HomeIdentity & Lifeबाबा गोरिया उत्सव : जमातिया जनजाति की संस्कृति के संरक्षण का आयोजन

बाबा गोरिया उत्सव : जमातिया जनजाति की संस्कृति के संरक्षण का आयोजन

एक समय में जमातिया समुदाय के लोग त्रिपुरा के राजा की सेना की ताकत थे. इसलिए इस समुदाय को उस समय हाउस टैक्स से छूट दी गई थी. यह समुदाय अपने परंपरागत कानूनों और संस्कृति के संरक्षण के प्रति काफी जागरूक है.

त्रिपुरा के गोमती ज़िले में किला R D Block के  कामी कवताल इलाके में गोरिया बाबा की सालाना पूजा उत्सव हर साल की तरह इस साल भी उत्साह के साथ मनाया गया.

त्रिपुरा की 20 जनजातीयों में से एक जमातिया समुदाय के लिए यह एक बड़ा धार्मिक उत्सव होता है. इस समु  दाय का जनजातीय संगठन ‘होदा’ केंद्रीय स्तर पर इस उत्सव को मनाने की ज़िम्मेदारी लेता है.

लेकिन इस पूजा में पूरे समुदाय की भागीदारी रहती है. बाबा गोरिया की पूजा का उत्सव सात दिन चलता है और आठवें दिन बाबा गोरिया का विदाई होती है. सात दिन के इस उत्सव की शुरूआत समुदाय के सभी घरों से चावल जमा करने से होती है.

इस चावल से पूजा में देवता को चढ़ाने और सभी परिवारों में बांटने के लिए राइस बीयर बनाई जाती है. जिसे कई राज्यों में हड़िया के नाम से भी जाना जाता है. 

इस बारे में जमातिया होदा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी विप्र कुमार जमातिया बताते हैं, “आज के दिन सभी लोग मिल कर गोरिया बाबा को सूर्य उदय से पहले नदी में नहलाया जाता है और फिर उन्हें पूजा स्थल पर ले जाया जाता है. उसके बाद पूजा शुरू होता है. इस पूजा में सिर्फ जमातिया समुदाय ही नहीं बल्कि अन्य समुदाय के लोग भी अपनी मनोकामना ले कर यहां पर पहुंचते हैं. बाबा गोरिया की पूजा में यह विनती की जाती है कि सभी परिवारों खुशहाल और संपन्नत हों. इसके अलावा उनके खेत में फसल भी अच्छी हो.”

इस पूजा के लिए गोरिया बाबा की एक ख़ास मूर्ती तैयार की जाती है. इस मूर्ति का चेहरा सोने का बनाया जाता है और शरीर बांस से तैयार किया जाता है.

इस मूर्ति का चेहरा एक तरफ से पुरूष यानि गोरिया बाबा का होता है और दूसरी तरफ से स्त्री का चेहरा होता है. यह स्त्री देवी हाकचार मां का होता है.

गोरिया बाबा के चेहरे पर मूंछे होते हैं जबकि मां हाकचार का जूड़ा बनाया जाता है. इस सोने से बनी इस मूर्ति के चेहरे की आकृति को संरक्षित किया जाता है जो हर साल उतस्व में इस्तेमाल होती है. जबकि बांस से बने शरीर को विसर्जित कर दिया जाता है. 

गोरिया बाबा की पूजा उत्स्व में पहुंची एक महिला भक्त का कहना था, “यहां साल में एक बार जमातिया होदा बाबा गोरिया उत्सव बड़े धूम-धाम से मनाता है. इस पूजा से पहले माता गौरी यानि त्रिपुरेश्वरी देवी की पूजा की जाती है. इसके बाद नदी पर भैंसे की बलि चढ़ाई जाती है. उसके बाद यह उत्सव शुरू होता है.”

गोरिया पूजा को संपन्न कराने के लिए पुजारियों की एक पूरी टीम होती है. इस टीम का नेतृत्व मुख्य पुजारी करते हैं. जमातिया समुदाय के मुख्य पुजारी को खेरफंग पुकारा जाता है.

