अपने माता-पिता के काम के लिए पलायन करने वाले बच्चे अपने हकों और सरकार की कई विशेष योजनाओं से वंचित हो जाते हैं. यह नीति निर्माताओं के लिए लंबे समय से एक बड़ी चुनौती रही है.
अब ऐसे प्रवासी बच्चों को ट्रैक और उनके अधिकारों को उन्हीं के साथ शिफ़्ट करने के लिए महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल मेलघाट, पालघर और नंदुरबार ज़िलों समेत दूसरे इलाक़ों में एक पायलट परियोजना शुरु होने जा रही है.
इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट स्कीम (ICDS) के कमिश्नर रुबल अग्रवाल ने एक अखबार को बताया कि पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले वो तेलंगाना में ऐसी ही एक प्रक्रिया की स्टडी करेंगे.
पलायन का असर इतना बुरा है कि ऐसे बच्चों के बीच कुपोषण में वृद्धि हुई है. कई मामलों में वैक्सिनेशन शेड्यूल पर भी गहरा असर पड़ा है.
अमरावती ज़िले के मेलघाट इलाक़े में किए गए एक अध्ययन के आधार पर ही इस पायलट प्रोजेक्ट की योजना तैयार की गई. उम्मीद है कि इस योजना के कार्यान्वयन से यह आदिवासी बच्चे राज्य भर में कहीं भी अपने अधिकार पा सकेंगे.
इस मॉडल में एक सॉफ़्टवेयर के ज़रिए जहां से और जहां तक पलायन हो रहा है, उसको ट्रैक किया जाएगा. एक बार पलायन करने वाले बच्चों का पता लगाने के बाद, यह सुनिश्चित करने के लिए एक प्रोटोकॉल तैयार किया जाएगा कि उस बच्चे को उसके अपने गंतव्य स्थान पर भी अधिकार मिलें.
जून में, राज्य सरकार ने योजना को लागू करने के लिए आईसीडीएस आयुक्त की अध्यक्षता में एक विशेष समिति का गठन किया था.
मेलघाट के अलावा, परियोजना पालघर और नंदुरबार जिलों से पलायन को भी ट्रैक करेगी.
तेलंगाना सरकार इसी तरह की ट्रैकिंग करती है, तो उसके पास एक प्रणाली है, जिसका अध्ययन किया जाएगा. सॉफ्टवेयर के अलावा, प्रवासियों को पोशन कार्ड भी मिलेगा, जिसमें बच्चों के सभी डीटेल्स होंगे, ताकि वो योजनाओं का लाभ उठा सकें.
इस योजना के कार्यान्वयन में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक ट्राइबल सब-प्लान इलाक़ों में से गैर-आदिवासी इलाक़ों में लाभ को शिफ़्ट करना होगा. फ़िलहाल इस तरह का ट्रांसफर संभव नहीं है. इस मसले को सुलझाने के लिए आदिवासी विकास विभाग से बातचीत चल रही है.