किन्नूर नदी के किनारे बसा महबूबाबाद (Mahabubabad Election) तेलंगाना का आदिवासी बहुल ज़िला है. तेलंगाना का यह ज़िला सूर्यापेट, खम्मम, भद्रादी जैसे ज़िलों से अपनी सीमा बांटता है.
यह ज़िला 2016 में अपने पड़ोसी ज़िला से अलग हुआ है. भौगोलिक स्थिति के अलावा अगर इसे राजनीतिक नज़रिये से भी देखे तो यह ज़िला काफी महत्वपूर्ण है.
संसद के निचले सदन यानि लोकसभा में तेलंगाना की 17 सीटें है, जिनमें से 2 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित की गई है.
इन आदिवासी सीटों में आदिलाबाद और महबूबाबाद हैं. महबूबाबाद ज़िले में कुल 7 विधानसभा सीटें हैं. इन 7 विधान सभा सीटों में से 6 आदिवासियों के लिए आरक्षित की गई है.
2011 की जनगणना के मुताबिक महबूबाबाद में कुल 774549 जनसंख्या रहती है. जिसमें से 2,89,176 आदिवासी जनसंख्या है. यह ज़िले की कुल जनसंख्या का लगभग आधा है.
इस पृष्टभूमि से महबूबाबाद भौगोलिक और राजनीतिक नज़रिये से राज्य के आदिवासी वोट बैंक के लिए महत्वपूर्ण बन जाता है.
महबूबाबाद की सीट वही हासिल कर सकता है, जो यहां के आदिवासी को भलीभांति समझता हो.
पिछले चुनावी नतीज़े क्या बताते है?
महबूबाबाद में इस साल 13 मई को लोकसभा चुनाव की वोटिंग होने वाली है. अगर विधानसभा चुनाव या फिर पिछले लोकसभा चुनाव को देखे तो, इस ज़िले में दो पार्टियों के बीच ही मुकाबला देखने को मिला है. यह पार्टियां हैं- बीआरएस (भारत राष्ट्रीय समिति) और कांग्रेस.
केंद्रीय सत्ताधारी बीजेपी का इस इलाके में ज्यादा वर्चस्व देखने को नहीं मिला है.
वहीं 2009 से 2019 तक के लोकसभा चुनाव के नतीज़े को भी देखे तो दो बार बीआरएस ने ही महबूबाबाद सीट जीती है और 2009 में कांग्रेस ने इस सीट पर विजय पाई थी.
हालांकि 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में बीआरएस को पिछाड़कर कांग्रेस ने 7 सीटों में से 6 सीटों पर अपना नाम दर्ज किया है.
विधान सभा की 7 सीटों में से 6 सीटें कांग्रेस के पास है और बची एक सीट पर बीआरएस है. यह कहा जा सकता है की कांग्रेस और बीआरएस दोनों पार्टियों के बीच इस लोकसभा चुनाव में बराबर की टक्कर है.
पार्टियों के उम्मीदवार
बीजेपी, कांग्रेस और बीआरएस तीनों पार्टियों ने अपने इस साल के लोकसभा चुनाव (lok Sabha Election 2024) के लिए उम्मीदवार की घोषणा कर दी है.
बीआरएस और कांग्रेस दोनों ही पार्टी ने अपने 2019 लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों का ही चयन किया है.
बीआरएस ने इस साल एक बार फिर कविता मलोथ को उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया है. वहीं कांग्रेस ने 2009 में महबूबाबाद के सांसद रहें पी. बलराम को अपने उम्मीदवार के रूप में चुना है.
ऐसे कयास लगाए जा रहे थे की बीजेपी बीआरएस के पूर्व सांसद सीताराम नाइक को अपनी पार्टी में शामिल कर सकती है. क्योंकि 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के बावजूद बीआरएस ने उन्हें दो बार टिकट नहीं दी.
वहीं वरंगल में केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने सीताराम नाइक से मुलाकात की थी.
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जटोथ हुसैन नाइक को मैदान में उतारा था, जिन्हें मुश्किल से तीन फीसदी ही वोट मिले थे. इसलिए बीजेपी एक मजबूत दावेदार ढूंढ रही थी.
अंत में यही हुआ बीजेपी ने अपनी दूसरी उम्मीदवार की सूची में सीताराम नाइक को महबूबाबाद ज़िले के उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया.
बीजेपी द्वारा आदिवासियों को किया गया बड़ा वादा
दिसंबर 2023 के शीतकालीन सत्र में राज्य सभा में बीजेपी द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक पारित किया गया. यह विधेयक लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका था.
इस विधेयक के तहत बीजेपी ने दावा किया की सम्मक्का सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय बनाया जाएगा. इसके साथ ही उच्च शिक्षा को और भी बेहतर किया जाएगा.
