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फ़र्ज़ी आदिवासी सर्टिफिकेट पर चुनाव लड़ने वाली विधायक बर्खास्त क्यों नहीं हुईं ?

एक विधायक जिनका अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र अदालत से फ़र्ज़ी बताया जा चुका है, बर्खास्त नहीं की जाती हैं. अन्य मामलों में काफ़ी सक्रिय नज़र आने वाले राज्यपाल इस मामले में चुनाव आयोग की सलाह का इंतज़ार करते हैं. यह सत्ता का दुरूपयोग नहीं है तो क्या है?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट शिवसेना (Eknath Shinde Faction) की विधानसभा में गिनती में कमी आ सकती है. उनकी विधायक लताबाई सोनवणे ( MLA Latabai Sonawane) पर आरोप था कि उन्होंने फ़र्जी अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र (Fake Cast Certificate) के आधार पर आदिवासियों के लिए आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ा था. 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाती आयोग(National Commission for Scheduled Tribes) ने शिवसेना (शिंदे गुट) की इस एमएलए के जाति प्रमाण पत्र को लेकर जांच शुरू की है. 

विधायक लताबाई सोनवणे ( MLA Latabai Sonawane) के जाति प्रमाणपत्र को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहले ही फर्जी बता चुका है. यह माना जा रहा है कि अनुसूचित जनजाति आयोग की जांच शुरू होने कि वजह से अब प्रशासन जल्दी ही इस विधायक की सदस्यता ख़त्म करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है.  

लताबाई सोनावणे महाराष्ट्र (Maharashtra) के जलगांव जिले के चोपडा चुनाव क्षेत्र से जीती थीं. इस मासले में महाराष्ट्र के राज्यपाल ने चुनाव आयोग से यह पूछा है कि क्या फ़र्जी प्रमाणपत्र पर चुनाव लड़ने वाली विधायक की सदस्यता रद्द की जा सकती है.  

इस मामले में एनसीएसटी (NCST) ने चुनाव आयोग को बताया कि उन्होंने संबंधित मामले की जांच शुरू की है. जब किसी राज्य के राज्यपाल के सामने इस तरह का मामला आता है तो चुनाव आयोग (Election Commission) गवर्नर को संविधान के अनुच्छेद 192(2) के तहत अपनी राय दे सकता है.

इस मामले की छानबीन तब शुरू हुई जब चंद्रकांत बारेला की तरफ से अनुसूचित जनजाति आयोग में एक याचिका दायर की गई.  इस चुनाव में लताबाई सोनावणे ने चंद्रकांत बारेला को हरा दिया था. 

इसी साल नवंबर के महीने में बरेला ने यह शिकायत की थी कि कोर्ट द्वारा सोनावणे के कास्ट सर्टिफिकेट को फर्जी ठहराए जाने के बावजूद मौजूदा विधायक को सदन से डिसक्वालीफाई नहीं किया गया है. उन्होंने एनसीएसटी को यह भी बताया कि सत्ताधारी दल की महिला विधायक लताबाई सोनावणे काफी प्रभावशाली हैं.

फर्जी जाति प्रमाणपत्र ने बढ़ाई महिला विधायक की मुश्किलें

अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट पर फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए है चुनाव लड़ने और जीतने वाली लताबाई सोनवणे की सदस्यता पहले दिन से ही विवादों में आ गई थी. 

उन्होंने यह चुनाव तो शिवसेना के टिकट पर जीता था, लेकिन बगावत के बाद वह एकनाथ शिंदे गुट के साथ शामिल हो गईं थी. 9 फरवरी 2022 को सोनावणे द्वारा पेश किया गया अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र को एसटी सर्टिफिकेट स्क्रूटनी कमेटी द्वारा अमान्य ठहराया गया था. 

इसके बाद सोनावणे ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ लगाई थी लेकिन वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी और अदालत ने उनके जाति प्रमाण पत्र को जून और सितंबर महीने में फर्जी करार दिया था.

अदालत के फ़ैसले के बावजूद विधायक नहीं हुई बर्खास्त

जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए जाने के बावजूद लताबाई सोनवणे पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और उन्हें सदन से डिसक्वालीफाई नहीं किया गया. इस बात से परेशान चंद्रकांत बारेला ने अनुसूचित जनजाति आयोग के पास नवंबर के महीने में एक याचिका दायर की थी. 

इस याचिका में यह मांग की गई है कि इस मामले तत्काल संज्ञान में लिया जाए और कोर्ट के आदेश को लागू कराया जाए. इस मामले में दायर याचिका में चंद्रकांत बारेला ने लताबाई को सदन से बर्खास्त करने की माँग करते हुए कहा है कि चुनाव आयोग को अदालत के फ़ैसले का सज्ञान लेते हुए अब तक यह काम कर देना चाहिए था. 

उन्होंने दावा किया है कि महाराष्ट्र के जलगाँव में जाली आदिवासी प्रमाणपत्र का एक पूरा रैकेट काम करता है. इस रैकेट में बड़ी संख्या में राजस्व विभाग के लोग शामिल हैं.

जलगाँव के राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से अपात्र लोग आदिवासी होने का प्रमाणपत्र हासिल कर लेते हैं. जिसकी वजह से असली आदिवासियों को भारी नुक़सान होता है.

आदिवासियों का फ़र्ज़ी प्रमाणपत्र एक बड़ा मसला

महाराष्ट्र में आदिवासी होने के फ़र्ज़ी प्रमाणपत्र के आधार पर विधायक बनी लताबाई सोनवाणे का मामला बेशक सत्ता और पैसे का दुरूपयोग है.

लेकिन यह मामला विधायिका में आदिवासी प्रतिनिधित्व के हक़ मारने का भी है. लेकिन जाली अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र का मामला बेहद गंभीर और व्यापक है.

ये मामले किसी एक राज्य तक भी सीमित नहीं हैं.

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