पुजारी सातों दिन पूजा और अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, लेकिन पूजा के सातवें दिन जब मेला लगता है तो उनका काम बहुत बढ़ जाता है.

सातवें दिन जमातिया समुदाय के लगभग हर परिवार से ही कोई ना कोई सदस्य इस पूजा में शामिल होने पहुंचने की कोशिश ज़रूर करता है.

इस पूजा में परिवार की महिलाएं फल-फूल और धूप से बाबा गोरिया की पूजा करती है. इस पूजा के लिये महिलाएं अनिवार्य तौर पर नए वस्त्र पहनती हैं.

गोरिया बाबा की पूजा के लिए जो प्रसाद बनता है उसमें स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता है. यह प्रसाद नए चूल्हे और नए बर्तन में ही बनता है. 

विप्र कुमार जमातिया बताते हैं, “गोरिया पूजा में कम से कम 12 पुजारी की ज़रूरत पड़ती है. इन पुजारियों में से एक को खैरफंग चुना जाता है. इसके अलावा जो लोग बलि चढ़ाते हैं उनकी अलग से नियुक्ति होती है. कुल मिला कर यह एक बड़ा आयोजन होता है जिसमें प्रबंधन की ज़रूरत पड़ती है. हर छह साल में पुजारियों की टीम को बदल दिया जाता है “

जमातिया समुदाय की गोरिया पूजा में भी देश के अन्य आदिवासी-जनजातीय समुदायों की तरह ही बलि एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यहां पर जमातिया समुदाय के लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर या फिर मनोकामना पूरी होने की आस में बलि चढ़ाते हैं.

यहां पर ज़्यादातर परिवार बकरे की बलि चढ़ाते हैं…लेकिन भैंसे की बलि चढ़ाने वाले परिवारों की संख्या भी काफी रहती है. इस पूजा में बलि के लिए अलग से लोग नियुक्त किये जाते हैं.

बलि के बाद बकरे या भैंसे का सिर देवताओं को चढ़ा दिया जाता है. जबकि बाकी मांस प्रसाद के तौर पर बनाया जाता है और उसे पूजा स्थल पर ही वितिरित भी किया जाता है. 

जमातिया होदा के एक और पदाधिकारी ने MBB से बातचीत में कहा, “गोरिया देव उत्सव की शुरूआत से एक दिन पहले हर गांव से लोग जमा होते हैं और बाबा गोरिया देव को बनाना शुरू करते हैं. उसके बाद बैशाख में एक निश्चित तारीख को पूजा शुरू की जाती है. इस पूजा में जमातिया के साथ साथ कई और समुदायों के लोग भी इसमें शामिल होते हैं. इस पूजा में देश, राज्य और लोगों की भलाई के लिए दुआ की जाती है. यहां इस पूजा में एक समुदाय दूसरे समुदाय के प्रति प्रेम भी बढ़ाता है.”

गोरिया पूजा बंगाली कैलेंडर के हिसाब से की जाती है….अक्सर यह पूजा अप्रैल महीने में उसी समय आयोजित होती है जब कहीं बैशाखी, कहीं बिहू तो कहीं विशु मनाया जा रहा होता है.

ऐसा माना जाता है कि जमातिया समुदाय के अराध्य देव गोरिया बाबा और देवी हाकचार  की मूर्ति का सोने से बना सिर इस समुदाय को राजपरिवार की तरफ से दिया गया था.

लेकिन बीच में यह सिर कहीं गायब हो गया था. फिर कुछ साल पहले राज्य सरकार ने सोने से बना एक और सिर समुदाय को भेंट किया था. 

इस परंपरा के बारे में विप्र कुमार जमातिया बाते हैं, “बाबा गोरिया का शीश कहीं खो गया था, लेकिन कुछ साल पहले जब राज्य में वामपंथी सरकार थी तो उसने गोरिया बाबा का सोने से बना नया शीश जमातिया समुदाय को भेंट किया था.”

जमातिया समुदाय त्रिपुरा में राजनीतिक और सामाजिक तौर पर काफी प्रभावशाली समूह है. इस समुदाय की कुल जनसंख्या करीब एक लाख बताई जाती है.