बीआरएस हो या फिर कांग्रेस इन पार्टियों को महूबबाबाद सीट हासिल करने के लिए यहां के आदिवासियों के समस्या और आधिकारों को समझना होगा.
क्योंकि महबूबाबाद की सीट राज्य के आदिलाबाद सीट पर भी प्रभाव डालेगी.
महबूबाबाद में रहने वाले आदिवासी
गोंड और लंबाडी आदिवासी यहां के प्रमुख है. गोंड का अलावा यहां पर इसकी उपजनजाति कोया भी रहती है.
कौन है गोंड आदिवासी
गोंड सिर्फ महबूबाबाद के नहीं बल्कि देश का सबसे बड़ा आदिवासी समूह है. यह जनजाति देश के मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश में रहते है.
2011 की जनगणना के मुताबिक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुल 304,537 गोंड रहते हैं यह प्रमुख रूप से गोंडी बोलते हैं जो द्रविड़ परिवार की एक अलिखित भाषा है. इसके अलावा यह तेलुगु और हिंदी भाषा भी बोलते है.
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तेलंगाना में यह आदिवासी सबसे ज्यादा राज्य के आदिलाबाद, खम्मम, वरंगल कारिमनगर में रहते हैं.
गोंड के अलावा यहां सबसे ज्यादा लंबाडी आदिवासी रहते है. जो लंबाडी या फिर बंज़ारा भाषा बोलते है.
क्या लंबाडी आदिवासियों का इतिहास और मांग
अनुच्छेद 342 के तहत तेलंगाना में कोया, गोंड, कोंडा, चेंचू, प्रधान, कोलम, नायकपोड इत्यादि आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है. लेकिन इनमें लंबाडी का नाम शामिल नहीं है.
लंबाडी उत्तर भारत से आई जनजाति है, जो तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी आकर बस गई.
1976 आपतकाल के समय सुगालि आंध प्रदेश राज्य के एसटी लिस्ट में शामिल हो गई. जिसके बाद लंबाडी ने यह दावा किया की वे सुगालि जनजाति से भिन्न है और उन्हें लंबाडी के नाम से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्य की एसटी लिस्ट में शामिल किया जाए.
लेकिन उनकी यह मांग आगे तक नहीं पहुंची और इसलिए उन्हें सविंधान के अनुच्छेद 342 में शामिल नहीं किया गया.
3 मई 1978 को किए एक सरकारी आदेश के मुताबिक लंबाडी को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में आदिवासी का दर्जा मिला, लेकिन उनके आरक्षण पर कुछ शर्तें लगा दी गई.
उन्हें यह आरक्षण तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सिर्फ शिक्षा के स्तर पर दिया गया था. जिसके बाद 1981 में इन्हें तेलंगाना में भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया और आंध प्रदेश से भी इन आदिवासियों पर लगाई गई पबांदियां हटा दी गई.
केंद्रीय प्रोग्राम और स्कीम से मिले आंकड़ों के अनुसार यहां 28,03,038 लंबाडी आदिवासी रहते है और तेलंगाना की कुल जनंसख्या 3,85,10,982 है. लंबाडी के अलावा अन्य आदिवासियों की कुल जनसंख्या 18,18,280 है.
इस पृष्टभूमि से यह देखा जा सकता है की लंबाडी यहां की कुल जनसंख्या का 7.27 प्रतिशत है और आदिवासियों की जनसंख्या कुल आबादी का 4.72 प्रतिशत ही है.
बढ़ती जनसंख्या के कारण यह आदिवासी 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत तक के आरक्षण की मांग कर रहे है. हालांकि बाकि आदिवासियों का आरक्षण बढ़ाने को लेकर अलग-अलग विचार है
आदिवासी समस्याएं
यहां के आदिवासी सालों से ज़मीनी पट्टे के लिए प्रशासन से लड़ रहें है. अक्सर यहां पर आदिवासी और वन ऑफिसर के बीच भूमि को लेकर संघंर्ष होता रहता है.
क्राइम रिकार्ड के आंकड़ो के अनुसार भी भूमि संबंधित मामलों में भी 8.29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसलिए भूमि विवाद यहां पर एक बड़ी समस्या कहीं जा सकती है.
भूमि पट्टे के अलावा यहां पर मूलभूत सुविधाओं की कमी और अन्य कई और समस्याएं आदिवासी समुदाय के बीच देखने को मिली है.
मूलभूत सुविधाएं
सरकारी वेबसाइट के अनुसार लगभग 7 लाख लोगों के लिए महज़ 23 अस्पताल और 14 स्कूल मौजूद है.
वहीं नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के अनुसार राज्य के 2023 अपराधिक मामलों में कनविक्शन दर में 32.47 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है.
लेकिन आदिवासियों में अपराधिक मामले बड़े है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यरों के मुताबिक अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के अपराधिक मामलों में 24.44 % की वृद्घि हुई है.
हालंकि महिला आपराधिक मामलों में महबूबाबाद में 9.34 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.