दिल्ली में 25 फ़रवरी को बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी पहुँचने की उम्मीद है. यह प्रदर्शन देश के कई राज्यों के आदिवासी मिल कर करने वाले हैं. दिल्ली की सीमाओं पर दो महीने से ज़्यादा से किसान पहले से ही जमे हैं.
अब आदिवासियों ने भी अपने आंदोलन को दिल्ली लाने का फ़ैसला कर लिया है. कई आदिवासी संगठन पिछले कई महीने से झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में प्रदर्शन और सभाएँ कर रहे हैं.
2021 की जनगणना में अलग आदिवासी धर्म कोड की मांग के लिए झारखंड के आदिवासी समूहों ने अपनी मुहिम तेज़ करने का फ़ैसला किया है. अब यह समूह 25 फ़रवरी से देश की राजधानी दिल्ली में अपना विरोध प्रदर्शन करेंगे.
शनिवार को अलग-अलग आदिवासी समूह राष्ट्रीय आदिवासी धर्म समन्वय समिति (National Tribal Religion Coordination Committee) के बैनर तले साथ आए. अपनी मांग को लेकर इन्होंने राजभवन के बाहर एक दिवसीय धरना भी दिया.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नीति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने इस मांग को उठाया था.
शनिवार को उन्होंने हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ़्रेंस (Harvard India Conference) के दौरान कहा था कि भारत के सभी आदिवासियों को हिंदू मान लेना ग़लत है. में बोलते हुए हेमंत सोरेन ने यह बात कही है. उन्होंने कहा कि आदिवासी कभी न हिंदू थे, न हैं.
सोरेन सरकार ने पिछले साल विधानसभा में एक अलग जनजातीय कोड के लिए प्रस्ताव भी पारित किया था.
उधर पश्चिम बंगाल में सरना धर्म की माँग के लिए नेता जी इंडोर स्टेडियम कोलकाता में एक बड़ी सभा की गई थी. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस माँग का समर्थन कर चुकी हैं.
अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष गीताश्री उरांव ने मीडिया को बताया है कि जब तक इन समूहों की मांगें पूरी नहीं होतीं, ये लड़ाई जारी रखेंगे.
25 फरवरी से अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स और संबंधित मंत्रालयों और निकायों के साथ संपर्क बनाए जाने की योजना है. विभिन्न आदिवासी दलों का एक साथ आना, अलग धर्म कोड की मांग की इस लड़ाई के लिए अहम माना जा रहा है.