एक समय में इस समुदाय के लोग त्रिपुरा के राजा की सेना की ताकत थे. इसलिए इस समुदाय को उस समय हाउस टैक्स से छूट दी गई थी. यह समुदाय अपने परंपरागत कानूनों और संस्कृति के संरक्षण के प्रति काफी जागरूक है.

मसलन इस समुदाय के कस्टमरी लॉ का बाकायदा दस्तावेज़ीकरण किया जा चुका है. यह समुदाय अपने भीतर के मसलों को इन्ही कानूनों के अनुसार निपटाता है. गोरिया पूजा में इस समुदाय के संगठित होने का प्रमाण दिखाई देता है.

यहां पर आए एक और श्रद्धालु ने बताया, ” जमातिया समुदाय के लोग हर साल बैशाख में बाबा गोरिया पूजा का आयोजन किया जाता है. जमातीया होदा ऐसी दो पूजाओें का आयोजन करता है उसमें से एक यह किला R D block की पूजा है. इसके अलावा जमातीया समुदाय के संगठन की तरफ से सिर्फ पूजा का आयोजन नहीं होता है. बल्कि हमारा संगठन 14 स्कूल भी चलाता है. पूजा के दिन सभी संप्रदाय के लोग यहां आ कर बलि चढ़ाते हैं और अपने अच्छे भविष्य के लिए दुआ मांगते हैं.”

गोरिया पूजा औपचारिक तौर पर सात दिन का आयोजन है…और सातवें दिन का आयोजन सबसे बड़ा होता है. लेकिन परंपरा के अनुसार इस पूजा की तैयारी एक महीने पहले ही शुरू हो जाती है.

इस परंपरा के अनुसार गोरिया बाबा की मूर्ति तो तैयार करने के बाद एक महीने जमातिया समुदाय के अलग अलग गांवों में ले जाया जाता है.

इस मूर्ति के साथ-साथ बाबा गोरिया के सिपाही चलते हैं. इनके हाथों में हथियार रहते हैं. इन्हें स्थानीय भाषा में बोगला कहा जाता है. बोगलाओं की ख़ासियत यह होती है कि उनमें से कुछ पुरूष के कपड़े पहनते हैं तो कुछ महिलाओं की वेशभूषा में रहते हैं. 

एक बोगला ने MBB से बीतचीत में कहा, “यहां अगर मेले में कोई बिमार हो जाए, बेहोश हो जाए…तो बाबा गोरिया का पानी उस बिमार को पिलाना और उनका ध्यान रखना बोगला का काम होता है. इसके अलावा जब बाबा गोरिया की मूर्ति स्थापित हो जाती है और पूजा शुरू हो जाती है तो हम लोग पूजा में नाचते हैं.”

जमातिया समुदाय की गोरिया पूजा अब एक वार्षिक धार्मिक उत्सव बन चुका है. इस उत्सव को जमातिया ट्राइब का सबसे बड़ा संगठन जिसे होदा कहते हैं, सक्षमता से आयोजित करता है.

इस उत्सव में जमातिया समुदाय के सभी लोग उत्साह के साथ शामिल होते हैं. लेकिन इस आयोजन को सिर्फ जमातिया समुदाय की धार्मिक आस्थाओं से जुड़े आयोजन की तरह से ही नहीं देखा जा सकता है.

इस आयोजन में जमातिया समुदाय के सामाजिक संगठन और बनावट को भी महसूस किया जा सकता है. यह आयोजन इस समुदाय की संस्कृति का भी प्रदर्शन करता है…मसलन जिस तरह की बांस की कलाकृति यहां पर देखी जाती है…वे कमाल की होती हैं.

इसके अलावा जब देश के कई आदिवासी संस्कृति, त्योहार…खाने लुप्त होने के करीब हैं….बल्कि की समुदायों पर ही लुप्त हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा है…उत्तर-पूर्व के राज्य त्रिपुरा में जमातिया समुदाय का यह आयोजन अपनी संस्कृति पर गर्व करने का कारण भी देता है और उसे संरक्षित रखने और आगे बढ़ाने में मदद भी करता है. 

इस तरह के उत्सव समुदाय को संगठित होने का मौका भी देते हैं.

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