आदिवासी एक्टिविस्टों ने मैसूरु कोडागु से बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने सिम्हा के उस बयान पर आपत्ति जताई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलना चाहिए.
प्रताप सिम्हा ने बुधवार को ज़िला विकास समन्वय और निगरानी समिति की बैठक के दौरान ऐसा कहा था.
आदिवासी मुद्दों पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि सिम्हा का बयान कानूनी रूप से भी सही नहीं है. वो कहते हैं कि अगर धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को सरकारी लाभ नहीं मिल सकते, तो पूर्वोत्तर और मध्य भारत के सभी आदिवासी प्रभावित होंगे.
बीजेपी सांसद सिम्हा का बयान संविधान में दिए गए सामाजिक न्याय और बराबरी के सिद्धांतों के भी ख़िलाफ़ है. संविधान हर भारतीय नागरिक को अपना धर्म चुनने की आज़ादी देता है.
आदिवासी कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि प्रताप सिम्हा को इस तरह के बयान देने के बजाय आदिवासी समुदायों के विकास पर ध्यान देना चाहिए.
धर्म बदलने से किसी भी आदिवासी की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में कोई सुधार नहीं आ रहा है. यह बस उन आदिवासियों की व्यक्तिगत पसंद और विश्वास का मामला है.
कर्नाटक के मैसूरु ज़िले में आदिवासी आबादी काफ़ी बड़ी है, और ये इलाक़े के हुनसुर, एचडी कोटे, पेरियपटना और नानजंगुड तालुकों के 155 बस्तियों में रहते हैं. मैसूर में जून कुरुबा, सोलीगा, काडु कुरुबा, हक्की पिक्की और डोंगरी गेरेसिया आदिवासी समुदाय रहते हैं.
इन इलाक़ों में रहने वाले आदिवासियों के कई मुद्दे हैं, जिनपर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. वन अधिकार अधिनियम के तहत दिए गए आवेदनों में से 5000 से ज़्यादा खारिज किए गए हैं. इस मुद्दे पर जल्द कार्रवाई की ज़रूरत है.
इसके अलावा क़रीब साढ़े तीन हज़ार आदिवासी परिवार पुनर्वास का इंतज़ार कर रहे हैं, जिसकी सिफ़ारिश कर्नाटक हाई कोर्ट की एक समिति ने की थी.
सरकार से यह भी मांग है कि आदिवासी बहुल तालुकों को मिलाकर एक अलग आदिवासी निर्वाचन क्षेत्र बनाया जाए, जिससे इनके विकास को गति मिलेगी.