हो जाती है. दूर दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले आदिवासी अक्सर क़ानूनों और क़ानूनों में हुए बदलावों से अनभिज्ञ रहते हैं. 

केरल के आदिवासी इलाक़ों में भी यह देखने को मिलता है कि किशोर अवस्था के प्रेम संबंधों में संभोग की वजह से आदिवासी लड़के जेल पहुँच जाते हैं. उन पर बलात्कार का आरोप लगने के बाद मुकदमा चलाया जाता है और उन्हें लंबी सजा का सामना करना पड़ता है.

वायनाड में जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ काम करने वाले एक अधिकारी के अनुसार समुदाय के वयस्क सदस्यों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के मामले कम हैं. ज़्यादातर मामलों में किशोरों के बीच प्रेम संबंध होते हैं. 

केरल के मामले चौंकाने वाले हैं

केरल देश का सबसे पहला पूर्ण साक्षर राज्य माना जाता है. इसके अलावा आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा, स्वास्थ्य और जीविका की योजनाओं के मामले में भी केरल को अग्रणी राज्यों में गिना जाता है. लेकिन यहाँ के आदिवासी इलाक़ों में भी यह पता चलता है कि आदिवासियों को पोक्सो क़ानून की जानकारी नहीं है.

नीलांबुर और वायनाड में आदिवासी कार्यकर्ताओं के अनुसार केरल में आदिवासी इस क़ानून के तहत लंबी सज़ा जेल में काटते हैं. कार्यकर्ताओं के अनुसार एक प्रमुख कारण कानून के बारे में जागरूकता की कमी, शैक्षिक पिछड़ापन और कम उम्र में विवाह के परिणामों के बारे में समुदायों को संवेदनशील बनाने में अधिकारियों की विफलता है. 

विवाह के समय पुरुषों की औसत आयु 20 वर्ष होती है जबकि लड़कियों की उम्र 16 वर्ष होती है. दोषी ठहराए गए पुरुषों को अदालत द्वारा दी गई सजा लगभग 10 वर्ष है. यहाँ के कार्यकर्ता अक्सर बाबू और शिवदासन की चर्चित कहानियों का हवाला देते हैं जो अधिनियम से अनजान थे और उन्हें अपने समुदाय की कम उम्र की महिलाओं से शादी करने के बाद कई साल जेल में बिताने पड़े थे.

दरअसल, पनिया समुदाय का एक आदिवासी युवक बाबू 21 साल का था, जब उसने 2015 में उसी जनजाति की 16 साल की लड़की से शादी की. शादी के बाद वे साथ रहने लगे. शादी के बाद लड़की के गर्भवती होने के बाद जिस स्कूल में वो छात्रा थी, वहां के शिक्षकों को शादी के बारे में पता चला और उन्होंने पुलिस को सूचित किया जिन्होंने बाबू को गिरफ्तार कर लिया.

बाबू ने कहा था, “मुझे नहीं पता था कि यह कानून मौजूद है. हमारा एकमात्र इरादा साथ रहना था और मैं कभी भी उसका यौन शोषण नहीं करना चाहता था”. वायनाड के मुथंगा के 19 वर्षीय शिवदासन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

अगस्त 2012 में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम लागू होने के बमुश्किल दो महीने बाद कट्टुनायका समुदाय के एक आदिवासी युवक सुभाष (बदला हुआ नाम) को गिरफ्तार कर लिया गया, जो 16 साल की अपनी प्रेमिका के साथ भाग गया था.

सुभाष ने कहा, “जब पुलिस मुझे लेने आई तो मैं काम से बाहर था. उसके पिता ने पुलिस में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी. “सुभाष को इस बात का अंदाजा नहीं था कि ऐसा कोई अधिनियम मौजूद है. 

गिरफ्तारी के बाद उन्होंने करीब पांच साल जेल में बिताए. जबकि कम उम्र की लड़कियों से जुड़े विवाह समुदाय के बाहर जल्दी नहीं जाते हैं. जब लड़कियां गर्भवती हो जाती हैं या वे गर्भावस्था से संबंधित चिकित्सा देखभाल या प्रसव के लिए अस्पतालों में जाती हैं तो पुरुषों पर POCSO अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाता है.

