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पहाड़िया: स्कूलों के नाम पर एक आदिम जनजाति के साथ मज़ाक़ हो रहा है

पहाड़िया आदिवासी समुदाय के साथ स्कूल के नाम पर मज़ाक़ किया जा रहा है. पहाड़िया गाँवों में स्कूलों की जो हालत है उसे प्रशासन की उदासीनता नहीं कहा जा सकता है. यह तो देश के नागरिकों के प्रति सिस्टम का एक अपराध है. इसकी जवाबदेही तय होनी ही चाहिए.

भारत में आदिवासी समुदायों के भीतर भी कुछ ऐसे समुदाय हैं जिन्हें विशेष रूप से पिछड़े समुदाय या पीवीटीजी (PVTG) कहा जाता है. देश के कुल 75 आदिवासी समुदायों को इस श्रेणी में रखा गया है. आमतौर पर इन आदिवासी समुदायों को आदिम जनजाति कहा जाता है.

किसी आदिवासी समुदाय को इस श्रेणी में रखने के कुछ मानदंड और मायने हैं. जिन मानदंडों पर किसी आदिवासी समुदाय को इस श्रेणी में रखा जाता है उसमें घटती आबादी, जंगल पर ही निर्भरता, मुख्यधारा के समाज से ना के बराबर संपर्क आदि माने जाते हैं.

किसी जनजाति को पीवीटीजी माने जाने के मायने हैं कि सरकार यह जानती है कि इन समुदायों के लिए विशेष सहायता, पुनर्वास, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवाओं आदि की ज़रूरत है.

हाल ही में हमारी टीम झारखंड के संताल परगना से लौटी है. यहाँ पर संताल आदिवासियों के अलावा हमारी मुलाक़ात पहाड़िया जनजाति के लोगों से भी हुई. यह एक ऐसी जनजाति है जो इस क्षेत्र की सबसे प्रभावशाली और ताकतवर जनजाति होनी चाहिए थी. क्योंकि उनके पास जंगल और ज़मीन की कमी कभी नहीं थी.

लेकिन आज यह जनजाति अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. हमने इनकी ज़िंदगी के कई पहलुओं को क़रीब से समझने की कोशिश की है. इस कोशिश को आप ‘मैं भी भारत’ के अलग अलग एपिसोड में देख सकेंगे.

इस एपिसोड में आप देख सकते हैं कि इस आदिम जनजाति के नाम पर कैसे मज़ाक़ किया जा रहा है. यहाँ के स्कूलों में कक्षा एक से लेकर कक्षा 5 तक सभी छात्र सिर्फ़ हिंदी वर्णमाला या अंग्रेजाी में ABCD सीख रहे होते हैं. यानि कक्षा एक या कक्षा 5 को एक ही क्लास में एक ही टीचर पढ़ा रहे हैं.

उस पर भी अगर स्कूल रोज़ खुल जाए और टीचर पहुँच जाए तो बड़ी बात है. पूरी रिपोर्ट उपर वीडियो में देखिए

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