राज्यसभा ने मंगलवार को ओडिशा और आंध्र प्रदेश के आदिवासी समुदायों से संबंधित संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 2024 और संविधान (अनुसूचित जाति-जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 2024 को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया.
जनजातीय मामलों के मंत्री का दावा है कि 75 पीवीटीजी में से 9 को कभी भी अनुसूचित जनजाति सूची में स्पष्ट रूप से नहीं जोड़ा गया था और यह काम अब किया जा रहा है.
पिछली गैर-एनडीए सरकारों पर कटाक्ष करते हुए राज्यसभा ने मंगलवार को ओडिशा और आंध्र प्रदेश दोनों की अनुसूचित जनजातियों की सूची में कई नए समुदायों को जोड़ने का रास्ता साफ किया.
दोनों विधेयकों को सभी दलों के सांसदों से समर्थन प्राप्त हुआ. इसमें विशेष रूप से सात विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) शामिल थे. इनमें ओडिशा की चार और आंध्र प्रदेश के तीन पीवीटीजी शामिल थे. जिनके स्वतंत्र नाम विशेष रूप से इन राज्यों की एसटी सूची में पहले से ही समुदायों के पर्यायवाची या उप-जनजातियों के रूप में जोड़े गए थे.
वहीं सदन में दोनों विधेयकों पर एक साथ लगभग दो घंटे तक चली चर्चा का उत्तर देते हुए जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सरकार ने दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले उपेक्षित समुदायों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
पीएम जनमन योजना का उद्देश्य यही है और सरकार इसी मंतव्य के साथ आगे बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि इन विधेयकों के माध्यम से सरकार ने उन समुदायों का उनके अधिकार देने का प्रयास किया गया है जिन्हें आजादी के बाद अभी तक कोई सुविधायें नहीं दी गई है.
उन्होंने कहा कि ये समुदाय दूर दराज के आदिवासी क्षेत्रों में रहते हैं और इन्हें आदिवासी कहा भी जाता है, लेकिन इनका नाम जनजाति सूची में नहीं है. सरकार विधेयकों के माध्यम से इस विडंबना को दूर कर रही है.
उन्होंने कहा कि इन विधेयकों से कुछ समुदायों को जनजाति सूची में शामिल जा रहा है जबकि कुछ अनुसूचित जनजातियों को जनजाति सूची में डाला जा रहा है. कुछ जनजातियों की उप जातियों या उनके नाम में विभिन्नता को दूर किया जा रहा है और जनजाति सूची में रखा जा रहा है.
मुंडा ने दावा किया कि 75 नामित पीवीटीजी में से कम से कम नौ को उनके संबंधित राज्यों की एसटी सूची में कभी भी स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया था.
उन्होंने कहा, “लेकिन यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार है जो इस तरह का कानून ला रही है और समाज में सबसे पिछड़े समुदायों और लोगों को प्राथमिकता देकर वास्तविक समावेशन के लिए आधार तैयार कर रही है.”
संविधान (अनुसूचित जनजाति – जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 2024 ओडिशा से संबंधित है इसमें 60 से अधिक जनजाति समुदायों को जनजाति सूची में शामिल किया गया है. इनमें भूईया, भूयान, पौरी भूयान, पौडी भूयान,तमोरिया भूमिज, तमोडिया भूमिज, तमुडिया भूमिज, तमुंडिया भूमिज, तमुलिया भूमिज, तमाडिया भूमिज, तमाडिया, तमारिया और तमुडिया और भूंजिया और चुकतिया भूंजिया, बांडा प्रजा, बोंडा प्रजा, बोंडो, बोंडा और बांडा, मैनकिडी, मैनकिडिया आदि शामिल हैं.
ये आदिवासी समुदाय अविभाजित कोरापुट जिले के है जिसमें कोरापुट, नौरंगपुर, रायगडा और मल्कानगिरि जिले शामिल हैं.
संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 2024 आंध्र प्रदेश से संबंधित है और इसमें पोरजा, बोंडो पोरजा, खोंड पोरजा और पारांगजीपरेजा, सावारास, कापू सावारास, मानिया सावारास, कोंडा सावारास और खुट्टो सावर को जनजाति सूची शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है.
अर्जुन मुंडा ने कहा कि हमें एहसास हुआ कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश में अन्य सात समुदायों को लाभ पहुंचाने के लिए एसटी सूची में शामिल करना जरूरी था.
जबकि इन सात समुदायों को पहले से ही देश के 75 पीवीटीजी में गिना जाता था जब पदनाम बनाया गया था, उनके व्यक्तिगत समुदाय के नाम (जो मौजूदा जनजातियों के पर्यायवाची, उप-जनजातियों या ध्वन्यात्मक विविधताओं के रूप में योग्य हैं) का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया था.
अब इन व्यक्तिगत समुदाय के नामों को मौजूदा जनजातियों के पर्यायवाची, उप-जनजातियों और ध्वन्यात्मक विविधताओं के रूप में जोड़ा गया है. जिससे उन्हें अपने विशिष्ट जनजाति नामों के तहत एसटी स्थिति तक पहुंच मिल गई है.