अमृता सिसना, जिन्होंने जनजातीय समुदायों पर POCSO मामलों के प्रभाव पर शोध किया है उनका कहना है, “आदिवासी झूठ बोलना नहीं जानते हैं इसलिए जब उन्होंने अपनी उम्र बताने के लिए कहा तो वे इसके बारे में खुलकर बात करते हैं, जिसके कारण अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए गए.”

अधिनियम के बाद से जुलाई 2021 तक राज्य में कुल 422 आदिवासी पुरुषों पर POCSO अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं. अकेले वायनाड में 202 पुरुषों पर अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए थे. उनमें से 121 मामलों की सुनवाई 2013 से 2020 की अवधि के दौरान कलपेट्टा की एक विशेष अदालत में हुई.

कलपेट्टा अदालत ने 63 लोगों को बरी कर दिया जबकि 22 को दोषी पाया गया. कालपेट्टा में एक फास्ट ट्रैक अदालत में कुल 48 मामलों की सुनवाई हुई और इस अवधि के दौरान चार बरी हुए. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड, मंतवाडी ने इसी अवधि में 33 मामले दर्ज किए, जिनमें से तीन को दोषी पाया गया और पांच को बरी कर दिया गया.

वायनाड के बाद पलक्कड़ जिला 81 मामलों के साथ सूची में दूसरे स्थान पर रहा. यहां आदिवासी समुदायों के दो पुरुषों को दोषी पाया गया था, इस अवधि के दौरान पलक्कड़ में अदालतों ने आठ लोगों को बरी कर दिया था.

मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान में भी बड़ी समस्या

मध्य प्रदेश के झाबुआ ज़िले में कमल खराड़ी के परिवार के साथ बातचीत में भील आदिवासियों में लड़कों की शादी जल्दी करने की एक बड़ी वजह हमें समझ में आई थी.

उन्होंने हमें बताया कि अक्सर उनके समुदाय के लड़के लड़कियाँ मेले या शादी ब्याह में मिलते-जुलते हैं तो उनमें प्रेम हो जात है. कई बार उनके लड़के लड़कियाँ भाग जाते हैं.

भील समुदाय में भाग कर शादी करना एक स्वीकार्य और लोकप्रिय शादी करने का तरीक़ा है. लेकिन आजकल कई बार लड़की के माँ बाप पोक्सो एक्ट के तहत मुक़दमा दर्ज करा देते हैं.

इस सूरत में पुलिस और पंचायत मिल कर लड़के के परिवार से भारी पैसा ऐंठते हैं. झाबुआ में जब यह बातचीत हुई तो उसके बाद हमने इस सिलसिले में महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में भील आदिवासियों से इस सिलसिले में बातचीत शुरू की थी.

MBB टीम ने यह पाया कि इन सभी राज्यों में आदिवासी समुदाय के सामने यह मसला आया है.

यानि भारत के दक्षिण राज्यों से लेकर मध्य और पश्चिम भारत के राज्यों में इस क़ानून के बारे में जानकारी के अभाव और परंपरागत नियमों की वजह से आदिवासी युवक कई बार जेल में पहुँच जाते हैं.

जबकि उनका इरादा लड़की का शोषण तो बिलकुल नहीं होता है. इस सिलसिले में केरल और तमिलनाडु में कुछ शोध किये गये हैं. लेकिन ज़रूरत इस बात की है कि आदिवासी भारत में एक व्यापक शोध इस विषय पर किया जाए.

ताकि चीफ़ जस्टिस ने जो मामला उठाया है, आदिवासी भारत के संदर्भ में उसे संवेदनशील तरीक़े से समझा जा सके और कोई निदान ढूँढा जा सके.

(इस रिपोर्ट में तस्वीर सिर्फ़ प्रतीक के तौर पर लगाई गई है. इस कहानी से फ़ोटो का कोई लेना देना नहीं है.

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