मुंडा ने कहा, “75 पीवीटीजी हैं जो अंडमान द्वीप से मुख्य भूमि तक फैले हुए हैं. सरकार ने एक योजना शुरू की है और जिस दूर-दराज के इलाके में वे रहते हैं, उन तक पहुंचने के लक्ष्य के साथ मिशन मोड में काम किया है.”
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार देश भर में कई पीवीटीजी समुदायों की घटती आबादी पर संबंधित राज्य सरकारों के साथ लगातार संपर्क कर रही है.
इसके अलावा नई प्रविष्टियों के रूप में दो समुदायों को जोड़कर ओडिशा की एसटी सूची का विस्तार किया गया.
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सदन में लंबी चली चर्चा
अनुसूचित जनजाति की सूचि में कुछ अन्य जनजातियों को शामिल करने से जुड़े विधेयक पर लंबी बहस हुई. इस बहस में शामिल सांसदों ने अपनी अपनी पार्टी का पक्ष रखते हुए अपनी पार्टी के काम और अन्य पार्टी की सरकारों के काम की आलोचना की.
देश में लोकसभा के साथ साथ कई ऐसे राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं जहां पर विधान सभा के चुनाव होंगे और वहां पर आदिवासी जनसंख्या काफी है.
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मसलन केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य धर्मेंद्र प्रधान ने भी इस बहस में हिस्सा लिया. वे ओडिशा से हैं और वहां पर विधान सभा चुनाव की तैयारी चल रही है.
प्रधान ने कहा कि ओडिशा के ये समुदाय दशकों से इसकी मांग कर रहे थे और आज यह लोकतंत्र की जीत है कि यह सुविधा उस वर्ग तक पहुंचायी जा रही है. उन्होंने यह विधेयक लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा का आभार व्यक्त किया.
उन्होंने कहा कि सरकार ने आज जो काम किया है वह आदिवासी समुदाय से आने वाली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की अपेक्षाओं के अनुरूप हो रहा है.
उधर कांग्रेंस पार्टी के सांसदों ने बीजेपी की नीतियों की आलोचना की. उन्होंने कहा कि केंद्रीय ऐजेंसियों का अनुचित इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने झारखंड के एक आदिवासी मुख्यमंत्री को ग़िरफ्तारी कर लिया है.
सरकार ने अधूरा सच रखा
इस बहस के जवाब में बोलते हुए आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कई बातों का ज़िक्र किया. उन्होंने यह दावा किया कि उनकी सरकार आदिवासियों के बारे में काफ़ी चिंतित है.
उन्होंने अपने जवाब में कई ऐसी जनजातियों के बारे में विस्तार से बताया जिनकी जनसंख्या लगातार कम हो रही है. उन्होंने सदन में सूचित किया कि उन्होंने अलग अलग राज्य सरकारों को पत्र लिख कर इन आदिवासी समुदायों की जनसंख्या में आ रही कमी के कारण तलाशे जाएँ.
उनकी यह चिंता जायज़ भी है. क्योंकि देश के कई ऐसे आदिवासी समुदाय हैं जिनकी जनसंख्या 1000 से भी कम है. अर्जुन मुंडा ने जब सदन में अपनी बात रखी तो यह दावा किया कि उनकी सरकार ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पीएम जनमन के ज़रिये ऐसे समुदायों के विकास के लिए बीड़ा उठाया है.
लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि अर्जुन मुंडा ने जो आंकड़े सदन में रखे उनमें कुछ भी नया नहीं है. ये आंकड़े काफ़ी समय से सार्वजनकि हैं.
सवाल ये है कि क्या उनकी सरकार के पास विशेष रुप से पिछड़ी जनजातियों (PVTG) की जनसंख्या के सही सही आंकड़े मौजूद हैं.
क्योंकि ख़बरों की मानें तो आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने पिछले कुछ महीने में विशेष रुप से पिछड़ी जनजातियों की जनसंख्या के अलग अलग आंकड़े पेश किये हैं.
उनका मंत्रालय अभी भी निश्चित तौर पर यह नहीं बता पाया है कि फ़िलहाल देश में आदिवासियों की कितनी जनसंख्या है और इनमें से पीवीटीजी कहे जाने वाले आदिवासियों की जनसंख्या कितनी होगी.
जनसंख्या के आंकडो़ं के बिना पीएम-जनमन के 24000 करोड़ रूपये कब और कैसे ख़र्च होंगे यह कैसे तय होगा?
अर्जुन मुंडा ने यह दावा किया कि उनकी सरकार लगातार आदिवासियों की समाजिक और आर्थिक स्थिति की स्टडी करा रही है. लेकिन सच्चाई ये है कि इस संबंध में पहले से विस्तृत रिपोर्ट मौजूद हैं. मसलन 2013-14 में खाखा कमेटी की रिपोर्ट पीवीजीटी के बारे में विस्तार से बात करती है.
लेकिन सरकार ने अभी तक इस रिपोर्ट पर कुछ नहीं कहा है. इसी तरह से आदिवासियों के स्वास्थ्य के आंकड़ों और स्थिति पर भी रिपोर्ट मौजूद हैं.